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साहित्य अकादेमी द्वारा नारी चेतना कार्यक्रम में महिला रचनाकारों ने बांधा समां - साहित्य अकादेमी द्वारा नारी चेतना कार्यक्रम

Nari Chetna Karyakarm by Sahitya Academy :नई दिल्ली में साहित्य अकादेमी ने नारी चेतना कार्यक्रम का आयोजन किया गया.जिसमें उर्दू की पाँच महिला शायरों ने अपने कलामों से समां बांध दिए.जिससे श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे.

नारी चेतना कार्यक्रम का आयोजन
नारी चेतना कार्यक्रम का आयोजन
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 20, 2023, 8:22 PM IST

नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने सोमवार को 'नारी चेतना' कार्यक्रम का आयोजन किया. इसमें उर्दू की पांच मशहूर शायराओं शबाना नज़ीर, इफ़्फ़त ज़र्री, अना देहलवी, रेशमा ज़ैदी और आबगीना आरिफ़ ने अपने अपने कलाम प्रस्तुत किए. इसने माहौल में समां बांध दिया. कार्यक्रम की शुरुआत आबगीना आरिफ़ की नज़्मों से हुई.

उनकी नज़्मों के शीर्षक थे देवी, चेहरे, पस्ती जंगल और आग. इन नज़्मों में जहां उनके तल्ख़ अनुभव दर्ज थे. वहीं समाज के नज़रिए को भी बेबाकी से प्रस्तुत किया गया था. इसके बाद रेशमा ज़ैदी ने अपनी कुछ नज़्में और ग़ज़लें प्रस्तुत कीं. उनके सभी अशआर और ग़ज़लों को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया.

अना देहलवी ने तरन्नुम में अपनी गजलें कीं प्रस्तुत: अना देहलवी ने तरन्नुम में अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत कीं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे. उनके कुछ शेर- 'पत्थर में हर पत्थर देवता नहीं होता', या 'फिर से आज भारत को बापू की जरूरत है' पर खूब तालियां बजीं. इफ़्फ़त ज़र्री ने कई नज़्में अपने ख़ास लहजे में कुछ ग़ज़लें प्रस्तुत कीं. एक ग़ज़ल के शेर 'मोहब्बत में जुनून की आज़माइश कौन करता है, हो खंडहर दिल तो फिर इसमें रिहाइश कौन करता है'... को खूब दाद मिली. श्रोता इनकी गजलों में ऐसे सराबोर हुए कि उनके दिलों दिमाग तक ये रचनाएं उतर गई.

वरिष्ठ शायरा शबाना नज़ीर ने सुनाईं नज़्में और ग़ज़लें: अंत में वरिष्ठ शायरा शबाना नज़ीर ने अपनी कई नज़्में और ग़ज़लें सुनाईं, जिनके शीर्षक थे रोबोट, वफ़ा, ज़मीं का दर्द आदि. इस अवसर पर कई महत्वपूर्ण शायर और श्रोता उपस्थित थे. जिन्होंने इन नज्मों और गजलों की बखूबी सराहना की. कार्यक्रम का संचालन संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया.

नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने सोमवार को 'नारी चेतना' कार्यक्रम का आयोजन किया. इसमें उर्दू की पांच मशहूर शायराओं शबाना नज़ीर, इफ़्फ़त ज़र्री, अना देहलवी, रेशमा ज़ैदी और आबगीना आरिफ़ ने अपने अपने कलाम प्रस्तुत किए. इसने माहौल में समां बांध दिया. कार्यक्रम की शुरुआत आबगीना आरिफ़ की नज़्मों से हुई.

उनकी नज़्मों के शीर्षक थे देवी, चेहरे, पस्ती जंगल और आग. इन नज़्मों में जहां उनके तल्ख़ अनुभव दर्ज थे. वहीं समाज के नज़रिए को भी बेबाकी से प्रस्तुत किया गया था. इसके बाद रेशमा ज़ैदी ने अपनी कुछ नज़्में और ग़ज़लें प्रस्तुत कीं. उनके सभी अशआर और ग़ज़लों को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया.

अना देहलवी ने तरन्नुम में अपनी गजलें कीं प्रस्तुत: अना देहलवी ने तरन्नुम में अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत कीं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे. उनके कुछ शेर- 'पत्थर में हर पत्थर देवता नहीं होता', या 'फिर से आज भारत को बापू की जरूरत है' पर खूब तालियां बजीं. इफ़्फ़त ज़र्री ने कई नज़्में अपने ख़ास लहजे में कुछ ग़ज़लें प्रस्तुत कीं. एक ग़ज़ल के शेर 'मोहब्बत में जुनून की आज़माइश कौन करता है, हो खंडहर दिल तो फिर इसमें रिहाइश कौन करता है'... को खूब दाद मिली. श्रोता इनकी गजलों में ऐसे सराबोर हुए कि उनके दिलों दिमाग तक ये रचनाएं उतर गई.

वरिष्ठ शायरा शबाना नज़ीर ने सुनाईं नज़्में और ग़ज़लें: अंत में वरिष्ठ शायरा शबाना नज़ीर ने अपनी कई नज़्में और ग़ज़लें सुनाईं, जिनके शीर्षक थे रोबोट, वफ़ा, ज़मीं का दर्द आदि. इस अवसर पर कई महत्वपूर्ण शायर और श्रोता उपस्थित थे. जिन्होंने इन नज्मों और गजलों की बखूबी सराहना की. कार्यक्रम का संचालन संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया.

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