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मोबाइल लील रहा बच्चों का बचपन, साइकोलॉजिस्ट से जानिए बचने का उपाय - साइकोलॉजिस्ट कविता यादव

कोरोना काल में बच्चों की दिनचर्या में मोबाइल एक अहम हिस्सा बन चुका है. पढ़ाई से लेकर खेलकूद तक के लिए बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ऐसा देखने में आया है कि ज्यादा देर ऑनलाइन मोबाइल गेम खेलने से बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है और बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई और गेम्स के दौरान बच्चों के माता-पिता को क्या कुछ सावधानी बरतनी चाहिए, उनका बच्चों के प्रति क्या व्यवहार होना चाहिए इसे लेकर ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट और पेरेंटिंग कोच कविता यादव से बातचीत की.

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मोबाइल लील रहा बच्चों का बचपन
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Published : Jun 20, 2021, 10:10 PM IST

नई दिल्ली: कोरोनाकाल में लोगों के जीने का तरीका बदला है. अगर बात बच्चों की करें तो अभी के समय बच्चों की दिनचर्या में मोबाइल एक अहम हिस्सा बन चुका है. पढ़ाई से लेकर खेलकूद तक के लिए बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ऐसा देखने में आया है कि ज्यादा देर ऑनलाइन मोबाइल गेम खेलने से बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है और बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई और गेम्स के दौरान बच्चों के माता-पिता को क्या कुछ सावधानी बरतनी चाहिए, उनका बच्चों के प्रति क्या व्यवहार होना चाहिए इसे लेकर ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट और पेरेंटिंग कोच कविता यादव से बातचीत की.

'बोझ डालना गलत'
कविता यादव ने बताया कि जब महामारी शुरू हुई, पिछले साल मार्च 2020 में उसके बाद स्कूल और टीचर ने मिलकर स्थिति को एकदम संभाल लिया. उन्होंने स्थिति की नाजुकता को समझते हुए बच्चों का कोई नुकसान ना हो, यह सोचते समझते हुए बच्चों के स्कूल को ऑनलाइन मोड में ले आए. ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चे भी खुश हुए और उनके मां-बाप ने भी राहत की सांस ली कि उनके बच्चे व्यस्त हो गए हैं लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि ऑनलाइन पढ़ाई का माध्यम इतना लंबा चलेगा.

मोबाइल लील रहा बच्चों का बचपन

आज हम जून 2021 में हैं. ऑनलाइन पढ़ाई का फायदा तो है, स्ट्रक्चर है लेकिन अब हम यह समझने लगे हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों और मां-बाप के बीच कैसे स्ट्रगल बन गया है. अभी के समय बच्चों पर पैरंट्स के एक्सपेक्टेशन बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं और मां-बाप की उम्मीद को पूरा करने के लिए बच्चे एक कमरे में बैठकर मोबाइल स्क्रीन के सामने अपना दिन गुजार रहे हैं. यह मामला यहीं तक सीमित नहीं है. जब ऑनलाइन क्लासेज खत्म हो जाती हैं तो पेरेंट्स कहते हैं कि बच्चों होमवर्क कर लो, जो आज पढ़ा है उसका रिवीजन कर लो.

'खेल भी जरूरी'
कविता यादव ने बताया कि बच्चों को समझ नहीं आता कि ऐसे में आखिर बच्चे क्या करें. फिर ऐसे में शुरू होता है बच्चे और अभिभावक के बीच स्ट्रगल. हमें यह समझना होगा कि पहले जब बच्चे स्कूल जाते थे तो पढ़ाई के अलावा जब स्पोर्ट्स पीरियड होता था तो बच्चे नीचे ग्राउंड में खेलने जाते थे. वहां उन्हें खेलने कूदने की छूट होती थी.उ नकी एनर्जी चैनेलाइज होती थी. इसके अलावा बच्चे स्कूल में म्यूजिक गेम्स आदि सीखते थे लेकिन अभी यह सब बच्चो को स्क्रीन पर बैठकर करना पड़ता है.

'बच्चों को भी आराम की जरूरत'

अभी के समय पेरेंट्स को यह समझना होगा बच्चों को भी आराम की जरूरत है. हर क्लास को उन्हें अटेंड करने की जरूरत नहीं है. पेरेंट्स को बच्चों को समझना होगा. क्योंकि बच्चे तो बच्चे हैं और वो बाल बुद्धि होते हैं. कोई फर्क नही पड़ता अगर बच्चे ने एक क्लास मिस कर दी तो. पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि ऑनलाइन क्लास के बाद बच्चों को आराम करने के लिए थोड़ा समय दिया जाए. छोटे बच्चों से यह उम्मीद रखना कि स्क्रीन के सामने वह खुद से बैठ जाएं, खुद से क्लास अटेंड कर लें, यह गलत है. बच्चों के साथ मां-बाप को लगना पड़ेगा. अभी के समय बच्चों को मां-बाप के प्यार की, विश्वास की और उनके साथ की जरूरत है.



'ऑनलाइन गेम से भी हो रहे नुकसान'
कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के साथ बच्चों का रुझान ऑनलाइन गेम्स की तरफ भी बढ़ा है. कई बार हिंसक गेम्स खेलने के कारण बच्चों के विचार भी हिंसक होते जा रहे हैं. राजधानी में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां ऑनलाइन गेम खेलने से मना करने पर बच्चों ने अपने पैरंट्स के साथ मारपीट की है या फिर ऑनलाइन गेम्स खेलने के चक्कर में घर से पैसों की चोरी की है.

'गेम्स के चक्कर में कर दी मां बाप और बहन की हत्या'
यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन एक बेटे ने ऑनलाइन गेम के लिए अपने मां बाप और बहन की हत्या कर दी थी. मामला दक्षिण पश्चिमी दिल्ली का था जहां पुलिस को यह सूचना मिली कि एक घर में तीन लाशें पड़ी हुई है. शाम होते-होते पुलिस ने इस पूरे मामले का पर्दाफाश कर लिया था और घर के बेटे को ही गिरफ्तार कर लिया. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि आरोपी की बहन उसे गेम खेलने से मना करती थी.

आरोपी को यह लगता था कि उसकी बहन ही उसके मां-बाप को उसके खिलाफ भड़का रही है. जिसके बाद उसने अपने बाप मां और बहन की हत्या कर दी. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रुप बना रखा था, जिसमें 10 लोग थे, जो गेम खेलते थे. इसके साथ ही उन्होंने दक्षिण दिल्ली में एक कमरा भी किराए पर लिया था, जहां वह बैठकर ऑनलाइन गेम खेलते थे.

नई दिल्ली: कोरोनाकाल में लोगों के जीने का तरीका बदला है. अगर बात बच्चों की करें तो अभी के समय बच्चों की दिनचर्या में मोबाइल एक अहम हिस्सा बन चुका है. पढ़ाई से लेकर खेलकूद तक के लिए बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ऐसा देखने में आया है कि ज्यादा देर ऑनलाइन मोबाइल गेम खेलने से बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है और बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई और गेम्स के दौरान बच्चों के माता-पिता को क्या कुछ सावधानी बरतनी चाहिए, उनका बच्चों के प्रति क्या व्यवहार होना चाहिए इसे लेकर ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट और पेरेंटिंग कोच कविता यादव से बातचीत की.

'बोझ डालना गलत'
कविता यादव ने बताया कि जब महामारी शुरू हुई, पिछले साल मार्च 2020 में उसके बाद स्कूल और टीचर ने मिलकर स्थिति को एकदम संभाल लिया. उन्होंने स्थिति की नाजुकता को समझते हुए बच्चों का कोई नुकसान ना हो, यह सोचते समझते हुए बच्चों के स्कूल को ऑनलाइन मोड में ले आए. ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चे भी खुश हुए और उनके मां-बाप ने भी राहत की सांस ली कि उनके बच्चे व्यस्त हो गए हैं लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि ऑनलाइन पढ़ाई का माध्यम इतना लंबा चलेगा.

मोबाइल लील रहा बच्चों का बचपन

आज हम जून 2021 में हैं. ऑनलाइन पढ़ाई का फायदा तो है, स्ट्रक्चर है लेकिन अब हम यह समझने लगे हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों और मां-बाप के बीच कैसे स्ट्रगल बन गया है. अभी के समय बच्चों पर पैरंट्स के एक्सपेक्टेशन बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं और मां-बाप की उम्मीद को पूरा करने के लिए बच्चे एक कमरे में बैठकर मोबाइल स्क्रीन के सामने अपना दिन गुजार रहे हैं. यह मामला यहीं तक सीमित नहीं है. जब ऑनलाइन क्लासेज खत्म हो जाती हैं तो पेरेंट्स कहते हैं कि बच्चों होमवर्क कर लो, जो आज पढ़ा है उसका रिवीजन कर लो.

'खेल भी जरूरी'
कविता यादव ने बताया कि बच्चों को समझ नहीं आता कि ऐसे में आखिर बच्चे क्या करें. फिर ऐसे में शुरू होता है बच्चे और अभिभावक के बीच स्ट्रगल. हमें यह समझना होगा कि पहले जब बच्चे स्कूल जाते थे तो पढ़ाई के अलावा जब स्पोर्ट्स पीरियड होता था तो बच्चे नीचे ग्राउंड में खेलने जाते थे. वहां उन्हें खेलने कूदने की छूट होती थी.उ नकी एनर्जी चैनेलाइज होती थी. इसके अलावा बच्चे स्कूल में म्यूजिक गेम्स आदि सीखते थे लेकिन अभी यह सब बच्चो को स्क्रीन पर बैठकर करना पड़ता है.

'बच्चों को भी आराम की जरूरत'

अभी के समय पेरेंट्स को यह समझना होगा बच्चों को भी आराम की जरूरत है. हर क्लास को उन्हें अटेंड करने की जरूरत नहीं है. पेरेंट्स को बच्चों को समझना होगा. क्योंकि बच्चे तो बच्चे हैं और वो बाल बुद्धि होते हैं. कोई फर्क नही पड़ता अगर बच्चे ने एक क्लास मिस कर दी तो. पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि ऑनलाइन क्लास के बाद बच्चों को आराम करने के लिए थोड़ा समय दिया जाए. छोटे बच्चों से यह उम्मीद रखना कि स्क्रीन के सामने वह खुद से बैठ जाएं, खुद से क्लास अटेंड कर लें, यह गलत है. बच्चों के साथ मां-बाप को लगना पड़ेगा. अभी के समय बच्चों को मां-बाप के प्यार की, विश्वास की और उनके साथ की जरूरत है.



'ऑनलाइन गेम से भी हो रहे नुकसान'
कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के साथ बच्चों का रुझान ऑनलाइन गेम्स की तरफ भी बढ़ा है. कई बार हिंसक गेम्स खेलने के कारण बच्चों के विचार भी हिंसक होते जा रहे हैं. राजधानी में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां ऑनलाइन गेम खेलने से मना करने पर बच्चों ने अपने पैरंट्स के साथ मारपीट की है या फिर ऑनलाइन गेम्स खेलने के चक्कर में घर से पैसों की चोरी की है.

'गेम्स के चक्कर में कर दी मां बाप और बहन की हत्या'
यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन एक बेटे ने ऑनलाइन गेम के लिए अपने मां बाप और बहन की हत्या कर दी थी. मामला दक्षिण पश्चिमी दिल्ली का था जहां पुलिस को यह सूचना मिली कि एक घर में तीन लाशें पड़ी हुई है. शाम होते-होते पुलिस ने इस पूरे मामले का पर्दाफाश कर लिया था और घर के बेटे को ही गिरफ्तार कर लिया. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि आरोपी की बहन उसे गेम खेलने से मना करती थी.

आरोपी को यह लगता था कि उसकी बहन ही उसके मां-बाप को उसके खिलाफ भड़का रही है. जिसके बाद उसने अपने बाप मां और बहन की हत्या कर दी. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रुप बना रखा था, जिसमें 10 लोग थे, जो गेम खेलते थे. इसके साथ ही उन्होंने दक्षिण दिल्ली में एक कमरा भी किराए पर लिया था, जहां वह बैठकर ऑनलाइन गेम खेलते थे.

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