नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट पर नहीं जीत पाई. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीट हासिल कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. कांग्रेस की इस हार की वजह पार्टी अंदर की कलह और गुटबाजी बताई जा रही है.
शीला दीक्षित के समय से चल रही थी गुटबाजी
बता दें कि दिल्ली में 15 साल तक शीला दीक्षित ने कांग्रेस की सरकार को संभाल कर रखा. लेकिन 2013 के चुनाव मैं जिस तरीके से पार्टी को नतीजे मिले उसके बाद पार्टी में लगातार गुटबाजी देखने को मिल रही थी. इतना ही नहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने यह आरोप लगा दिया कि उनकी मां की मृत्यु पीसी चाको की वजह से हुई है. जिसके बाद पार्टी के अंदर लगातार खलबली मची रही.
शीला दीक्षित के निधन के बाद दिल्ली कांग्रेस कमेटी की कमान सुभाष चोपड़ा को सौंपी गई. उन्हें पार्टी हाईकमान से यह साफ निर्देश दिया गया कि वह सबसे पहले पार्टी की गुटबाजी और कलह को खत्म करें. लेकिन कैंपेन कमिटी के चेयरमैन कीर्ति आजाद और सुभाष चोपड़ा के बीच कलह इस स्तर तक पहुंच गई, कि वे एक साथ प्रेस कांफ्रेंस भी नहीं करते थे.
एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ सकी कांग्रेस
अहम बात यह है कि सुभाष चोपड़ा जहां दिल्ली की कमान संभाल कर चुनाव की तैयारी में थे, तो वहीं दूसरी ओर कैंपेन कमेटी के चेयरमैन कीर्ति आजाद भी प्रचार प्रसार कर रहे थे. लेकिन दोनों के बीच के मतभेद इस स्तर पर देखने को मिले कि दोनों नेताओं के समर्थक अलग-अलग प्रदर्शन में देखे जाते थे. जिस वजह से एकजुट होकर पार्टी चुनाव नहीं लड़ सकी.
विधानसभा चुनाव के रुझान आते ही दिल्ली महिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष शर्मिष्ठा मुखर्जी ने ट्विटर के जरिए कांग्रेस की अंदरूनी कलह खुले तौर पर बयां कर दी. उन्होंने कहा कि इस सब के पीछे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है.