नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था काफी सुर्खियों में है. दिल्ली सरकार से लेकर विधानसभा, उपराज्यपाल कार्यालय से लेकर सड़कों तक इसकी खूब चर्चा हो रही है. इसी क्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित तमाम मंत्री और विधायक, सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की ट्रेनिंग फिनलैंड से कराने की मांग को लेकर विधानसभा से लेकर सड़क पर मार्च करते हुए उपराज्यपाल से मुलाकात करना चाह रहे थे. हालांकि यह संभव नहीं हो पाया. लेकिन फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम को दुनियाभर में क्यों बेहतर माना जाता है, आइए जानते हैं.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि शिक्षकों की फिनलैंड में ट्रेनिंग के लिए पूरा रोडमैप तैयार कर लिया गया है. दिल्ली के सरकारी स्कूलों से 30 शिक्षक चुने गए हैं, जिन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजने की तैयारी कर ली गई है. लेकिन जब प्रस्ताव को मंजूरी के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के पास भेजा गया तो उन्होंने इसे नामंजूर कर दिया. उनका कहना है कि भारत में ही इसकी ट्रेनिंग हो सकती है, फिर फिनलैंड जाने की जरूरत क्यों? इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री सहित तमाम मंत्री व विधायक भी विधानसभा के मौजूदा सत्र में मुखर हुए. मंगलवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस मुद्दे पर उपराज्यपाल पर जमकर बरसे.
फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम ने अमेरिका को भी छोड़ा पीछे: शिक्षाविदों ने बताया कि फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम, परीक्षा से लेकर टीचरों की ट्रेनिंग के मामले में अमेरिका जैसे देशों को भी पीछे छोड़ रहा है. इस देश ने फर्स्ट ग्रेड से लेकर पीएचडी तक अपनी एजुकेशन सिस्टम में समय-समय पर कई बदलाव किए हैं. 2016 में फिनलैंड ने अपने नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क में कई बड़े बदलाव किए, जिसमें मल्टीडिसीप्लिनरी एजुकेशन और तथ्यों पर आधारित एजुकेशन पर जोर दिया गया. यानी एक सब्जेक्ट की पढ़ाई के बजाय किसी टॉपिक को अलग-अलग सब्जेक्ट के साथ समझना. ऐसे कई कदम के साथ फिनलैंड के छात्रों के कांसेप्ट बहुत साफ हुए. इससे उनकी सीखने की स्पीड भी बढ़ी और वे कई फील्ड को समझते बेहतर तरीके से समझते हैं. 7 से 16 साल के छात्रों के लिए लागू किए गए न्यू एज लर्निंग सिस्टम के रिजल्ट भी बढ़िया मिले हैं.
छात्रों पर परीक्षा का बोझ नहीं: फिनलैंड में छात्रों पर परीक्षा का बोझ नहीं होता. वहां सिर्फ एक परीक्षा होती है. हाईस्कूल के अंत में नेशनल मैट्रिकुलेशन एग्जाम. वह भी अनिवार्य नहीं है. टीचर हर बच्चे को व्यक्तिगत आधार पर ग्रेड देते हैं. स्कूलों में सैंपल ग्रुप बनाकर वहां का शिक्षा मंत्रालय बच्चों का ओवरऑल प्रोग्रेस ट्रैक करता है.
आईएएस बनने जैसा है वहां टीचर बनना: फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम बनाने में टीचरों का बहुत बड़ा योगदान है. वहां ग्रेड के हिसाब से टीचर्स चुने जाते हैं और उसी हिसाब से ट्रेनिंग होती है. एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर जेएस राजपूत ने बताया कि, फिनलैंड में टीचिंग सबसे सम्मानित पेशा है. वहां टीचर एजुकेशन इंस्टीट्यूट में दाखिल पाना छात्र का बड़ा सपना होता है और वह देश का सबसे बड़ा एग्जाम है. उसी तरह जैसे भारत में सिविल सर्विसेस और जेईई एडवांस है. हालांकि भारत में ऐसा नहीं है. 2012 में सुप्रीम कोर्ट की बनाई जस्टिस वर्मा कमिटी ने कहा था कि, इस देश में 10 हजार टीचर एजुकेशन इंस्टिट्यूट शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि फिनलैंड में सबसे बड़ी चीज यह सीखने की है कि टीचर का सम्मान कीजिए, अच्छी ट्रेनिंग दीजिए और करप्ट टीचर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट को हटाइए. फिनलैंड में टीचरों की सैलरी भी सबसे ज्यादा है.
अधिक नंबर दिलाना मकसद नहीं: फिनलैंड के स्कूलों की प्राथमिकता बच्चों को गणित, विज्ञान में अधिक नंबर दिलाना नहीं है. वे छात्र के लिए एक खुशनुमा, स्वस्थ और सौहार्द भरा सीखने का माहौल रखने पर ज्यादा फोकस करते हैं. यहां शिक्षा को सामाजिक समानता को संतुलित करने के लिए उपकरण की तरह उपयोग किया जाता है. हर छात्र को स्कूल में फ्री खाना मिलता है. साथ ही हेल्थ केयर, साइकोलॉजिकल काउंसलिंग और व्यक्तिगत तौर पर गाइडेंस भी दी जाती है.
अधिक उम्र में शुरू होती है पढ़ाई: फिनलैंड में एक बच्चे के लिए पढ़ाई शुरू करने की उम्र 7 वर्ष है, ताकि वे छोटी उम्र से ही पढ़ाई के झमेले में न फंसे. बच्चों का बचपना बरकरार रहे. यहां स्कूल एजुकेशन सिर्फ 9 साल तक अनिवार्य है. नौवीं क्लास यानी 16 साल की उम्र के बाद उनके लिए पढ़ाई वैकल्पिक हो जाती है.
वोकेशनल कोर्स पर अधिक जोर: फिनलैंड में 3 साल के ऊपर सेकेंडरी लेवल प्रोग्राम चलाए जाते हैं. इस दौरान वोकेशनल कोर्स का भी विकल्प होता है. छात्र अपनी पसंद से कोर्स चुन सकते हैं. अगर उन्हें यूनिवर्सिटी नहीं जाना तो वे वोकेशनल कोर्स करके आगे बढ़ सकते हैं, ताकि बेवजह, बेमन से कॉलेज जाकर डिग्री लेने में उनका समय बर्बाद ना हो.
कक्षा में होते हैं कम बच्चे, बार-बार नहीं बदलते शिक्षक: फिनलैंड के स्कूलों में की प्रत्येक कक्षा में कम बच्चे होते हैं. शिक्षकों को खचाखच भरे ऑडिटोरियम को नहीं पढ़ाना होता है. छात्र कम से कम 6 साल तक उसी टीचर से पढ़ते हैं और टीचर बार-बार नहीं बदलते हैं. इससे टीचर हर बच्चे पर पूरा ध्यान दे पाते हैं. लंबे समय तक सिर्फ एक शिक्षक से पढ़ने बच्चे उनके परिवार के सदस्य की तरह बन जाते हैं. वहीं टीचर छात्रों का अच्छा-बुरा सब जानते हैं और उसी के अनुसार गाइड करते हैं.
दिया जाता है कम होमवर्क: दुनियाभर में छात्रों को सबसे कम होमवर्क फिनलैंड में ही दिया जाता है. उन्हें उतना ही होमवर्क मिलता है, जिसे वह घर लौटने के बाद आधे घंटे में पूरा कर लें. वहीं छात्रों के लिए ट्यूशन जरूरी नहीं है. इस तरह से बच्चों का स्कूल-लाइफ बैलेंस अच्छा रहता है और उन्हें बेवजह का तनाव नहीं झेलना पड़ता.
स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ ब्रेक पर भी जोर: फिनलैंड के स्कूल तनाव मुक्त माहौल पर जोर देते हैं. वहीं एक दिन में छात्र को कुछ ही क्लास करनी होती हैं. और तो और लंच, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज एंजॉय करने के लिए अधिक समय मिलता है. दिनभर में कई बार 15 से 20 मिनट के ब्रेक मिलते हैं. इसी तरह का माहौल वहां के शिक्षकों के लिए भी होता है. फिनलैंड में स्कूल सुबह 9 बजे के बाद शुरू होते हैं और दोपहर 2 बजे के बाद बंद हो जाते हैं. इसके पीछे यह कारण बताया जाता है कि सुबह जल्दी जाकर स्कूल की भागदौड़, छात्र के स्वास्थ्य और विकास के लिए सही नहीं है. उनकी क्लास लंबी होती है और एक से दूसरी क्लास के बीच लंबा ब्रेक पर मिलता है.
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एक्सपर्ट की बात: इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. सीपी सिंह ने बताया कि वर्ष 2012 के आसपास फिनलैंड अचानक से दुनिया के एजुकेशन सिस्टम में काफी ऊपर आ गया. बच्चों को कांसेप्ट कैसे समझाया जाए, इसपर फिनलैंड ने बहुत काम किया. अगर वहां मैथ के बच्चों को पढ़ाना है तो वे उसे कांसेप्ट समझाते हैं, बजाए सिर्फ प्रश्न-उत्तर कराने के. वहीं फिनलैंड में पढ़ाई का स्ट्रेस भी बहुत कम है.
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