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कैसे बनती है ऑक्सीजन, क्या है प्रक्रिया, कितनी आती है लागत, जानिए सब कुछ - भारत ऑक्सीजन किल्लत

देशभर में कोरना की दूसरी लहर के बीच मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को लेकर अफरा-तफरी मची है. हर दिन कोरोना से संक्रमित मरीज की ऑक्सीजन न मिलने के कारण मौत हो रही है. यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में इस रिपोर्ट के माध्यम से जानेंगे कि मेडिकल ऑक्सजीन कोविड संक्रमित मरीजों के लिए इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया और इसे कैसे बनाया जाता है.

process to produce oxygen
जीवन रक्षक है ऑक्सीजन
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Published : Apr 29, 2021, 1:15 PM IST

नई दिल्लीः देशभर में कोरना की दूसरी लहर के बीच मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को लेकर त्राहीमाम मचा है. हर दिन कोरोना से संक्रमित मरीज की ऑक्सीजन न मिलने के कारण मौत हो रही है और यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में इस रिपोर्ट के माध्यम से जानेंगे कि मेडिकल ऑक्सजीन कोविड संक्रमित मरीजों के लिए इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया और इसे कैसे बनाया जाता है.

मेडिकल ऑक्सीजन प्रक्रिया.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के आवश्यक दवाओं में शामिल मेडिकल ऑक्सीजन कोविड संक्रमित मरीजों के लिए रामबाण की तरह कार्य करता है, खासकर ऐसे मरीज जो अति गंभीर स्थिति में रहते हैं. मेडिकल ऑक्सीजन में 98 फीसदी तक शुद्ध ऑक्सीजन होती है और अन्य गैस, नमी, धूल आदि अशुद्धियां नहीं होती हैं, जिस वजह से इसे साल 2015 में जारी की गई अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया था.

मेडिकल ऑक्सीजन को बनाने की प्रक्रिया

हम जानते हैं कि ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में मौजूद होती है. ऐसे में ऑक्सीजन प्लांट में मौजूद एयर सेपरेशन की तकनीक से हवा से ऑक्सीजन को अलग कर लिया जाता है. इसमें हवा को पहले कंप्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर की मदद से इसमें से अशुद्धियां निकाल दी जाती हैं. फिर फिल्टर हुई हवा को ठंडा करने के बाद डिस्टिल कर दिया जाता है, ताकि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके.

process to produce oxygen
आवश्यक दवाओं में शामिल है मेडिकल ऑक्सीजन

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान हवा में मौजूद ऑक्सीजन लिक्विड में तबदील हो जाती है, जिसके बाद इसे स्टोर किया जाता है. और इस पूरी प्रक्रिया के बाद स्टोर की जाने वाली ऑक्सीजन को ही मेडिकल ऑक्सीजन कहा जाता है. यहां बताते चलें कि हवा में 21% ऑक्सीजन, 78% नाइट्रोजन और 1% अन्य गैसें जैसे हाइड्रोजन, हीलियम, कार्बन डाईऑक्साइड आदि मौजूद होती हैं.

process to produce oxygen
लिक्विड में तबदील होने के बाद किया जाता है स्टोर

हवा से ऑक्सीजन की जाती है अलग

वहीं इसे बनाने का दूसरा तरीका भी है. इसके तहत एक पोर्टेबल मशीन आती है जो हवा से ऑक्सीजन को अलग कर मरीज तक पहुंचाने में सक्षम होती है. इस मशीन को मरीज के पास रख दिया जाता है और ये मशीन लगातार पेशेंट तक मेडिकल ऑक्सीजन पहुंचाती रहती हैं.

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हवा और पानी में मौजूद है ऑक्सीजन

प्लांट लगाने में 10 से 20 लाख की लागत

इस प्लांट को लगाने के मामले में जानकारों का मानना है कि इसके लिए 10 से 20 लाख रुपये तक की जरूरत होती है. बता दें कि कोरोना महामारी के बीच दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी लगातार सामने आ रही है. वहीं केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से लगातार कोशिशें की जा रही है कि किसी तरह से हालात में सुधार लाया जाए, इसके लिए विदेशों से भी ऑक्सीजन की व्यवस्था की जा रही है और घरेलू स्तर पर भी प्लांट लगाने की व्यवस्था की जा रही है.

नई दिल्लीः देशभर में कोरना की दूसरी लहर के बीच मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को लेकर त्राहीमाम मचा है. हर दिन कोरोना से संक्रमित मरीज की ऑक्सीजन न मिलने के कारण मौत हो रही है और यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में इस रिपोर्ट के माध्यम से जानेंगे कि मेडिकल ऑक्सजीन कोविड संक्रमित मरीजों के लिए इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया और इसे कैसे बनाया जाता है.

मेडिकल ऑक्सीजन प्रक्रिया.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के आवश्यक दवाओं में शामिल मेडिकल ऑक्सीजन कोविड संक्रमित मरीजों के लिए रामबाण की तरह कार्य करता है, खासकर ऐसे मरीज जो अति गंभीर स्थिति में रहते हैं. मेडिकल ऑक्सीजन में 98 फीसदी तक शुद्ध ऑक्सीजन होती है और अन्य गैस, नमी, धूल आदि अशुद्धियां नहीं होती हैं, जिस वजह से इसे साल 2015 में जारी की गई अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया था.

मेडिकल ऑक्सीजन को बनाने की प्रक्रिया

हम जानते हैं कि ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में मौजूद होती है. ऐसे में ऑक्सीजन प्लांट में मौजूद एयर सेपरेशन की तकनीक से हवा से ऑक्सीजन को अलग कर लिया जाता है. इसमें हवा को पहले कंप्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर की मदद से इसमें से अशुद्धियां निकाल दी जाती हैं. फिर फिल्टर हुई हवा को ठंडा करने के बाद डिस्टिल कर दिया जाता है, ताकि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके.

process to produce oxygen
आवश्यक दवाओं में शामिल है मेडिकल ऑक्सीजन

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान हवा में मौजूद ऑक्सीजन लिक्विड में तबदील हो जाती है, जिसके बाद इसे स्टोर किया जाता है. और इस पूरी प्रक्रिया के बाद स्टोर की जाने वाली ऑक्सीजन को ही मेडिकल ऑक्सीजन कहा जाता है. यहां बताते चलें कि हवा में 21% ऑक्सीजन, 78% नाइट्रोजन और 1% अन्य गैसें जैसे हाइड्रोजन, हीलियम, कार्बन डाईऑक्साइड आदि मौजूद होती हैं.

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लिक्विड में तबदील होने के बाद किया जाता है स्टोर

हवा से ऑक्सीजन की जाती है अलग

वहीं इसे बनाने का दूसरा तरीका भी है. इसके तहत एक पोर्टेबल मशीन आती है जो हवा से ऑक्सीजन को अलग कर मरीज तक पहुंचाने में सक्षम होती है. इस मशीन को मरीज के पास रख दिया जाता है और ये मशीन लगातार पेशेंट तक मेडिकल ऑक्सीजन पहुंचाती रहती हैं.

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हवा और पानी में मौजूद है ऑक्सीजन

प्लांट लगाने में 10 से 20 लाख की लागत

इस प्लांट को लगाने के मामले में जानकारों का मानना है कि इसके लिए 10 से 20 लाख रुपये तक की जरूरत होती है. बता दें कि कोरोना महामारी के बीच दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी लगातार सामने आ रही है. वहीं केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से लगातार कोशिशें की जा रही है कि किसी तरह से हालात में सुधार लाया जाए, इसके लिए विदेशों से भी ऑक्सीजन की व्यवस्था की जा रही है और घरेलू स्तर पर भी प्लांट लगाने की व्यवस्था की जा रही है.

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