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जो छोड़ देते हैं अपनों की अस्थियां, उन्हें श्मशान समिति करवाती है प्रवाहित

दिल्ली में कोरोना महामारी के चलते जान गंवाने वाले लोगों की अस्थियों को चुनने के लिए लोग लगातार श्मशान घाटों में पहुंच रहे हैं. गाजीपुर श्मशान घाट के पुजारी ने बताया कि जिन लोगों के परिजन नहीं आते हैं उनकी अस्थियों का विसर्जन श्मशान घाट के द्वारा अपने खर्चे पर ही किया जाता है.

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कोरोना मरीजों के अंतिम संस्कार के बाद मोक्ष की तैयारी
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Published : May 13, 2021, 6:48 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी कोरोना महामारी के चलते बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गवां रहे हैं, जिनका कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए अंतिम संस्कार किया जा रहा है. लेकिन हिंदू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करने भर से मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती बल्कि उसके बाद दाह संस्कार वाली जगह से अस्थियों को लेकर किसी पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है. जिससे बाद ही मृतक की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि लोग अपने परिजनों की फूल (अस्थियां) चुनने श्मशान घाटों में पहुंच रहे हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत ने गाजीपुर श्मशान घाट के पुजारी सुशील से बातचीत की.

कोरोना मरीजों के अंतिम संस्कार के बाद मोक्ष की तैयारी

बड़ी संख्या में आ रहे हैं लोग
ईटीवी भारत से बात करते हुए गाजीपुर श्मशान घाट के मुख्य पुजारी सुशील ने बताया कि बड़ी संख्या में लोग अपने मृत परिजनों के फूल चुनने गाजीपुर श्मशान घाट आ रहे हैं. आंकड़ों में बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर गाजीपुर श्मशान घाट में 50 लोगों का अंतिम संस्कार कोरोना विधि से होता है तो उनमें से 45 लोगों के परिजन अगले दिन अस्थियां लेने आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें- दिल्ली: घटकर 14.24% हुई संक्रमण दर, 24 घंटे में 10,489 केस और 308 मौत

क्या कोरोना मरीज की अस्थियां छूना सेफ है
फूल चुनने के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल के पालन से जुड़े सवाल के जवाब में पुजारी सुशील ने बताया कि अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार के बाद कोई वायरस जिंदा नहीं रहता है. इसलिए कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा नहीं होता. लोगों की सुरक्षा के लिए श्मशान घाट को हर दूसरे दिन सेनिटाइज किया जाता है. अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार के बाद कोई वायरस या कीटाणु जिंदा नहीं रहता. इसलिए फूल चुनने के लिए कोई खास गाइडलाइन का पालन नहीं किया जाता है.

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जमा अस्थियां

सबकी अस्थियां होती हैं विसर्जित
गाजीपुर श्मशान घाट के मुख्य पुजारी सुशील ने बताया कि बड़ी संख्या में लोग अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के बाद फूल (अस्थियां) चुनने आ रहे हैं, वहीं कई लोग कोरोना मरीजों की अस्थियों को उठाने से कतराते हैं और श्मशान घाट को सूचना दे देते हैं. जिसके बाद शमशान घाट के कर्मचारी ही उनके परिजनों की अस्थियों को चुनकर नदियों में प्रवाहित करते हैं. इसके अलाला वे लोग जो फूल चुनने नहीं आते और सूचना भी नहीं देते तो ऐसे में अस्थियों को जमा किया जाता है और हर 6 महीने पर उन अस्थियों को हरिद्वार में प्रवाहित किया जाता है. जिसका पूरा खर्चा शमशान प्रबंधन समिति वहन करता है.

अस्थियां रखने की नहीं है कोई विशेष व्यवस्था
गाजीपुर श्मशान घाट के पुजारी सुशील ने बताया कि कुछ दिनों पहले तक श्मशान घाट पर प्रतिदिन 100 से भी ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा था. तो ऐसे में अस्थियों को रखने के लिए कोई खास जगह निर्धारित नहीं की गई है. अगर परिजनों द्वारा अस्थियों को नहीं चुना जाता है तो फिर उन्हें बोरों में भरकर एक जगह रखा जाता है और हर 6 महीने पर उन्हें हरिद्वार में प्रवाहित कर दिया जाता है.

नई दिल्ली: राजधानी कोरोना महामारी के चलते बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गवां रहे हैं, जिनका कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए अंतिम संस्कार किया जा रहा है. लेकिन हिंदू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करने भर से मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती बल्कि उसके बाद दाह संस्कार वाली जगह से अस्थियों को लेकर किसी पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है. जिससे बाद ही मृतक की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि लोग अपने परिजनों की फूल (अस्थियां) चुनने श्मशान घाटों में पहुंच रहे हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत ने गाजीपुर श्मशान घाट के पुजारी सुशील से बातचीत की.

कोरोना मरीजों के अंतिम संस्कार के बाद मोक्ष की तैयारी

बड़ी संख्या में आ रहे हैं लोग
ईटीवी भारत से बात करते हुए गाजीपुर श्मशान घाट के मुख्य पुजारी सुशील ने बताया कि बड़ी संख्या में लोग अपने मृत परिजनों के फूल चुनने गाजीपुर श्मशान घाट आ रहे हैं. आंकड़ों में बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर गाजीपुर श्मशान घाट में 50 लोगों का अंतिम संस्कार कोरोना विधि से होता है तो उनमें से 45 लोगों के परिजन अगले दिन अस्थियां लेने आ रहे हैं.

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क्या कोरोना मरीज की अस्थियां छूना सेफ है
फूल चुनने के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल के पालन से जुड़े सवाल के जवाब में पुजारी सुशील ने बताया कि अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार के बाद कोई वायरस जिंदा नहीं रहता है. इसलिए कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा नहीं होता. लोगों की सुरक्षा के लिए श्मशान घाट को हर दूसरे दिन सेनिटाइज किया जाता है. अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार के बाद कोई वायरस या कीटाणु जिंदा नहीं रहता. इसलिए फूल चुनने के लिए कोई खास गाइडलाइन का पालन नहीं किया जाता है.

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जमा अस्थियां

सबकी अस्थियां होती हैं विसर्जित
गाजीपुर श्मशान घाट के मुख्य पुजारी सुशील ने बताया कि बड़ी संख्या में लोग अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के बाद फूल (अस्थियां) चुनने आ रहे हैं, वहीं कई लोग कोरोना मरीजों की अस्थियों को उठाने से कतराते हैं और श्मशान घाट को सूचना दे देते हैं. जिसके बाद शमशान घाट के कर्मचारी ही उनके परिजनों की अस्थियों को चुनकर नदियों में प्रवाहित करते हैं. इसके अलाला वे लोग जो फूल चुनने नहीं आते और सूचना भी नहीं देते तो ऐसे में अस्थियों को जमा किया जाता है और हर 6 महीने पर उन अस्थियों को हरिद्वार में प्रवाहित किया जाता है. जिसका पूरा खर्चा शमशान प्रबंधन समिति वहन करता है.

अस्थियां रखने की नहीं है कोई विशेष व्यवस्था
गाजीपुर श्मशान घाट के पुजारी सुशील ने बताया कि कुछ दिनों पहले तक श्मशान घाट पर प्रतिदिन 100 से भी ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा था. तो ऐसे में अस्थियों को रखने के लिए कोई खास जगह निर्धारित नहीं की गई है. अगर परिजनों द्वारा अस्थियों को नहीं चुना जाता है तो फिर उन्हें बोरों में भरकर एक जगह रखा जाता है और हर 6 महीने पर उन्हें हरिद्वार में प्रवाहित कर दिया जाता है.

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