नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट में ओपन बुक एग्जामिनेशन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई और याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पूरी हो गईं. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ओपन बुक एग्जामिनेशन को बिना कोई विचार-विमर्श किए लाया गया है. जस्टिस प्रतिभा सिंह की बेंच दिल्ली यूनिवर्सिटी की दलीलें कल यानि 5 अगस्त को सुनेगी.
'परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए'
सुनवाई के दौरान यूजीसी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यूजीसी के दिशा निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी सुनवाई चल रही है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक सुनवाई टालने की मांग की. उन्होंने कहा कि परीक्षाएं समयबद्ध होनी चाहिए. इससे गुणवत्ता बनी रहेगी. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि अगर ऑनलाइन नहीं हो पाया और कोई छात्र इसमें शामिल नहीं हो सका. तब ऑफलाइन परीक्षा सितंबर में होगी. तब मेहता ने कहा कि इस पर सितंबर के बाद भी सुनवाई हो सकती है. फिर कोर्ट ने कहा कि तब यह हमेशा के लिए चलता रहेगा, क्योंकि आईसीएमआर कह रही है कि कोरोना का चरम नवंबर में आएगा.
'लिखित परीक्षा की पवित्रता पूरी दुनिया मानती है'
मेहता ने कहा कि फाइनल ईयर के लिए अधिकांश लोगों का असेसमेंट इंटरनल आधार पर आयोजित नहीं की जा सकती है. फाइनल ईयर में परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए. यह ऑनलाइन, ऑफलाइन या दोनों को मिलाकर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अकादमिक दुनिया में लिखित परीक्षा की पवित्रता पूरी दुनिया मानती है.
'जिनके पास इंटरनेट नहीं वे मॉक टेस्ट नहीं दे सकेंगे'
एक याचिकाकर्ता अनुपम की ओर से वकील आकाश सिन्हा ने कहा कि ओपन बुक एग्जामिनेशन भारतीय संविधान की धारा 14, 16 और 21 का उल्लंघन करता है. जिन छात्रों के पास इंटरनेट नहीं है वे मॉक टेस्ट भी नहीं दे सकेंगे. वे सीधे 10 अगस्त को परीक्षा देने के लिए बैठेंगे.
उन्होंने कहा कि कई छात्र ऐसे हैं जो क्वारंटाइन इलाकों और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में रहते हैं. उन्होंने ओपन बुक एग्जामिनेश को भेदभाव करनेवाला बताया. उन्होंने कहा कि कई यूनिवर्सिटीज के रिजल्ट घोषित हो चुके हैं और ऐसे में दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र अवसर से चुक जाएंगे.
पेपर देने में दो घंटे काफीः दिल्ली यूनिवर्सिटी
कोर्ट ने वकील आकाश सिन्हा से पूछा कि आप क्या चाहते हैं. तब सिन्हा ने कहा कि पोर्टल का टाइमर काम नहीं करता है. अगर ओपन बुक एग्जामिनेशन की अनुमति दी जाती है, तो समस्याओं का निवारण करना होगा. पेपर को अपलोड करने का समय बढ़ाना होगा. तब कोर्ट ने पूछा कि परीक्षा कितने नंबर की होनी चाहिए सौ नंबर या कम की. तब सिन्हा ने कहा कि 75 अंकों की. इस पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से पेश वकील एम रुपल ने कहा कि इसके लिए हमें निर्देश लेना होगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से ही वकील सचिन दत्ता ने कहा कि पेपर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसके लिए दो घंटे काफी हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी से मांगे जवाब
कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि वो कुछो सवालों पर जवाब दें. कोर्ट ने ई-मेल से प्रश्न पत्र डाउनलोड करने, ई-मेल पर प्रश्नोत्तर देने, कॉलेजों के हेल्पलाइन और ई-मेल आईडी का प्रकाशन हुआ है कि नहीं, शिकायत निवारण कमेटी पर क्या फैसला हुआ, प्रश्नोत्तर को पांच एमबी से ज्यादा किया जा सकता है कि नहीं और परीक्षा की पालियों और अंकों के रेंज पर जवाब देने को कहा.
'कॉमन सर्विस सेंटर मॉक टेस्ट के लिए नहीं'
पिछले 27 जुलाई को दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा था कि उसके कॉमन सर्विस सेंटर मॉक टेस्ट के लिए नहीं है. वहां केवल मुख्य परीक्षा ही आयोजित की जा सकती है. हाईकोर्ट ने कॉमन सर्विस सेंटर इस्तेमाल करने वाले छात्रों की लिस्ट नहीं देने पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की आलोचना की थी.
'तकनीकी समस्याओं के लिए 4 प्रोफेसर'
कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूछा था कि क्या आपने तकनीकी समस्याओं पर गौर करने के लिए कोई कमेटी का गठन किया है. तब दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा था कि इसका गठन किया जाना बाकी है और इसमें कम से कम चार प्रोफेसर रहेंगे. तब कोर्ट ने पूछा था कि इस समिति को छात्रों की तकनीकी समस्याओं का निराकरण करने में कितना समय लगेगा. तब दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा कि पांच दिन लगेंगे.
'तीन लाख साठ हजार कॉमन सर्विस सेंटर'
कॉमन सर्विस सेंटर की ओर से कहा गया था कि तीन लाख साठ हजार कॉमन सर्विस सेंटर हैं. वहां पर कंप्यूटर, स्कैनर, इंटरनेट इत्यादि मौजूद हैं. कोर्ट ने पूछा कि क्या आपके पास छात्रों की सूची है, क्योंकि कई छात्र असम, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों के हैं.
कोर्ट ने कहा था कि हमारे रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली से बाहर के 59000 छात्र हैं. क्या आपके पास छात्रों की सूची है जो आप कॉमन सर्विस सेंटर को सौंप सकें. इस पर कॉमन सर्विस सेंटर ने कहा की कोई सूची उपलब्ध नहीं कराई गई है. जिस पर कोर्ट नाराज हो गई. जस्टिस गुप्ता ने कहा इस तरह से कैसे कोर्ट चलेगा.
'क्या बहुविकल्पी प्रश्नों का विकल्प संभव है'
पिछले 22 जुलाई को कोर्ट ने यूजीसी से पूछा था कि क्या फाइनल इयर के छात्रों के लिए आयोजित होने वाली ऑनलाइन परीक्षा में बहुविकल्पी प्रश्नों का विकल्प संभव है. सुनवाई के दौरान यूजीसी ने कहा था कि पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर किसी को डिग्री नहीं दी जा सकती है.