ETV Bharat / state

'वन नेशन वन इलेक्शन में नहीं है कानूनी रोड़ा, जरूरत है तो इच्छाशक्ति की- सुभाष कश्यप - delhi

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की माने तो उनका कहना है कि इसके लिए कानून में बिना बदलाव किए भी इसको लागू किया जा सकता है अगर देश की सत्ता पर काबिज सरकार चाहे तो इसको लागू कर सकती है.

सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ
author img

By

Published : Jun 19, 2019, 8:03 PM IST

Updated : Jun 19, 2019, 8:37 PM IST

नई दिल्ली: देश में एक बार फिर 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के मुद्दे पर राजनीति तेज हो गई है, पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर विचार के लिए सभी दलों के नेताओं की मीटिंग बुलाई है. पीएम की पहल से इस संवेदनशील मुद्दे पर फिर एक बड़ी राजनीतिक बहस शुरू हो गयी है. विपक्ष के कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बात की.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बातचीत

'देशहित में होगा फैसला'

संविधान विशेषज्ञों की मानें तो ये फैसला देश हित में है और इसको सरकार चाहे तो लागू कर सकती है इसके लिए किसी भी संविधान में बदलाव की जरूरत नहीं है. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की माने तो उनका कहना है कि इसके लिए कानून में बिना बदलाव किए भी इसको लागू किया जा सकता है अगर देश की सत्ता पर काबिज सरकार चाहे तो इसको लागू कर सकती है. हालांकि इस को एकदम से लागू नहीं किया जा सकता. इसे कुछ समय सीमा के भीतर लागू किया जा सकता है

देशहित में है वन नेशन वन इलेक्शन- संविधान विशेषज्ञ
सुभाष कश्यप कहते हैं कि जब देश में अलग-अलग चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं तो आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सुशासन को लागू करना मुश्किल हो जाता है और सरकारें फैसले नहीं ले पाती. बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल चुनाव कराने के लिए होता है जिससे स्कूलों को बंद करना पड़ता है. ये नियम लागू हो जाने पर चुनाव के नाम पर बार-बार स्कूलों को, सरकारी ऑफिसों को बंद नहीं करना पड़ेगा.

special talk with constitution expert subhash kashyap on on nation on election
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से खास बातचीत

'चुनावों में खर्च होते हैं हजारों-करोडो़ं रुपये'
सुभाष कश्यप कहते हैं कि 2019 के इलेक्शन में 55 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए, इससे पहले 2014 के चुनावों में करीब 30 हजार करोड़ खर्च किया गया. इसमें वो पैसे शामिल नहीं है जो काला धन के रूप में चुनाव में खर्च किया जाता है जैसे कि टिकट खरीदने के लिए, वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए, शराब बांटने के लिए, जो चुनाव में अवैध रूप से किए जाते हैं.

'एक दिन में ये संभव नहीं'
सुभाष कश्यप ये भी कहते हैं कि ये एक दिन में संभव नहीं है, अगर हम 10 साल का वक्त लेकर चले तो पंचायत से लेकर संसद तक सभी चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं.

'मतदाता सूची बनाने पर खर्च होते हैं करोड़ों'
सुभाष कश्यप ये भी कहते हैं कि राज्य सरकारें चाहे तो कानून बनाकर इसे लागू कर सकती है. 18-19 राज्यों में कानून बनाकर ये किया जा सकता है कि पंचायतों, नगर पालिकाओं और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो. उन्होंने ये भी कहा कि अभी मतदाता सूची अलग-अलग होती है, लेकिन वोटर लिस्ट एक होनी चाहिए. क्योंकि अलग अलग मतदाता सूचनी बनाने पर लाखों करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 328 के अंतर्गत राज्य की विधानसभाएं ऐसा कानून बना सकती है.

'कानून बनाने की जरूरत नहीं'
सुभाष कश्यप बताते हैं कि स्टेट असेंबली और लोकसभा के चुनाव एक साथ करने के लिए कोई नया कानून बनाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि विधानसभाओं को भंग कर उन तमाम राज्यों के चुनाव एक साथ करा सकते हैं जहां एक या डेढ़ साल के भीतर चुनाव होने हैं.

नई दिल्ली: देश में एक बार फिर 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के मुद्दे पर राजनीति तेज हो गई है, पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर विचार के लिए सभी दलों के नेताओं की मीटिंग बुलाई है. पीएम की पहल से इस संवेदनशील मुद्दे पर फिर एक बड़ी राजनीतिक बहस शुरू हो गयी है. विपक्ष के कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बात की.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बातचीत

'देशहित में होगा फैसला'

संविधान विशेषज्ञों की मानें तो ये फैसला देश हित में है और इसको सरकार चाहे तो लागू कर सकती है इसके लिए किसी भी संविधान में बदलाव की जरूरत नहीं है. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की माने तो उनका कहना है कि इसके लिए कानून में बिना बदलाव किए भी इसको लागू किया जा सकता है अगर देश की सत्ता पर काबिज सरकार चाहे तो इसको लागू कर सकती है. हालांकि इस को एकदम से लागू नहीं किया जा सकता. इसे कुछ समय सीमा के भीतर लागू किया जा सकता है

देशहित में है वन नेशन वन इलेक्शन- संविधान विशेषज्ञ
सुभाष कश्यप कहते हैं कि जब देश में अलग-अलग चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं तो आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सुशासन को लागू करना मुश्किल हो जाता है और सरकारें फैसले नहीं ले पाती. बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल चुनाव कराने के लिए होता है जिससे स्कूलों को बंद करना पड़ता है. ये नियम लागू हो जाने पर चुनाव के नाम पर बार-बार स्कूलों को, सरकारी ऑफिसों को बंद नहीं करना पड़ेगा.

special talk with constitution expert subhash kashyap on on nation on election
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से खास बातचीत

'चुनावों में खर्च होते हैं हजारों-करोडो़ं रुपये'
सुभाष कश्यप कहते हैं कि 2019 के इलेक्शन में 55 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए, इससे पहले 2014 के चुनावों में करीब 30 हजार करोड़ खर्च किया गया. इसमें वो पैसे शामिल नहीं है जो काला धन के रूप में चुनाव में खर्च किया जाता है जैसे कि टिकट खरीदने के लिए, वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए, शराब बांटने के लिए, जो चुनाव में अवैध रूप से किए जाते हैं.

'एक दिन में ये संभव नहीं'
सुभाष कश्यप ये भी कहते हैं कि ये एक दिन में संभव नहीं है, अगर हम 10 साल का वक्त लेकर चले तो पंचायत से लेकर संसद तक सभी चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं.

'मतदाता सूची बनाने पर खर्च होते हैं करोड़ों'
सुभाष कश्यप ये भी कहते हैं कि राज्य सरकारें चाहे तो कानून बनाकर इसे लागू कर सकती है. 18-19 राज्यों में कानून बनाकर ये किया जा सकता है कि पंचायतों, नगर पालिकाओं और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो. उन्होंने ये भी कहा कि अभी मतदाता सूची अलग-अलग होती है, लेकिन वोटर लिस्ट एक होनी चाहिए. क्योंकि अलग अलग मतदाता सूचनी बनाने पर लाखों करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 328 के अंतर्गत राज्य की विधानसभाएं ऐसा कानून बना सकती है.

'कानून बनाने की जरूरत नहीं'
सुभाष कश्यप बताते हैं कि स्टेट असेंबली और लोकसभा के चुनाव एक साथ करने के लिए कोई नया कानून बनाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि विधानसभाओं को भंग कर उन तमाम राज्यों के चुनाव एक साथ करा सकते हैं जहां एक या डेढ़ साल के भीतर चुनाव होने हैं.

Intro:डेडलाइन - दक्षिणी दिल्ली (सैनिक फार्म )

देश में एक बार फिर वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर सरगर्मी तेज है और इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे बढ़ रहे हैं और इस मुद्दे पर विचार करने के लिए सभी दलों के नेताओं का मीटिंग दिल्ली में बुलाया गया है हालांकि विपक्ष के कई नेता इसका विरोध भी कर रहे हैं लेकिन अगर संविधान विशेषज्ञ की बात माने तो यह देश हित में है और इसको सरकार चाहे तो लागू कर सकती है इसके लिए किसी भी संविधान में बदलाव की जरूरत नहीं है ।


Body:वन नेशन वन इलेक्शन का मुद्दा एक बार फिर गर्म है अगर इस पूरे मुद्दे पर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की माने तो उनका कहना है कि इसके लिए कानून में बिना बदलाव किए भी इसको लागू किया जा सकता है अगर देश की सत्ता पर काबिज सरकार चाहे तो इसको लागु किया जा सकता हैं हालांकि इस को एकदम से लागू नहीं किया जा सकता है इसके लिए कुछ समय सीमा ले करके इसको लागू किया जा सकता है और इसके लिए किसी भी कानून में किसी भी प्रकार की बदलाव की कोई जरूरत नहीं है ।

वन नेशन वन इलेक्शन देश हित में हैं इसके पीछे तर्क संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि जब देश में अलग-अलग चुनाव अलग अलग समय पर होते हैं तो चुनाव आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सुशासन को लागू करना मुश्किल हो जाता है और सरकारे फैसले नहीं ले पाती हैं वही काफी मात्रा में सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल चुनाव कराने के लिए होता है जिससे स्कूलों को बंद करना पड़ता है कई सरकारी संगठन जो जनता के हित के लिए कार्य करती है उनको भी इलेक्शन के लिए बार-बार उनके कार्यो को बंद करना पड़ता है लेकिन अगर यह चुनाव 5 साल में एक बार करा लिया जाएगा तो अगले पाँच साल तक सारी सरकारी एजेंसियां अपने जनहित के कार्यो में लगी रहेंगी और बार बार चुनाव के कारण उतपन्न होने वाली सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा और चुनाव के नाम पर बार-बार स्कूलों को सरकारी ऑफिसर को नहीं बंद करना पड़ेगा साथ ही संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि रिपोर्ट की माने तो इस बार के लोकसभा के 2019 का चुनाव हुआ है उसमें 55 हजार खर्च किए गए हैं साथ ही उनका कहना है कि इसमें वो पैसे शामिल नहीं है जो काला धन के रूप में चुनाव में खर्च किया जाता है जैसे कि टिकट खरीदने के लिए वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए दारु शराब बांटने के लिए इत्यादि जो चुनाव में अवैध रूप से किए जाते हैं वही वह कहते हैं कि 2014 के चुनाव में लगभग 33 हजार करोड़ खर्च हुए थे उसमें भी अवैध रूप से खर्च किए गए काला धन शामिल नहीं हैं इसीलिए यह बहुत ही नितांत आवश्यक है कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन को लागू किया जाए और इसके लिए किसी भी विपक्षी दलों की मीटिंग की जरूरत नहीं है अगर देश की सत्ता पर जो पार्टी सत्तासीन है वह चाहे तो इसे लागू कर सकती हैं

संविधान कहता है कि सरकार चाहे तू 5 साल के पहले कभी भी विधानसभा या लोकसभा को भंग कर चुनाव करा सकती है हालांकि 5 साल से अधिक की अनुमति नहीं है इसीलिए संविधान विशेषज्ञ का कहना है कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने के लिए किसी भी कानूनी बदलाव की जरूरत नहीं है अगर सरकार जो कि सत्ता में काबिज है वह चाहे तो एक समयसीमा देखकर उस दौरान एक साथ चुनाव करा सकती लेकिन वही चाहे की सहमति लिया जाए तो यह संभव नहीं है क्योंकि यह मुद्दा देश हित में है और क्षेत्रवाद के मुद्दे पर जो राजनीतिक पार्टियां राजनीति करती हैं इस मसले पर कभी भी तैयार नहीं होंगी इसलिए केंद्रीय सत्ता पर काबिज पार्टी को इस पर ध्यान देना
होगा और इसको लागू करना चाहिए ।

बाइट - सुभाष कश्यप (संविधान विशेषज्ञ )


Conclusion:वन नेशन वन इलेक्शन मुद्दा देश हित में है लेकिन इसको लागू करने के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत है इसमें अगर बीजेपी जो कि देश की सत्ता पर काबिज है वह खुद इसको लागू कर सकती है क्योंकि उसकी सरकार है देश के साथ साथ देश के लगभग 20 प्रदेशों में है इसीलिए वो कम से कम इतने प्रदेशों में एक साथ चुनाव करा सकती है वहीं साथ ही नगर निकाय हो और पंचायत के भी एक साथ कराए जा सकते हैं उसके लिए राज्यों के विधानसभाओं में कानून में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी ।
Last Updated : Jun 19, 2019, 8:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.