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Drugs in Delhi: बच्चों को ढाल बना बच जाते हैं ड्रग्स तस्कर, जानें पुलिस से कहां होती है चूक - नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस

राजधानी दिल्ली में युवाओं में बढ़ती ड्रग्स की लत और पुलिस की नाकामी से लोग परेशान हैं. यही कारण है कि बीते 5 साल में नशे का कारोबार करीब तीन गुना हो गया है. कानून में सख्त प्रावधान के बावजूद पुलिस वाले अपनी चूक से तस्करों को बचने का मौका दे देते हैं. पढ़िए...पुलिस से कहां होती है चूक

अधिवक्ता एनके सिंह भदौरिया
अधिवक्ता एनके सिंह भदौरिया
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Published : Apr 6, 2023, 7:32 PM IST

नई दिल्ली: पिछले पांच सालों में राजधानी दिल्ली में नशे का कारोबार करीब तीन गुना हो गया है. हालांकि, इसके साथ ही तस्करों की गिरफ्तारी में भी दोगुना की बढ़ोतरी हुई है. नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट 1985 में सख्त प्रावधान होने के बावजूद नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई तस्करों को सजा नहीं दिला पाती है. इसका एक कारण यह भी है कि तस्कर ड्रग पैडलर के रूप में बच्चों और महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं. नाबालिग होने के चलते बच्चों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है. इसलिए बहुत ही कम मामलों में तस्करों को सजा हो पाती है.

कड़कड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एनके सिंह भदौरिया ने बताया कि तस्करों को पकड़ने के बाद उनके खिलाफ सबूत इकट्ठे करने में पुलिस कोताही बरतती है. कई बार पुलिसकर्मी गिरफ्तार किए गए आरोपित से चरस, गांजा, हेरोइन, स्मैक या अन्य ड्रग्स की बरामदगी करते समय ठोस सबूत के रूप में उसका वीडियो नहीं बनाते हैं और ना ही उसका फोटो लेते हैं. साथ ही मौके से कोई चश्मदीद गवाह भी पुलिस नहीं बनाती है और कई बार लोग तस्करों के खिलाफ गवाही देने से मुकर भी जाते हैं या गवाह बनना पसंद नहीं करते हैं. इस वजह से कोर्ट में तस्करों पर मामला साबित नहीं हो पाता है.

कम मामलों में फोटो-वीडियो बनाते हैं पुलिसकर्मीः भदौरिया का कहना है कि बहुत कम मामलों में पुलिसकर्मी फोटो, वीडियो या सीसीटीवी फुटेज के तौर पर ठोस सबूत पेश कर पाते हैं, जिन मामलों में सुबूत पेश हो जाते हैं. उन मामलों में तस्करों को जरूर सजा हो जाती है. अन्यथा अधिकतर मामलों में वह बरी हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि नशे के कारोबार के खिलाफ सख्त अभियान चलाने के साथ-साथ कोर्ट में भी सबूत जुटाकर तस्करों को सजा दिलानी होगी. इसके बाद ही इस कारोबार पर कुछ लगाम लग सकती है.

यह भी पढ़ेंः Drugs in Delhi: ड्रग्स तस्करों के लिए ट्रॉजिंट हब बनी दिल्ली, 90 दिन में 351 तस्कर अरेस्ट

मजिस्ट्रेट के सामने नहीं दिलाते बयानः उन्होंने यह भी बताया कि एनडीपीएस एक्ट में धारा 50 के तहत आरोपित के बयान मजिस्ट्रेट के सामने कराने और मजिस्ट्रेट के सामने तलाशी दिलाने का पुलिस का काम होता है, लेकिन ऐसा करने के बजाए जांच अधिकारी चार्जशीट में अधिकतर यही बात लिख देते हैं कि आरोपित से मजिस्ट्रेट के सामने तलाशी देने के लिए कहा गया तो उसने इनकार कर दिया. पुलिस अनुसार ड्रग्स माफिया ने अपनी गलियों और घरों के बाहर बड़ी संख्या में सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे हैं, जिससे उन्हें पुलिस की रेड की तुरंत जानकारी मिल जाती है और वे माल को ठिकाने लगा देते हैं.

यह भी पढ़ेंः Drugs in delhi: अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद भारत में तेज हुई हेरोइन की तस्करी

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की बात करें तो पुलिस ने 2020 में 2455 नाबालिगों को नशीले पदार्थों की तस्करी में पकड़ा था. 2021 में यह संख्या बढ़कर 2643 हो गई. इसमें से अधिकतर मामले दिल्ली की अदालतों में लंबित हैं.

नई दिल्ली: पिछले पांच सालों में राजधानी दिल्ली में नशे का कारोबार करीब तीन गुना हो गया है. हालांकि, इसके साथ ही तस्करों की गिरफ्तारी में भी दोगुना की बढ़ोतरी हुई है. नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट 1985 में सख्त प्रावधान होने के बावजूद नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई तस्करों को सजा नहीं दिला पाती है. इसका एक कारण यह भी है कि तस्कर ड्रग पैडलर के रूप में बच्चों और महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं. नाबालिग होने के चलते बच्चों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है. इसलिए बहुत ही कम मामलों में तस्करों को सजा हो पाती है.

कड़कड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एनके सिंह भदौरिया ने बताया कि तस्करों को पकड़ने के बाद उनके खिलाफ सबूत इकट्ठे करने में पुलिस कोताही बरतती है. कई बार पुलिसकर्मी गिरफ्तार किए गए आरोपित से चरस, गांजा, हेरोइन, स्मैक या अन्य ड्रग्स की बरामदगी करते समय ठोस सबूत के रूप में उसका वीडियो नहीं बनाते हैं और ना ही उसका फोटो लेते हैं. साथ ही मौके से कोई चश्मदीद गवाह भी पुलिस नहीं बनाती है और कई बार लोग तस्करों के खिलाफ गवाही देने से मुकर भी जाते हैं या गवाह बनना पसंद नहीं करते हैं. इस वजह से कोर्ट में तस्करों पर मामला साबित नहीं हो पाता है.

कम मामलों में फोटो-वीडियो बनाते हैं पुलिसकर्मीः भदौरिया का कहना है कि बहुत कम मामलों में पुलिसकर्मी फोटो, वीडियो या सीसीटीवी फुटेज के तौर पर ठोस सबूत पेश कर पाते हैं, जिन मामलों में सुबूत पेश हो जाते हैं. उन मामलों में तस्करों को जरूर सजा हो जाती है. अन्यथा अधिकतर मामलों में वह बरी हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि नशे के कारोबार के खिलाफ सख्त अभियान चलाने के साथ-साथ कोर्ट में भी सबूत जुटाकर तस्करों को सजा दिलानी होगी. इसके बाद ही इस कारोबार पर कुछ लगाम लग सकती है.

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मजिस्ट्रेट के सामने नहीं दिलाते बयानः उन्होंने यह भी बताया कि एनडीपीएस एक्ट में धारा 50 के तहत आरोपित के बयान मजिस्ट्रेट के सामने कराने और मजिस्ट्रेट के सामने तलाशी दिलाने का पुलिस का काम होता है, लेकिन ऐसा करने के बजाए जांच अधिकारी चार्जशीट में अधिकतर यही बात लिख देते हैं कि आरोपित से मजिस्ट्रेट के सामने तलाशी देने के लिए कहा गया तो उसने इनकार कर दिया. पुलिस अनुसार ड्रग्स माफिया ने अपनी गलियों और घरों के बाहर बड़ी संख्या में सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे हैं, जिससे उन्हें पुलिस की रेड की तुरंत जानकारी मिल जाती है और वे माल को ठिकाने लगा देते हैं.

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की बात करें तो पुलिस ने 2020 में 2455 नाबालिगों को नशीले पदार्थों की तस्करी में पकड़ा था. 2021 में यह संख्या बढ़कर 2643 हो गई. इसमें से अधिकतर मामले दिल्ली की अदालतों में लंबित हैं.

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