नई दिल्ली: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) पर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग (सीआईई) द्वारा 'शिक्षक एवं शिक्षा कार्यक्रम की पुन: कल्पना' पर एक दिवसीय पैनल डिस्कशन आयोजित किया गया. इस चर्चा में एनआईईपीए, एनसीईआरटी, आईआईटी बॉम्बे, जामिया मिलिया इस्लामिया, बीएचयू, शिक्षा विभाग (सीआईई) जैसे संस्थानों से विभिन्न क्षेत्रों के 120 से अधिक प्रतिभागियों (अनुसंधान विद्वान, शिक्षक प्रशिक्षक और शिक्षक) ने सक्रिय रूप से भाग लिया.
प्रो. अरोड़ा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इस आयोजन के लिए विभाग को बधाई दी और एनपीएसटी, आईटीईपी आदि के दिशानिर्देशों और संरचना का उल्लेख किया. उन्होंने एनईपी 2020 और शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम के दृष्टिकोण पर अपने अनुभव की चर्चा की. इस अवसर पर पैनलिस्ट प्रोफेसर प्रणति पांडा ने एनईपी 2020: विजन मिशन और शिक्षक शिक्षा पर अपने विचार रखे और शिक्षक एवं शिक्षा के बदलते परिप्रेक्ष्य और शिक्षण पेशे के लिए शिक्षक के जीवन चक्र दृष्टिकोण के बारे में बताया.
उन्होंने कहा कि सामग्री ज्ञान से परे देखने के साथ सभी के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण और शिक्षा कार्यक्रम में नेटवर्किंग सहयोग जैसे एजेंडे को बदलने की जरूरत है. वहीं दूसरे पैनलिस्ट प्रो. कौशल किशोर ने एनईपी 2020 में इंटेंसिव टीचर एजुकेशन प्रोग्राम (आईटीईपी) की संभावनाओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, एनईपी 2020 में प्रत्येक पंक्ति 'गागर में सागर' के रूप में परिलक्षित होती है. उन्होंने कहा कि एक बहु-विषयक शिक्षक तैयार करने की आवश्यकता है, जो विभिन्न पहलुओं को जानता हो. इसके लिए तीसरी पैनलिस्ट, प्रो. वंदना सक्सेना ने आईटीईपी पर जोर देते हुए विस्तार से बताया कि कैसे 1970 के दशक में शिक्षक शिक्षा विचार में 'एकीकृत' शब्द आया. उन्होंने कहा कि आईटीईपी के पायलट कार्यक्रम में भाग लेना हमारे लिए महत्वपूर्ण है.
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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. पंकज अरोड़ा ने सत्र के समापन पर अतिथि पैनलिस्टों के प्रमुख बिंदुओं के अनुरूप एनईपी 2020 में दिए गए विभिन्न विचार-विमर्श पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने कहा कि आरटीई 2009 नया नहीं है क्योंकि इसका उल्लेख पहले से ही संविधान के अनुच्छेद 45 में किया गया है, जो 14 वर्ष की आयु तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की बात करता है. इसके अलावा, शिक्षक की चिंता केवल शिक्षकों को तैयार करने के बारे में नहीं है, बल्कि यह उच्च शिक्षा में 'शिक्षा को एक अनुशासन के रूप में पहचानने' के बारे में भी है.
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