नई दिल्लीः संसद के शीतकालीन सत्र में भारतीय दंड संहित, भारतीय न्याय प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम को खत्म करके तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पारित कर दिया. 25 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी के बाद ये तीनों अधिनियम अब कानून बन चुके हैं. अब अगला चरण इसको लागू करने का रहेगा. इन तीनों कानूनों के अस्तित्व में आने के बाद भारतीय न्याय प्रणाली किस तरह बदल जाएगी. उसमें क्या-क्या परिवर्तन आएंगे इसको लेकर कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिवक्ता मनीष भदौरिया ने कहा कि, "पुराने कानून अंग्रेजों के बनाए हुए थे. जिनमें कई सारी खामियां थीं. इन खामियों की वजह से लोगों को न्याय मिलने में समय लगता था. अब जो नए कानून बनाए गए हैं वे मौजूदा समय को देखते हुए प्रासंगिक हैं.ये कानून बदलते समय की मांग थे."
कानूनों को लागू करने में व्यावहारिक दिक्कत: भदौरिया ने बताया कि भारतीय न्याय संहिता में नई धाराओं को आईपीसी की तरह ही परिभाषित किया गया है. इसी तरह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में न्यायिक प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी गई है. वहीं, साक्ष्य अधिनियम में सबूतों को एकत्रित करने और उनके मान्य व अमान्य होने की स्थितियों का वर्णन है. साथ ही साइबर अपराध के युग में सबूतों को किस तरह से इस्तेमाल किया जाना है इसका भी विस्तृत वर्णन नए साक्ष्य अधिनियम में किया गया है. इन कानूनों को लागू करने में थोड़ी व्यावहारिक दिक्कत आना स्वाभाविक है. इन तीनों कानूनों को अच्छी तरह से समझने में कानूनी प्रक्रिया से जुड़े हुए लोगों जैसे वकीलों, पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को इसके पहलुओं को समझने में समय लगेगा. इसलिए उनका प्रशिक्षण होना आवश्यक है.
कानूनों को अभ्यास में लाने के लिए लगेगा इतना समय: एडवोकेट मनीष भदौरिया ने आगे बताया कि इन कानूनों को अभ्यास में लाना लोगों की क्षमता पर निर्भर करेगा. कुछ लोगों को चार-छह महीनों में भी इन नए कानूनों का अभ्यास हो सकता है. वहीं, कुछ लोगों को सालों का भी समय लग सकता है. भदौरिया ने बताया कि नए कानून में राजद्रोह को देशद्रोह का नाम दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि अंग्रेजों के समय में भारत का शासन ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के नाम से चलता था. इसलिए उस समय के विद्रोह को राजद्रोह का नाम दिया गया था. अब भारत में प्रजातंत्र प्रजा का शासन है इसलिए अब किए गए विद्रोह को देश के खिलाफ माना जाता है. इसलिए इसे देशद्रोह का नाम दिया गया है.
देशद्रोह में फांसी तक का प्रावधान: इसके अलावा इसकी धाराओं में भी परिवर्तन किया गया. साथ ही राजद्रोह में पहले सजाएं और जुर्माने कम थे. लेकिन, अब देशद्रोह में फांसी तक की सजा का प्रावधान किया गया है. इसी तरह अब हत्या के मामले में धारा 302 की जगह 101 में मामला दर्ज होगा. राजद्रोह में पहले धारा 124 लगती थी अब देशद्रोह में इसे धारा 152 कर दिया गया है. इसी तरह दुष्कर्म की जगह धारा 376 को धारा 63 कर दिया गया है. मानहानि के लिए धारा 499 लगती थी अब इसे 356 कर दिया गया है.
न्याय देने के लिए एक समय सीमा निर्धारित: वहीं, कड़कड़डूमा कोर्ट के दूसरे अधिवक्ता राजीव तोमर ने बताया कि इन नए कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों को न्याय देने के लिए एक समय सीमा निर्धारित की गई है. अभी तक जो पुराने कानून चल रहे हैं उनमें न्याय देने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थीं. न्याय के लिए लड़ते लड़ते लोगों की मृत्यु तक हो जाती थी. लेकिन, इन नए कानूनों में तेजी के साथ सुनवाई के प्रावधान के साथ ही हर मामले में न्याय की एक तय समय सीमा है, जिससे लोगों को न्याय के लिए सालों नहीं भटकना पड़ेगा.
पुलिस को जल्दी चार्जशीट पेश करनी होगी: नए कानूनों में पुलिस को त्वरित कार्रवाई कर सबूत जुटाने और उनको संरक्षित कर एक नियत समय में कोर्ट में पेश करना होगा. अभी तक चार्जशीट दायर करने में पुलिस महीनों लगाती थी, लेकिन अब पुलिस को जल्दी चार्जशीट पेश करनी होगी. कुछ छोटे मोटे मामलों को पुलिस थाने से ही निपटाएगी. नए कानूनों में अदालतों के ऊपर से बोझ करने का भी ध्यान रखा गया है.अंग्रेजों के जमाने के मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट कोर्ट को खत्म करके ज्यूडिशियल मुंशी मजिस्ट्रेट कोर्ट बनाए गए हैं.