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प्रदूषण के कारण बढ़ रही सांस संबंधी बीमारियां, दुनिया में अस्थमा से होने वाली 43 प्रतिशत मौतें सिर्फ भारत में

Respiratory Diseases Increasing: दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने प्रदूषण पर चिंता जाहिर की है. प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार को एक परिवार एक वाहन या दो वाहन की सख्त नीति बनानी होगी.

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प्रदूषण के कारण बढ़ रही सांस संबंधी बीमारियां
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 7, 2023, 9:59 AM IST

Updated : Oct 7, 2023, 10:23 AM IST

सांस संबंधी बीमारियों पर डॉक्टर की राय

नई दिल्ली: बढ़ते प्रदूषण के कारण देश में सांस संबंधी बीमारी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इन बीमारियों पर मंथन करने और इसके समाधान के लिए इंडियन चेस्ट सोसायटी ने दिल्ली में अपना 25वां राष्ट्रीय सम्मेलन, नैपकॉन आयोजित किया है. कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया. इस बीच अग्रणी पल्मोनोलॉजिस्ट ने श्वसन स्वास्थ्य को बेहतर बनाना: एक्सप्लोरिंग इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी, वायुमंडलीय प्रदूषण, सीओपीडी और अस्थमा प्रबंधन पर विचार-विमर्श किया.

कार्यक्रम की आयोजन समिति के अध्यक्ष और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. राकेश चावला ने कहा इस समस्या को रोकने के लिए सरकार को एक परिवार एक वाहन या एक परिवार दो वाहन की नीति बनानी चाहिए और इसका पालन सुनिश्चित करना चाहिए. हम सरकार को सांस संबंधी बीमारी की समस्याओं की रोकथाम के लिए इस सम्मेलन के माध्यम से प्रस्ताव भेजेंगे. इस दौरान डाक्टरों ने केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को निशुल्क रसोई गैस सिलेंडर देने के लिए चलाई गई उज्ज्वला योजना की तारीफ की.

इंडियन चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. डीजे रॉय ने टिप्पणी की कि बीमारियां भारत में एक प्रमुख जन स्वास्थ्य चिंता है, जिसमें श्वसन संक्रमण, सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर के मामले सार्वधिक सामने आते हैं. सोसाइटी के सचिव डॉ. राजेश स्वर्णकार ने नींद संबंधी विकारों के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्लीप एपनिया भारत में एक सामान्य श्वसन विकार है, जिससे लगभग 18 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं. स्लीप एपनिया में योगदान देने वाले कारकों में मोटापा, धूम्रपान और शराब का सेवन शामिल है.

सीओपीडी के देश में 6.5 करोड़ मरीज: इंडियन चेस्ट सोसाइटी के निर्वाचित सचिव डॉ. राजा धर ने कहा कि भारत मेंं सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के 6.5 करोड़ मरीज हैं, जो यूरोप से करीब दोगुना हैं. इसके अलावा अस्थमा से करीब 3.5 करोड़ लोग पीड़ित हैं. इस तरह सीओपीडी और अस्थमा को मिलाकर दस करोड़ लोगों को सांस की पुरानी बीमारी है. दुनिया में अस्थमा से होने वाली 43 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं. इसके अलावा टीबी, निमोनिया सहित कई अन्य फेफड़े की बीमारियां भी बड़ी समस्या हैं. उन्होंने बताया कि जनरल मेडिसिन के डाक्टर के पास ओपीडी में दस में से छह मरीज सांस की बीमारियों के साथ पहुंचते हैं. फिर भी अभी इस बात पर चर्चा हो रही है कि यह एमबीबीएस पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए या नहीं. यदि डाक्टरों को पूरी जानकारी नहीं होगी तो वे इलाज कैसे कर पाएंगे.

सीओपीडी का कारण : डॉ. राकेश चावला ने कहा कि धूम्रपान व गांवों और छोटे शहरों में खाना बनाने के लिए घरेलू ईंधन कोयला, उपले, लकड़ी का इस्तेमाल सीओपीडी और अस्थमा जैसी बीमारियों का एक प्रमुख कारण है. इसके अलावा वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या से प्रदूषण का स्तर जानलेवा स्थिति में पहुंच रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में प्रदूषण की वजह से ग्रेप जैसी पाबंदियां लगानी पड़ती हैं. इन दो महीने में दिल्ली की वायु गुणवत्ता बहुत खराब रहती है. इसके कारण बड़ी संख्या में लोग सांस के मरीज हो रहे हैं. दिल्ली में प्रदूषण का एक बड़ा कारण सड़कों पर वाहनों का अधिक दबाव है. एक परिवार में कई-कई गाड़ियां हैं. दिल्ली मेंं ऐसे परिवार भी हैं जिसके हर सदस्य के पास निजी कार है. इसे नियंत्रित करने की नीति तैयार करने की आवश्यकता है. साथ ही समाज में कार पूलिंग जैसी व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है. इससे 50 प्रतिशत प्रदूषण कम किया जा सकता है. इसके अलावा सरकार को धूम्रपान और सिगरेट, बीड़ी के उत्पादन पर रोक लगानी चाहिए.

ये भी पढ़ें : बच्चों के मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है वायु प्रदूषण

ये भी पढ़ें : Winter Action Plan: रविवार से राजधानी में सख्त पाबंदियां, जानें केजरीवाल सरकार ने क्या-क्या किया ऐलान

सांस संबंधी बीमारियों पर डॉक्टर की राय

नई दिल्ली: बढ़ते प्रदूषण के कारण देश में सांस संबंधी बीमारी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इन बीमारियों पर मंथन करने और इसके समाधान के लिए इंडियन चेस्ट सोसायटी ने दिल्ली में अपना 25वां राष्ट्रीय सम्मेलन, नैपकॉन आयोजित किया है. कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया. इस बीच अग्रणी पल्मोनोलॉजिस्ट ने श्वसन स्वास्थ्य को बेहतर बनाना: एक्सप्लोरिंग इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी, वायुमंडलीय प्रदूषण, सीओपीडी और अस्थमा प्रबंधन पर विचार-विमर्श किया.

कार्यक्रम की आयोजन समिति के अध्यक्ष और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. राकेश चावला ने कहा इस समस्या को रोकने के लिए सरकार को एक परिवार एक वाहन या एक परिवार दो वाहन की नीति बनानी चाहिए और इसका पालन सुनिश्चित करना चाहिए. हम सरकार को सांस संबंधी बीमारी की समस्याओं की रोकथाम के लिए इस सम्मेलन के माध्यम से प्रस्ताव भेजेंगे. इस दौरान डाक्टरों ने केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को निशुल्क रसोई गैस सिलेंडर देने के लिए चलाई गई उज्ज्वला योजना की तारीफ की.

इंडियन चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. डीजे रॉय ने टिप्पणी की कि बीमारियां भारत में एक प्रमुख जन स्वास्थ्य चिंता है, जिसमें श्वसन संक्रमण, सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर के मामले सार्वधिक सामने आते हैं. सोसाइटी के सचिव डॉ. राजेश स्वर्णकार ने नींद संबंधी विकारों के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्लीप एपनिया भारत में एक सामान्य श्वसन विकार है, जिससे लगभग 18 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं. स्लीप एपनिया में योगदान देने वाले कारकों में मोटापा, धूम्रपान और शराब का सेवन शामिल है.

सीओपीडी के देश में 6.5 करोड़ मरीज: इंडियन चेस्ट सोसाइटी के निर्वाचित सचिव डॉ. राजा धर ने कहा कि भारत मेंं सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के 6.5 करोड़ मरीज हैं, जो यूरोप से करीब दोगुना हैं. इसके अलावा अस्थमा से करीब 3.5 करोड़ लोग पीड़ित हैं. इस तरह सीओपीडी और अस्थमा को मिलाकर दस करोड़ लोगों को सांस की पुरानी बीमारी है. दुनिया में अस्थमा से होने वाली 43 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं. इसके अलावा टीबी, निमोनिया सहित कई अन्य फेफड़े की बीमारियां भी बड़ी समस्या हैं. उन्होंने बताया कि जनरल मेडिसिन के डाक्टर के पास ओपीडी में दस में से छह मरीज सांस की बीमारियों के साथ पहुंचते हैं. फिर भी अभी इस बात पर चर्चा हो रही है कि यह एमबीबीएस पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए या नहीं. यदि डाक्टरों को पूरी जानकारी नहीं होगी तो वे इलाज कैसे कर पाएंगे.

सीओपीडी का कारण : डॉ. राकेश चावला ने कहा कि धूम्रपान व गांवों और छोटे शहरों में खाना बनाने के लिए घरेलू ईंधन कोयला, उपले, लकड़ी का इस्तेमाल सीओपीडी और अस्थमा जैसी बीमारियों का एक प्रमुख कारण है. इसके अलावा वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या से प्रदूषण का स्तर जानलेवा स्थिति में पहुंच रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में प्रदूषण की वजह से ग्रेप जैसी पाबंदियां लगानी पड़ती हैं. इन दो महीने में दिल्ली की वायु गुणवत्ता बहुत खराब रहती है. इसके कारण बड़ी संख्या में लोग सांस के मरीज हो रहे हैं. दिल्ली में प्रदूषण का एक बड़ा कारण सड़कों पर वाहनों का अधिक दबाव है. एक परिवार में कई-कई गाड़ियां हैं. दिल्ली मेंं ऐसे परिवार भी हैं जिसके हर सदस्य के पास निजी कार है. इसे नियंत्रित करने की नीति तैयार करने की आवश्यकता है. साथ ही समाज में कार पूलिंग जैसी व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है. इससे 50 प्रतिशत प्रदूषण कम किया जा सकता है. इसके अलावा सरकार को धूम्रपान और सिगरेट, बीड़ी के उत्पादन पर रोक लगानी चाहिए.

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Last Updated : Oct 7, 2023, 10:23 AM IST
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