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20 से 25 दिनों के अंदर खाद के रूप में तब्दील होगा पराली, प्रदूषण से मिलेगी राहत

ईटीवी भारत ने पूसा इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह से बात की और जाना की कैप्सूल की सहायता से निर्मित घोल पराली को किस प्रकार से खाद के रूप में तब्दील करेगा.

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Published : Oct 7, 2020, 11:30 AM IST

straw will turn into compost
पराली को खाद बनाने की तैयारी

नई दिल्ली: ठंड बढ़ने के साथ ही दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. दिल्ली सरकार की ओर से पराली को प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बताया जाता रहा है. पराली के उचित निस्तारण के लिए कुछ दिनों पहले पूसा इंस्टीट्यूट ने कुछ कैप्सूल विकसित किए थे, जिनकी मदद से पराली को खाद के रूप में तब्दील किया जा सकता है.

खाद के रूप में तब्दील होगा पराली

इसे लेकर ईटीवी भारत ने पूसा इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह से बात की और जाना की कैप्सूल की सहायता से निर्मित घोल पराली को किस प्रकार से खाद के रूप में तब्दील करेगा.


कैप्सूल की सहायता से बनेगा घोल

ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए पूसा एग्रीकल्चर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह ने बताया कि दिल्ली सरकार के सहयोग से बड़े स्तर पर पराली बायो डी कंपोजर घोल का निर्माण किया जा रहा है क्योंकि धान के खेतों में कटाई प्रारंभ हो चुकी है. इसलिए किसानों को जल्द से जल्द यह घोल प्राप्त कराया जाएगा.

ताकि वो अपने खेतों में छिड़काव कर सके और उन्हें पराली ना जलाना पड़े. इसके लिए गुड़ का घोल बनाया जा रहा है और उसे उबाला जा रहा है. उबालने के बाद इसे ठंडा किया जाएगा. घोल को ठंडा करने के बाद 25 लीटर पानी में ढाई सौ ग्राम बेसन मिलाएंगे और पूसा एग्रीकल्चर द्वारा निर्मित 20 कैप्सूल घोल में डाले जाएंगे.



4 से 5 दिनों में दिखने लगेगी ग्रोथ

कैप्सूल डालने के बाद घोल को अच्छी तरह से मिलाएंगे और इसे कपड़े से ढककर एक अंधेरे कमरे में रखा जाएगा. 4 से 5 दिनों के अंदर घोल में ग्रोथ दिखनी शुरू हो जाएगी. उसके बाद ये घोल खेत में प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाएगा. दिल्ली सरकार ने इसके लिए प्लानिंग की है और 11 अक्टूबर से दिल्ली के खेतों में इस घोल का छिड़काव किया जाएगा.


खुद गलने लगेगा पराली


पूसा केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह ने बताया कि घोल की मदद से खेतों में पराली खुद-ब-खुद गलने लगेगा और खाद के रूप में काम करेगा. इस तकनीक के प्रयोग से किसानों को अपने खेत में पराली को जलाना नहीं पड़ेगा तो वहीं दूसरी तरफ खेतों की उपजाऊ क्षमता में भी वृद्धि होगी.



लगेंगे 20 से 25 दिन
पराली को पूरी तरह से गलने में 20 से 25 दिन का समय लगेगा. इसके लिए धान को काटने के तुरंत बाद इस घोल का छिड़काव करना है. घोल का प्रयोग करने के बाद रोटावेटर की सहायता से पराली को खेत में मिलाना होगा. इसके बाद 10 से 15 दिन लगेगा खेतों की जुताई करने में. तब तक ज्यादातर पराली पूरी तरह से गल चुका होगा और खाद के रूप में तब्दील हो चुका होगा.किसानों को गेहूं की बुवाई में किसी प्रकार की समस्या भी नहीं होगी.

नई दिल्ली: ठंड बढ़ने के साथ ही दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. दिल्ली सरकार की ओर से पराली को प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बताया जाता रहा है. पराली के उचित निस्तारण के लिए कुछ दिनों पहले पूसा इंस्टीट्यूट ने कुछ कैप्सूल विकसित किए थे, जिनकी मदद से पराली को खाद के रूप में तब्दील किया जा सकता है.

खाद के रूप में तब्दील होगा पराली

इसे लेकर ईटीवी भारत ने पूसा इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह से बात की और जाना की कैप्सूल की सहायता से निर्मित घोल पराली को किस प्रकार से खाद के रूप में तब्दील करेगा.


कैप्सूल की सहायता से बनेगा घोल

ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए पूसा एग्रीकल्चर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह ने बताया कि दिल्ली सरकार के सहयोग से बड़े स्तर पर पराली बायो डी कंपोजर घोल का निर्माण किया जा रहा है क्योंकि धान के खेतों में कटाई प्रारंभ हो चुकी है. इसलिए किसानों को जल्द से जल्द यह घोल प्राप्त कराया जाएगा.

ताकि वो अपने खेतों में छिड़काव कर सके और उन्हें पराली ना जलाना पड़े. इसके लिए गुड़ का घोल बनाया जा रहा है और उसे उबाला जा रहा है. उबालने के बाद इसे ठंडा किया जाएगा. घोल को ठंडा करने के बाद 25 लीटर पानी में ढाई सौ ग्राम बेसन मिलाएंगे और पूसा एग्रीकल्चर द्वारा निर्मित 20 कैप्सूल घोल में डाले जाएंगे.



4 से 5 दिनों में दिखने लगेगी ग्रोथ

कैप्सूल डालने के बाद घोल को अच्छी तरह से मिलाएंगे और इसे कपड़े से ढककर एक अंधेरे कमरे में रखा जाएगा. 4 से 5 दिनों के अंदर घोल में ग्रोथ दिखनी शुरू हो जाएगी. उसके बाद ये घोल खेत में प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाएगा. दिल्ली सरकार ने इसके लिए प्लानिंग की है और 11 अक्टूबर से दिल्ली के खेतों में इस घोल का छिड़काव किया जाएगा.


खुद गलने लगेगा पराली


पूसा केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईपी सिंह ने बताया कि घोल की मदद से खेतों में पराली खुद-ब-खुद गलने लगेगा और खाद के रूप में काम करेगा. इस तकनीक के प्रयोग से किसानों को अपने खेत में पराली को जलाना नहीं पड़ेगा तो वहीं दूसरी तरफ खेतों की उपजाऊ क्षमता में भी वृद्धि होगी.



लगेंगे 20 से 25 दिन
पराली को पूरी तरह से गलने में 20 से 25 दिन का समय लगेगा. इसके लिए धान को काटने के तुरंत बाद इस घोल का छिड़काव करना है. घोल का प्रयोग करने के बाद रोटावेटर की सहायता से पराली को खेत में मिलाना होगा. इसके बाद 10 से 15 दिन लगेगा खेतों की जुताई करने में. तब तक ज्यादातर पराली पूरी तरह से गल चुका होगा और खाद के रूप में तब्दील हो चुका होगा.किसानों को गेहूं की बुवाई में किसी प्रकार की समस्या भी नहीं होगी.

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