नई दिल्ली: पटियाला हाउस कोर्ट ने राजद्रोह कानून को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. किसान आंदोलन के दौरान अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार दो आरोपियों को जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि उपद्रवियों पर लगाम लगाने के नाम पर असंतुष्टों को चुप करने के लिए राजद्रोह कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
एडिशनल सेशंस जज धर्मेंद्र राणा ने कहा कि समाज में शांति और लॉ एंड ऑर्डर को बरकरार रखने के उद्देश्य से राजद्रोह का कानून सरकार के हाथ में एक ताकतवर औजार है. लेकिन इसका इस्तेमाल असंतुष्टों को चुप करने के लिए नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने किसान आंदोलन के दौरान अफवाह फैलाने और राजद्रोह के दो आरोपियों देवी लाल बुड़दाक और स्वरुप राम को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
धारा 124ए का इस्तेमाल बहस का गंभीर मुद्दा
कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को जिस टैगलाइन के लिए जिम्मेदार बताया गया है, उसे सीधे तौर पर पढ़कर भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए लगाना बहस का गंभीर मुद्दा है. इस मामले में दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया है कि देवी लाल बुड़दाक ने अपने फेसबुक पेज पर एक फर्जी वीडियो ‘ दिल्ली पुलिस में विद्रोह है और करीब दो सौ पुलिसकर्मियों ने सामूहिक इस्तीफा दिया’ टैगलाइन के साथ पोस्ट किया था.
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा था कि पोस्ट किया गया वीडियो हालांकि खाकी पहने कुछ लोगों का है, जो झारखंड सरकार में अपनी कुछ शिकायतों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. फेसबुक पोस्ट में स्वरुप राम ने एक अलग वीडियो पोस्ट की थी, जिसमें ऐसी ही टैगलाइन थी.
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स्वरुप राम वाले वीडियो पर दिल्ली पुलिस ने कहा कि वह वीडियो दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का है. जो प्रदर्शन स्थल पर पुलिसकर्मियों को कुछ बताते हुए नजर आ रहे हैं. पुलिसकर्मियों को स्थिति से समुचित तरीके से निपटने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
50-50 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत मिली
स्वरुप राम के पोस्ट पर कोर्ट ने कहा कि इसमें साफ है कि दिल्ली पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी बेहद आक्रोशित सुर में नारे लगा रहा है. उसके बगल में दिल्ली पुलिस का एक समूह खड़ा है. कोर्ट ने दोनों आरोपियों को पचास-पचास हजार रुपये के मुचलके पर जमानत देने का आदेश दिया.