नई दिल्ली: कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बाद लगे लॉकडाउन से देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो गई थी. उसके बाद शुरू हुए किसान आंदोलन की वजह से दिल्ली के बॉर्डर सील हो गए. लिहाजा किसानों और व्यापारियों को ऑर्डर मिलना बंद हो गए. इसकी मार किसानों को भी झेलनी पड़ रही है. बाहरी दिल्ली के तिगीपुर गांव में एक किसान हर साल मशरूम की खेती करते हैं. अब तक भारी मुनाफा भी कमाते रहे हैं लेकिन इस बार हालात बिल्कुल उल्टे हैं. खेत में फसल तैयार है लेकिन ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं.
मशरूम किसान मांग रहे आर्थिक मदद
सर्दी के मौसम में पहले व्हाइट बटन मशरूम सबसे ज्यादा उगाई जाती थी, लेकिन इस किसान ने यहां पांच अलग-अलग तरह की मशरूम की फसल लगाई. जिसको डिंगरी गुलाबी मशरूम कहा जाता है. लेकिन कोरोना के संक्रमण और किसान आंदोलन के चलते बॉर्डर सील होने की वजह से फसल बिक नहीं पा रही है. मशरूम की खेती करने वाले किसान सरकार से आर्थक मदद भी मांग रहे हैं.
बॉर्डर बंद होने से नहीं मिल रहे ऑर्डर
पिछले साल कोरोना की वजह से किसान पप्पन सिंह गहलोत को लाखों का नुकसान हुआ था. इस बार फिर करोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. तो दूसरी ओर दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे आंदोलनकारी किसानों के चलते दिल्ली से बाहर की फसल नहीं जा पा रही है. जिससे दिल्ली के किसानों को इस बार भी काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं अगर दक्षिण भारत की बात करें तो इस मशरूम की कीमत ₹600 प्रति किलो है. दिल्ली में बॉर्डर बंद होने के चलते किसान 100 रुपये किलो तक पर बेचने को मजबूर हैं, जिसके चलते लाखों का मुनाफा देने वाली मशरूम की खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है.
पराली से होती है मशरूम की खेती
किसान पप्पन का दावा है कि मशरूम खेती से दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा क्योंकि मशरूम की खेती पराली पर की जाती है. इसके बाद पराली खाद बन जाती है और यह जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए खेतों में डाली जाती है. जिससे फसल अच्छी और जमीन उपजाऊ होती है. इससे पराली जलाने की समस्या भी काफी हद तक कम हो जाएगी और पराली खाद बन जाएगी.
बहरहाल मशरूम की खेती करने वाले किसानों के हालात इस वक्त तो ठीक नहीं चल रहे हैं. कोरोना और किसान आंदोलन दोनों ही उनके लिए बड़ी मुसीबत को तौर पर सामने आ रहे हैं. लाखों का मुनाफा कमाने वाले किसान अब लाखों का नुकसान झेल रहे हैं.