नई दिल्ली: अनाज मंडी की आग की घटना ऐसी नहीं थी जो हाल के दिनों में पहली बार घटित हुई या जिसकी सरकारों या संस्थाओं को आशंका नहीं थी. इससे पहले भी ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें एक-दो नहीं, दर्जनों लोग हताहत हुए.
कुछ महीने पहले ही अर्पित पैलेस होटल की आग की घटना ने 17 जानें लील ली थीं, लेकिन उसके बाद भी किसी ने उससे सबक नहीं ली.
आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति
समाधान की जगह सियासत हावी होती जा रही है. अनाज मंडी की आग की घटना के बाद मिल बैठकर खामियां ढूंढने और आगे ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए तैयारी करने की बजाय, आरोप-प्रत्यारोप की सियासत हावी होती दिख रही है. केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने घटना के अगले दिन ही दिल्ली सरकार पर सवालों की बौछार शुरू कर दी और जवाब में दिल्ली सरकार की तरफ से भी शहरी विकास मंत्रालय और एमसीडी को आरोपों के कठघरे में खड़ा कर दिया गया.
बिजली विभाग vs एमसीडी
दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के आरोप हैं कि सारी गलती एमसीडी की है, जिसने 5 मंजिल की इमारत बनने की परमिशन दी. जिसने फैक्ट्री चलाने की परमिशन दी और जो सारी अनियमितताओं पर भी आंख मूंदे रहा. वहीं एमसीडी वाली भाजपा दिल्ली सरकार को इसे लेकर आरोपों के कठघरे में खड़ा कर रही है कि आग बिजली के तारों के स्पार्क से लगी और वहां पर बिजली के तारों का जंजाल दिल्ली सरकार के बिजली विभाग की खामियां प्रदर्शित कर रहा है.
फैक्ट्री मालिक के सियासी सम्बन्ध
आरोप-प्रत्यारोप की फेहरिस्त आगे बढ़ी, तो फैक्ट्री मालिक तक पहुंची और दोनों पार्टियों में इसे लेकर द्वंद्व युद्ध शुरू हो गया कि फैक्ट्री मालिक किस पार्टी के किस नेता से संबंध रखता है. आम आदमी पार्टी ने उसे दिल्ली प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी के संसदीय प्रतिनिधि के तौर पर जोड़ा, तो बीजेपी ने उसे आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता साबित करने की कोशिश शुरू कर दी.
कब तक ली जाएगी जनता की सुध?
आग की घटना के बाद से आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की तरफ से जितनी भी प्रेस कांफ्रेंस हुई, उसमें दोनों तरफ से एक दूसरे के लिए आरोपों के तीर ही छोड़े गए, वहीं विपक्ष में बैठी कांग्रेस को भी दोनों पर ही निशाना साधने का मौका मिल गया. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने केंद्र सरकार, एमसीडी और दिल्ली सरकार, तीनों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है. देखने वाली बात होगी कि सत्ता और व्यवस्था की अनदेखी की आग पर जलती जनता की सुध आखिर नेता कब तक लेते हैं.