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नहीं रहे हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक नामवर सिंह, एम्स में ली आखरी सांस

नई दिल्ली: हिंदी साहित्य के बड़े आलोचक और साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह नहीं रहे. उन्होंने मंगलवार रात 11:51 बजे दिल्ली के एम्स में आखरी सांस ली. वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनका जन्म 28 जुलाई 1926 को बनारस के जीयनपुर गांव में हुआ था.

साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह का निधन
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Published : Feb 20, 2019, 9:23 AM IST

डॉ. नामवर सिंह हिंदी के अलावा उर्दू के भी बड़े जानकार थे. इसकी झलक उनके भाषणों में उर्दू पर उनकी पकड़ साफ दिखाई पड़ती थी. उन्होंने अध्यापन और लेखन के अलावा जनयुग और आलोचना नामक हिंदी की दो पत्रिकाओं का संपादन भी किया है.

लंबे समय तक जेएनयू में पढ़ाया
डॉ. नामवर सिंह का जन्म 1926 में उत्तर प्रदेश के बनारस के जीयानपुर गांव में हुआ था. वे हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे. उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से साहित्य में एमए में और पीएचडी किया, जिसके बाद कई वर्षों तक यहां पर पढ़ाया. उसके बाद सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया. हालांकि, उन्होंने सबसे लंबे समय तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाया और यहां से रिटायर होने के बाद एमिरेट्स प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाते रहे.

राजनीति में भी हाथ आजमाया
हिंदी साहित्य के आलोचक रहे डॉ. नामवर सिंह ने वर्ष 1959 चकिया-चंदौली से लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से किस्मत आजमाया, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. चुनाव हारने के बाद उन्होंने काशी विश्वविद्यालय छोड़ दिया.

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कुछ प्रमुख रचनाएं
डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े आलोचक में से एक थे. हिंदी साहित्य में छायावाद, इतिहास और आलोचना, नई कहानी, पृथ्वीराज रासो की भाषा, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज, वाद-विवाद और संवाद उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं. वहीं उन्हें वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार कविता के नए प्रतिमान के लिए सम्मानित किया गया.

साहित्य अकादमी पुरस्कार सम्मान
नामवर सिंह सिंह को वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार 'कविता के नए प्रतिभान' के लिए दिया गया. उन्हें हिंदी अकादमी की ओर से शलाका सम्मान और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से नवाजा गया. वहीं उन्हें महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान से भी सम्मानित किया गया.

डॉ. नामवर सिंह हिंदी के अलावा उर्दू के भी बड़े जानकार थे. इसकी झलक उनके भाषणों में उर्दू पर उनकी पकड़ साफ दिखाई पड़ती थी. उन्होंने अध्यापन और लेखन के अलावा जनयुग और आलोचना नामक हिंदी की दो पत्रिकाओं का संपादन भी किया है.

लंबे समय तक जेएनयू में पढ़ाया
डॉ. नामवर सिंह का जन्म 1926 में उत्तर प्रदेश के बनारस के जीयानपुर गांव में हुआ था. वे हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे. उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से साहित्य में एमए में और पीएचडी किया, जिसके बाद कई वर्षों तक यहां पर पढ़ाया. उसके बाद सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया. हालांकि, उन्होंने सबसे लंबे समय तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाया और यहां से रिटायर होने के बाद एमिरेट्स प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाते रहे.

राजनीति में भी हाथ आजमाया
हिंदी साहित्य के आलोचक रहे डॉ. नामवर सिंह ने वर्ष 1959 चकिया-चंदौली से लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से किस्मत आजमाया, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. चुनाव हारने के बाद उन्होंने काशी विश्वविद्यालय छोड़ दिया.

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कुछ प्रमुख रचनाएं
डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े आलोचक में से एक थे. हिंदी साहित्य में छायावाद, इतिहास और आलोचना, नई कहानी, पृथ्वीराज रासो की भाषा, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज, वाद-विवाद और संवाद उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं. वहीं उन्हें वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार कविता के नए प्रतिमान के लिए सम्मानित किया गया.

साहित्य अकादमी पुरस्कार सम्मान
नामवर सिंह सिंह को वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार 'कविता के नए प्रतिभान' के लिए दिया गया. उन्हें हिंदी अकादमी की ओर से शलाका सम्मान और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से नवाजा गया. वहीं उन्हें महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान से भी सम्मानित किया गया.

Intro:हिंदी साहित्य के बड़े आलोचक और साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह नहीं रहे. उन्होंने मंगलवार रात 11:51 बजे दिल्ली के एम्स में आखरी सांस ली. वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनका जन्म 28 जुलाई 1926 को बनारस के जीयनपुर गांव में हुआ था. डॉ नामवर सिंह हिंदी के अलावा उर्दू के भी बड़े जानकार थे. इसकी झलक उनके भाषणों में उर्दू पर उनकी पकड़ साफ दिखाई पड़ती थी. उन्होंने अध्यापन और लेखन के अलावा जनयुग और आलोचना नामक हिंदी की दो पत्रिकाओं का संपादन भी किया है.



Body:डॉ नामवर सिंह का जन्म 1926 में उत्तर प्रदेश के बनारस के जीयानपुर गांव में हुआ था. वह हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे. उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से साहित्य में एमए में और पीएचडी किया. जिसके बाद कई वर्षों तक यहां पर पढ़ाया. उसके बाद सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया. लेकिन उन्होंने सबसे लंबे समय तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाया और यहां से रिटायर होने के बाद एमिरेट्स प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाते रहे.

राजनीति में भी हाथ आजमाया

हिंदी साहित्य के आलोचक रहे डॉ नामवर सिंह ने वर्ष 1959 चकिया - चंदौली से लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से किस्मत आजमाया लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. चुनाव हारने के बाद उन्होंने काशी विश्वविद्यालय छोड़ दिया.

कुछ प्रमुख रचनाएं

डॉ नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े आलोचक में से एक थे. हिंदी साहित्य में छायावाद ,इतिहास और आलोचना, नई कहानी, पृथ्वीराज रासो की भाषा, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज, वाद विवाद और संवाद उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं. वहीं उन्हें वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार कविता के नए प्रतिमान के लिए सम्मानित किया गया.


साहित्य अकादमी पुरस्कार सम्मान से नवाजे गए

नामवर सिंह सिंह को वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार 'कविता के नए प्रतिभान' के लिए दिया गया. उन्हें हिंदी अकादमी की ओर से शलाका सम्मान और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से नवाजा गया. वहीं उन्हें महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान से भी सम्मानित किया गया.


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