नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार सांसद आदर्श ग्राम योजना उम्मीदों के अनुरूप परवान नहीं चढ़ सका. देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो यहां के सात भाजपा सांसदों को ही इसमें परेशानी हुई.
प्रधानमंत्री के आह्वान पर उन्होंने दिल्ली के अलग-अलग गांवों को तो गोद ले लिया था, लेकिन जमीनी स्तर पर जब काम करने के लिए उतरे तो कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. जिसकी वजह से अधिकांश सांसद आदर्श गांव बनाने की योजना के पीछे हट गए. बकौल उदित राज छोड़कर पूरे देश की बात करें तो 70-80 फीसद सांसद इस योजना से पीछे हट गए.
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद उदित राज ने कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उन्होंने कहा कि वह काफी खुशी का अनुभव कर रहे हैं कि उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में आने वाले तकरीबन 80 गांव में से आदर्श ग्राम योजना के तहत 4 गांव में विकास कार्य करा सके. इसका श्रेय उन्होंने योजना के लिए प्रत्येक गांव के लिए नियुक्त अलग-अलग महिलाओं को दिया.
महिलाओं को दी जिम्मेदारी
उन्होंने कहा कि वह गांव में पैदा हुए इसीलिए गांव की सच्चाई से भली-भांति अवगत हैं. आज भी गांव में सबसे अधिक भेदभाव जाति, धर्म एवं ऊंच-नीच के आधार पर होता है. इसीलिए निर्देश दिया कि सभी को विकास के लिए एकजुट किया जाए. तभी गांव का सर्वांगीण विकास हो सकता है. उन्होंने महिलाओं और युवकों को प्रशिक्षित करके उन्हें मुख्यधारा में जुड़ने के निर्देश दिए और यह जिम्मेदारी जिन महिलाओं को दी उनका दावा है कि वह इसमें सफल हुए.
चार गांव के लिए 20 करोड़ का काम किए
दिल्ली के गांव में आज भी महिलाएं घूंघट करती हैं और पुरुषों के साथ नहीं उठती बैठती हैं. जबकि इन गांव की स्थिति बदल रही है. स्वच्छ भारत योजना का अनुसरण करते हुए इंसानों सांसद आदर्श गांव को खुले में शौच से मुक्ति के लिए 100 से अधिक घरों में शौचालय बनवाए गए. सांसद उदित राज ने कहा कि इस योजना के लिए कोई अलग से फंड का प्रावधान नहीं किया गया है, इसलिए थोड़ी सी शुरू में परेशानी हुई. लेकिन गांवों के विकास का संकल्प लिया और इन चारों गांव में लगभग 20 करोड़ रुपये के विकास कार्य किए गए.