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जेएनयू: एक के बाद एक आक्रोश और अब इस तरह की हिंसा

जेएनयू देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटीज में से एक है. पिछले कुछ समय से ये शैक्षणिक संस्थान तेजी से पतन की ओर बढ़ा है. यही वो यूनिवर्सिटी है जिसे बड़े-बड़े छात्र आंदोलनों के लिए जाना जाता है, लेकिन आज इसे हिंसा के लिए जाना जा रहा है.

JNU violence
जेएनयू हिंसा
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Published : Jan 11, 2020, 3:12 PM IST

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जिसे उच्च शैक्षणिक मानकों के लिये जाना जाता है. जिसके छात्र संघ चुनाव की खूब प्रशंसा की गई थी. जहां अलग-अलग विचारधारा के लोग अकसर छात्र हित के लिए एक हो जाया करते थे. वही यूनिवर्सिटी रविवार 5 जनवरी 2020 की शाम को हिंसा के मैदान में तब्दील हो गई.

5 जनवरी 2020

वो वक्त भयानक था. भयानक इसलिए क्योंकि एक तरफ हाथों में डंडे लिए नकाबपोश गुंडे थे और दूसरी तरफ चीख-पुकार कर रहे खून से सने जेएनयू के निहत्थे छात्र. इस पूरे घटनाक्रम को कैमरे में कैद किया गया. मीडिया ने देश और दुनिया भर में इसे दिखाया. ये समझना होगा कि ऐसी घटनाएं मोदी सरकार के अलोकप्रिय फैसलों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को और मजबूत कर रही हैं.

जब साथ आया बॉलीवुड

बॉलीवुड की कई मशहूर हस्तियों ने जेएनयू हिंसा की निंदा की. जामिया हिंसा के वक्त भी कई बॉलीवुड कलाकार छात्रों के समर्थन में नजर आए. जेएनयू में हाल ही में दीपिका पादुकोण पहुंचीं. वो कैंपस गईं और छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष से मिलीं, जिन पर नकाबपोशों ने जानलेवा हमला किया था.

दीपिका के इस कदम पर बॉलीवुड ने उनकी सराहना की. वहीं कुछ बीजेपी नेताओं ने तो दीपिका को राष्ट्रद्रोही तक बता दिया. उनकी फिल्म तक को बायकॉट करने की बातें कही गईं.

पीछे नहीं हटेगी सरकार

किसी मजबूत लोकप्रिय पर्सनैलिटी का इस तरह सामने आकर खड़े हो जाना किसी भी सरकार के लिए बड़ी बात हो सकती है, लेकिन ये सरकार कठोर है और इसने पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया.

दिल्ली पुलिस पर उठे सवाल

सिर्फ 3 हफ्ते पहले की बात है, जामिया में हिंसक प्रदर्शन हुआ. दिल्ली पुलिस ने कैंपस में घुसकर छात्रों पर लाठीचार्ज किया. जामिया हिंसा के वक्त पुलिस के रिएक्शन की गंभीरता और उग्रता को समीक्षकों ने करीब से देखा. अब बात जेएनयू की करें तो ऐसा लगा जैसे पुलिस अपने पैर पीछे खींच रही हो. पुलिस कैंपस के बाहर खड़ी रही.

एक तरफ जामिया हिंसा के समय छात्रों की कैंपस से हाथ ऊपर करवाकर गिरफ्तारियां की गई, दूसरी तरफ जेएनयू हिंसा के समय नकाबपोश परिसर में घुसकर, मारपीट करके खुलेआम बाहर निकल आए और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ.

राजनीतिक चाल

जब जेएनयू की बात आती है तो निश्चित रूप से मौजूदा व्यवस्था की ही खामियां नजर आती हैं. स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव उस वक्त यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर थे, जब अंदर हिंसा चल रही थी. उन्होंने कहा-

जेएनयू पर योजनाबद्ध तरीके से हमले हुए हैं. ये राजनीतिक चाल है. बिल्कुल वैसे जैसे देशद्रोह का मुद्दा बनाकर यूनिवर्सिटी को पहले भी बदनाम करने की कोशिश की गई थी. अब ये हमला शारीरिक हिंसा की तरफ बढ़ गया है.

पहला 'बुद्धिजीवी' हमला

पहला हमला आमतौर पर स्वप्न दासगुप्ता और चंदन मित्रा जैसे बीजेपी से जुड़े अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों के रूप में हुआ. तर्क ये था कि जेएनयू में वामपंथियों ने कभी भी 'बुद्धिजीवियों' को प्रवेश करने और फलने-फूलने की अनुमति नहीं दी.

चलिए हम एक मिनट के लिए मान लेते हैं कि इस तर्क में कुछ सच्चाई है. लेकिन वो विश्वसनीय 'बुद्धिजीवी' कहां हैं जो वाम-उदारवादी जेएनयू को राष्ट्रवाद, मुक्त बाजार, जलवायु परिवर्तन और नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत नेताओं के गुणों पर गंभीर शैक्षणिक तर्क और चुनौती दे सकते हैं?

जेएनयू में गंभीरता से काम नहीं होता

हालांकि, बीजेपी को बौद्धिकता से समस्या है. विडंबना ये है कि एक तरफ जेएनयू के बौद्धिकवाद पर कटाक्ष होता है, जबकि दूसरी तरफ दावा ये है कि जेएनयू में गंभीरता से पढ़ाना और सीखना नहीं होता.

जेएनयू के 'जिद्दी' कुलपति

दरअसल बात ये है कि जेएनयू ने सत्ता में स्थापित नेताओं और व्यवस्था को उत्तेजित किया और उन्हें लगा कि अब निश्चित रूप से यूनिवर्सिटी में कुछ सही हो सकता है. हालांकि पिछले चार वर्षों में जेएनयू पर हमला, वर्तमान कुलपति प्रो. जगदीश कुमार के कार्यकाल में हुआ. कुलपति का कार्यकाल काफी कठोर माना जाता रहा, जो अब अपने चरम पर है.

कुलपति ने नहीं की कोशिश

पिछले 70 दिनों से अकादमिक गतिविधियां बंद हैं और कुलपति ने इस मुद्दे को समाप्त करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए. संभावना थी कि उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रह्मण्यम (जो खुद जेएनयू के पूर्व छात्र थे) के प्रयासों से दिसंबर में ये मुद्दा हल हो जाएगा, लेकिन इससे पहले ही उनका स्थानांतरण कर दिया गया.

कुलपति देंगे इस्तीफा ?

परिसर में हिंसा के बाद पूरे दो दिनों तक चुप रहने के लिए उनकी आलोचना हुई. दीपिका पादुकोण के कैंपस के दौरे पर उनके 'महान व्यक्तित्व' की झलक, उनके और उनकी प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ बताती है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि नैतिक आधार पर उनसे इस्तीफे की अपेक्षा करना बहुत ज्यादा हो जाएगा.

पतन की ओर ले जा रहे हैं कुलपति

विरोधियों का कहना है कि कुलपति यूनिवर्सिटी चलाने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं, लेकिन इसे पतन की ओर जरूर ले जा रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि संकाय भर्ती प्रक्रिया जो वो खुद देख रहे थे, उसे कई मीडिया रिपोर्ट्स से गुजरना पड़ा.

व्हाट्सएप पर जेएनयू की परीक्षाएं

कुलपति प्रो जगदीश कुमार का एक हैरान कर देने वाला कदम परीक्षाओं को लेकर भी सामने आया. छात्रों के प्रदर्शन के दौरान मची उथल-पुथल के मद्देनजर पिछले सेमेस्टर की परीक्षाएं ई-मेल भेजकर आयोजित की गई. परीक्षाओं में सवालों के जवाब ई-मेल और व्हाट्सएप से भेजने को कहा गया था. शुक्र है कि बड़ी संख्या में संकाय सदस्यों ने इस तरह के फरेब का विरोध किया.

जेएनयू और टुकड़े-टुकड़े गैंग

अंत में, इस लंबे समय तक चलने वाली गाथा का सबसे बुरा हिस्सा 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' जैसा शब्द है. ये शब्द शोर मचाने वाले टेलीविजन एंकर अरनब गोस्वामी के माध्यम से जेएनयू के साथ जुड़ा. इसने यूनिवर्सिटी के खिलाफ घृणा फैलाई. जेएनयू के कुलपति ने कभी भी यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा की इस आधारहीन बदनामी से लड़ने की कोशिश नहीं की. कौन से कुलपति ऐसा करेंगे?

-आमिर अली, सहायक प्रोफेसर (राजनीतिक केंद्र स्टडीज, जेएनयू)

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जिसे उच्च शैक्षणिक मानकों के लिये जाना जाता है. जिसके छात्र संघ चुनाव की खूब प्रशंसा की गई थी. जहां अलग-अलग विचारधारा के लोग अकसर छात्र हित के लिए एक हो जाया करते थे. वही यूनिवर्सिटी रविवार 5 जनवरी 2020 की शाम को हिंसा के मैदान में तब्दील हो गई.

5 जनवरी 2020

वो वक्त भयानक था. भयानक इसलिए क्योंकि एक तरफ हाथों में डंडे लिए नकाबपोश गुंडे थे और दूसरी तरफ चीख-पुकार कर रहे खून से सने जेएनयू के निहत्थे छात्र. इस पूरे घटनाक्रम को कैमरे में कैद किया गया. मीडिया ने देश और दुनिया भर में इसे दिखाया. ये समझना होगा कि ऐसी घटनाएं मोदी सरकार के अलोकप्रिय फैसलों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को और मजबूत कर रही हैं.

जब साथ आया बॉलीवुड

बॉलीवुड की कई मशहूर हस्तियों ने जेएनयू हिंसा की निंदा की. जामिया हिंसा के वक्त भी कई बॉलीवुड कलाकार छात्रों के समर्थन में नजर आए. जेएनयू में हाल ही में दीपिका पादुकोण पहुंचीं. वो कैंपस गईं और छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष से मिलीं, जिन पर नकाबपोशों ने जानलेवा हमला किया था.

दीपिका के इस कदम पर बॉलीवुड ने उनकी सराहना की. वहीं कुछ बीजेपी नेताओं ने तो दीपिका को राष्ट्रद्रोही तक बता दिया. उनकी फिल्म तक को बायकॉट करने की बातें कही गईं.

पीछे नहीं हटेगी सरकार

किसी मजबूत लोकप्रिय पर्सनैलिटी का इस तरह सामने आकर खड़े हो जाना किसी भी सरकार के लिए बड़ी बात हो सकती है, लेकिन ये सरकार कठोर है और इसने पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया.

दिल्ली पुलिस पर उठे सवाल

सिर्फ 3 हफ्ते पहले की बात है, जामिया में हिंसक प्रदर्शन हुआ. दिल्ली पुलिस ने कैंपस में घुसकर छात्रों पर लाठीचार्ज किया. जामिया हिंसा के वक्त पुलिस के रिएक्शन की गंभीरता और उग्रता को समीक्षकों ने करीब से देखा. अब बात जेएनयू की करें तो ऐसा लगा जैसे पुलिस अपने पैर पीछे खींच रही हो. पुलिस कैंपस के बाहर खड़ी रही.

एक तरफ जामिया हिंसा के समय छात्रों की कैंपस से हाथ ऊपर करवाकर गिरफ्तारियां की गई, दूसरी तरफ जेएनयू हिंसा के समय नकाबपोश परिसर में घुसकर, मारपीट करके खुलेआम बाहर निकल आए और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ.

राजनीतिक चाल

जब जेएनयू की बात आती है तो निश्चित रूप से मौजूदा व्यवस्था की ही खामियां नजर आती हैं. स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव उस वक्त यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर थे, जब अंदर हिंसा चल रही थी. उन्होंने कहा-

जेएनयू पर योजनाबद्ध तरीके से हमले हुए हैं. ये राजनीतिक चाल है. बिल्कुल वैसे जैसे देशद्रोह का मुद्दा बनाकर यूनिवर्सिटी को पहले भी बदनाम करने की कोशिश की गई थी. अब ये हमला शारीरिक हिंसा की तरफ बढ़ गया है.

पहला 'बुद्धिजीवी' हमला

पहला हमला आमतौर पर स्वप्न दासगुप्ता और चंदन मित्रा जैसे बीजेपी से जुड़े अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों के रूप में हुआ. तर्क ये था कि जेएनयू में वामपंथियों ने कभी भी 'बुद्धिजीवियों' को प्रवेश करने और फलने-फूलने की अनुमति नहीं दी.

चलिए हम एक मिनट के लिए मान लेते हैं कि इस तर्क में कुछ सच्चाई है. लेकिन वो विश्वसनीय 'बुद्धिजीवी' कहां हैं जो वाम-उदारवादी जेएनयू को राष्ट्रवाद, मुक्त बाजार, जलवायु परिवर्तन और नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत नेताओं के गुणों पर गंभीर शैक्षणिक तर्क और चुनौती दे सकते हैं?

जेएनयू में गंभीरता से काम नहीं होता

हालांकि, बीजेपी को बौद्धिकता से समस्या है. विडंबना ये है कि एक तरफ जेएनयू के बौद्धिकवाद पर कटाक्ष होता है, जबकि दूसरी तरफ दावा ये है कि जेएनयू में गंभीरता से पढ़ाना और सीखना नहीं होता.

जेएनयू के 'जिद्दी' कुलपति

दरअसल बात ये है कि जेएनयू ने सत्ता में स्थापित नेताओं और व्यवस्था को उत्तेजित किया और उन्हें लगा कि अब निश्चित रूप से यूनिवर्सिटी में कुछ सही हो सकता है. हालांकि पिछले चार वर्षों में जेएनयू पर हमला, वर्तमान कुलपति प्रो. जगदीश कुमार के कार्यकाल में हुआ. कुलपति का कार्यकाल काफी कठोर माना जाता रहा, जो अब अपने चरम पर है.

कुलपति ने नहीं की कोशिश

पिछले 70 दिनों से अकादमिक गतिविधियां बंद हैं और कुलपति ने इस मुद्दे को समाप्त करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए. संभावना थी कि उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रह्मण्यम (जो खुद जेएनयू के पूर्व छात्र थे) के प्रयासों से दिसंबर में ये मुद्दा हल हो जाएगा, लेकिन इससे पहले ही उनका स्थानांतरण कर दिया गया.

कुलपति देंगे इस्तीफा ?

परिसर में हिंसा के बाद पूरे दो दिनों तक चुप रहने के लिए उनकी आलोचना हुई. दीपिका पादुकोण के कैंपस के दौरे पर उनके 'महान व्यक्तित्व' की झलक, उनके और उनकी प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ बताती है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि नैतिक आधार पर उनसे इस्तीफे की अपेक्षा करना बहुत ज्यादा हो जाएगा.

पतन की ओर ले जा रहे हैं कुलपति

विरोधियों का कहना है कि कुलपति यूनिवर्सिटी चलाने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं, लेकिन इसे पतन की ओर जरूर ले जा रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि संकाय भर्ती प्रक्रिया जो वो खुद देख रहे थे, उसे कई मीडिया रिपोर्ट्स से गुजरना पड़ा.

व्हाट्सएप पर जेएनयू की परीक्षाएं

कुलपति प्रो जगदीश कुमार का एक हैरान कर देने वाला कदम परीक्षाओं को लेकर भी सामने आया. छात्रों के प्रदर्शन के दौरान मची उथल-पुथल के मद्देनजर पिछले सेमेस्टर की परीक्षाएं ई-मेल भेजकर आयोजित की गई. परीक्षाओं में सवालों के जवाब ई-मेल और व्हाट्सएप से भेजने को कहा गया था. शुक्र है कि बड़ी संख्या में संकाय सदस्यों ने इस तरह के फरेब का विरोध किया.

जेएनयू और टुकड़े-टुकड़े गैंग

अंत में, इस लंबे समय तक चलने वाली गाथा का सबसे बुरा हिस्सा 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' जैसा शब्द है. ये शब्द शोर मचाने वाले टेलीविजन एंकर अरनब गोस्वामी के माध्यम से जेएनयू के साथ जुड़ा. इसने यूनिवर्सिटी के खिलाफ घृणा फैलाई. जेएनयू के कुलपति ने कभी भी यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा की इस आधारहीन बदनामी से लड़ने की कोशिश नहीं की. कौन से कुलपति ऐसा करेंगे?

-आमिर अली, सहायक प्रोफेसर (राजनीतिक केंद्र स्टडीज, जेएनयू)

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