नई दिल्लीः दिल्ली में आज ही के दिन 2012 में देश की बेटी 'निर्भया' के साथ दरिंदगी की गई थी. उसे उस हालत में पहुंचा दिया गया था कि लाख कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका. हालांकि, अगर वो बच भी जाती तो शायद वो उस सदमे से कभी उबर नहीं पाती जिस तरह की हैवानियत उसके साथ उसके कातिलों ने की थी.
इस मामले में लंबे समय तक कोर्ट में चले ट्रायल के बाद सभी आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. उस वक्त इस दर्दनाक हादसे की दर्द ने पूरे देश को झकझोर दिया था, जिस कारण सरकार भी हिल गयी थी और उस वक्त महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह की बातें करते हुए कई कानून भी बनाए गए थे. इसी को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने निर्भया की मां आशा देवी से बात की और पता लगाने की कोशिश की कि आज 10 साल बाद भी देश में महिलाओं की सुरक्षा में उनके नजरिये से क्या बदलाव आया है और वो इस मुद्दे पर क्या सोचती हैं?
उन्होंने आज भी देश की बेटियों की सुरक्षा और महिलाओं से जुड़े अपराधों को लेकर पुलिस की संवेदनशीलता पर असंतोष जाहिर करते हुए बताया कि निर्भया कांड में जोर-शोर से लोगों ने आवाज उठाया, जिससे उनको इंसाफ मिल पाया. 10 साल बाद आज भी दिल्ली के अंदर महिला सुरक्षित नहीं है. आशा देवी ने बताया कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था और सरकार के होने के बावजूद दिल्ली में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं और ना ही उन्हें सही समय पर और सही तरीके से इंसाफ मिल पाता है.
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छावला कांड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस की लापरवाही और काफी समय निकल जाने की वजह से अब तक उसके परिजनों को न्याय नहीं मिला है. अगर पुलिस इस मामले में सही से जांच कर सबूतों को कोर्ट में पेश करती तो उसके आरोपी आज रिहा नहीं हुए होते. उन्होंने कहा कि पार्लियामेंट में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बहस होनी चाहिए, जिससे उसके लिए उपयुक्त कानून बनाया जा सके. इस तरह के अपराधों में दोषियों के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई की जरूरत है. साथ ही उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों की भी काउंसिलिंग की जानी चाहिए, क्योंकि उनका व्यवहार महिलाओं कब प्रति अच्छा नहीं होता है.