नई दिल्लीः 'धोती' शब्द सुनते ही आपके मन में सबसे पहले भारतीय संस्कृति की झलक आती होगी. यह ऐसा परिधान है जिसे उत्तर से लेकर दक्षिण तक के लोग धारण करते हैं. आंध्र प्रदेश में इसे पंचा कहा जाता है. उत्तर भारत में इसे हिंदी में 'धोती', पंजाबी में 'लाचा', मलयालम में 'मुंडू', बांग्ला में 'धूति', तमिल में 'वेष्टि', मराठी में 'धोतर' और 'पंचे' कहा जाता है. धोती बिना सिले कपड़े का एक आयताकार टुकड़ा है, जो आमतौर पर लगभग 5 गज लंबा होता है, जो कमर और पैरों के चारों ओर लपेटा जाता है और कमर पर गांठ लगाई जाती है.
धोती एक प्रकार का पारंपरिक कपड़ा है, जो मुख्य रूप से भारतीय सभ्यता की विरासत है. इसका स्थान परिधानों में नंबर एक माना जाता है. उत्तर भारत में धोती के ऊपर कुर्ता पहना जाता है. इस संयोजन को पूर्व में 'धोती कुर्ता' या 'धुती पंजाबी' के रूप में जाना जाता है. दक्षिण भारत में इसे अंगवस्त्रम के साथ पहना जाता है. हिन्दू धर्म में धोती कुर्ता को औपचारिक पहनावा माना जाता है.
धोती एक पारंपरिक भारतीय पुरुषों का पहनावा है. इसको मेंटेन करना और बांधना आसान नहीं है. भाग दौड़भरी दिनचर्यां में लोगों के पहनावे ने इसे दूर कर दिया. आज कल शादी विवाह या धार्मिक अनुष्ठानों में फिर से धोती पहनने का चलन आया है. हालांकि, धोती ने भारत में अभी भी अपनी लोकप्रियता नहीं खोई है, क्योंकि इसे अभी भी कई प्रमुख वरिष्ठ नागरिकों, राजनेताओं, संगीतकारों, नर्तकियों और अन्य लोगों द्वारा बहुत सम्मान के साथ पहना जाता है. सभी महत्वपूर्ण सरकारी और पारिवारिक अवसरों पर पहनने के अलावा, धोती कुर्ते को उच्च श्रेणी के क्लबों में भी पहनने की अनुमति है, जो आम तौर पर मेहमानों के लिए बहुत सख्त ड्रेस कोड रखा जाता है. एक प्रमुख भारतीय नागरिक हैं, जिन्हें भारतीय सीमाओं से परे धोती को लोकप्रिय बनाने का सारा श्रेय जाता है और वह हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी.
धोती पहनने के फायदे
मानसून का मौसम उमस भरा होता है. ऐसी में हर कोई चाहता है कि वह हल्के और हवादार कपड़े पहने. इसके लिए धोती से बेहतर विकल्प कुछ भी नहीं है. यह पूरी तरह हवादार और आरामदायक होती है. दिल्ली के ऐतिहासिक चांदनी चौक बाजार में स्थित कूचा नटवा में धोती का होलसेल और रिटल बाजार है. कूचा नटवा व्यापार संघ के 85 वर्षीय प्रधान राम किशन शर्मा आज भी धोती पहन कर बाजार आते हैं. उन्होंने बताया कि स्कूल और कॉलेज के दिनों में वह भी पैंट और शर्ट पहनते थे, लेकिन जबसे वह धोती के व्यापर से जुड़े हैं, उन्होंने भी धोती पहनना शुरू कर दिया और आज भी पहनते हैं.
धोती के फायदों को बताते हुए उन्होंने बताया कि इसको पहने से कई लाभ हैं. सबसे पहले तो यह कि अगर आप किसी तीर्थ स्थल पर नहाते हैं, तो पहले इसको बंधन कर नहा लें, फिर निचोड़ कर अपने शरीर को पोछ सकते हैं. दूसरा, आप कहीं घूमने गए हैं और आपको आराम करना है, तो आधी धोती को बिछा कर आधी को चादर की तरह ओढ़ सकते हैं. यह मछरदानी का भी काम कर देगी.
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धोती में जेब नहीं होती है, लेकिन कमर पर एक रोल होता है, जो बहुत उपयोगी होता है. चाबियां, नकदी और कुछ आईडी जैसी छोटी वस्तुओं को रोल में रखकर ले जाना संभव है. कुछ अभ्यास से आप जरूरी सामान सुरक्षित और आसानी से रख सकते हैं. धोती पहनकर सीढ़ियां चढ़ने में सावधानी बरतनी चाहिए. धोती पर पैर रखना आसान होता है, विशेषकर बायीं ओर. गुच्छित अकॉर्डियन फोल्ड को रोल करने से पहले ऊंचा उठाने से इस समस्या को कम करने में मदद मिलती है.
धोती को मेंटेन करना है मुश्किल
प्रधान राम किशन का मानना है कि इसको मेंटेन करना कठिन काम है. यही कारण है जो अब लोगों ने इसको डेली पहनना बंद ही कर दिया. इसको धोना और चमक को बरकरार रखना हर किसी के बस की बात नहीं. साथ ही धोती हर धुलाई के बाद चर्क भी मांगती हैं. इससे उसकी सुंदरता बरकरार रही है.
वहीं धोती कुर्ते के थोक विक्रेता राहुल सिंघल ने बताया कि नई पीढ़ी को देखते हुए रेडिमेड धोती को बाजार में लाया गया है. इसको लेकर युवाओं में खासा रूझान देखने को मिला है. खास तौर पर शादी समारोह में इसकी डिमांड ज्यादा है. वहीं आज भी पंडितों और विवाह समारोह में धोती की डिमांड अधिक होती है. इसके साथ लेनिन और कॉटन के कुर्ते भी काफी डिमांड है.
भारतीय धोती पहनने के कई तरीके हैं. बंगाली में पुरुष आमतौर पर अपनी धोती में चुन्नट बनाते हैं. दक्षिण भारत में धोती पहनने वाले लोग अपनी पोशाक में अंगवस्त्रम जोड़ते हैं, जो कंधों पर रखा बिना सिले कपड़े का एक अतिरिक्त टुकड़ा होता है. वहीं, कई दक्षिण भारतीय पुरुष अपनी धोती को आधा मोड़ते हैं और इसे कमर पर बांधते हैं ताकि यह केवल घुटनों तक पहुंचे. राजस्थान में कुछ भारतीय समुदायों में धोती-कुर्ता पहनना अनिवार्य है.
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धोती का इतिहास
ई.पू. दूसरी शताब्दी की मूर्तियों से पता चलता है कि प्राचीन काल में एक परिधान के रूप में धोती पुरुषों तथा स्त्रियों, दोनों द्वारा पहनी जाती थी. आज भी भारत के कुछ भागों में विशेषकर केरल और उत्तर भारत में महिलाएं धोती पहनती हैं. धोती का एक रूप थाईलैंड में पानुंग, श्रीलंका में कॉम्बॉय और इंडोनेशिया व मलेशिया में सारोंग है.