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जनता का साथ और विपक्ष का समर्थन, यह है अधिकार बचाने की केजरीवाल सरकार की रणनीति - जीएनसीटीडी एमेंडमेंट बिल के विरोध में प्रदर्शन

जंतर-मंतर पर आक्रोश प्रदर्शन के बाद अब आम आदमी पार्टी सड़क से लेकर संसद तक GNCTD एमेंडमेंट बिल के खिलाफ लड़ाई की रणनीति तैयार कर रही है. एक तरफ जनसमर्थन की कोशिश है. वहीं दूसरी तरफ संसद में इस मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने की कवायद.

GNCTD बिल के विरोध की क्या है रणनीति?
GNCTD बिल के विरोध की क्या है रणनीति?
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Published : Mar 19, 2021, 9:04 AM IST

नई दिल्ली: बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी ने GNCTD एमेंडमेंट बिल के खिलाफ अपनी ताकत दिखाई. हजारों की संख्या में उमड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए सीएम केजरीवाल ने कहा कि हम दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकारों को जाने नहीं देंगे और इस बिल के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी. आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं ने भी इस आक्रोश प्रदर्शन के मंच से केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ हमला बोला.

GNCTD बिल के विरोध की क्या है रणनीति?

ये भी पढ़ें- GNCTD एमेंडमेंट बिल के खिलाफ AAP का हल्ला बोल, केंद्र पर बरसे केजरीवाल


'...तो उपराज्यपाल के हाथ में होगा शासन'
आपको बता दें कि बीते सोमवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन अधिनियम-1991 में संशोधन का विधेयक पेश किया था. इसके बाद से ही आम आदमी पार्टी इस बिल के विरोध में है. विरोध का कारण यह है कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद दिल्ली में उपराज्यपाल को सरकार माना जाएगा. दिल्ली विधानसभा द्वारा पास किए गए किसी भी बिल को उपराज्यपाल रोक सकेंगे और दिल्ली सरकार और दिल्ली विधानसभा को किसी भी फैसले के लिए उपराज्यपाल की सहमति लेनी होगी.

ये भी पढ़ें- संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से समझें GNCTD बिल के कानूनी पहलू


'हो रही जनता का साथ लेने की कोशिश'
केजरीवाल सरकार को लगता है कि ऐसा हो जाने से न सिर्फ उसकी शक्तियां कम होंगी, बल्कि दिल्ली को लेकर उनकी आगामी योजनाओं पर भी पाबंदी लग जाएगी. इसलिए अब आम आदमी पार्टी सड़क से संसद तक इस बिल का विरोध करने की रणनीति बना रही है. दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि इसे लेकर जनता को जागरूक किया जाएगा. उन्होंने कहा कि दिल्ली की 90 फीसदी जनता चाहती है कि दिल्ली में दिल्ली की चुनी हुई सरकार का शासन हो.


'थोपना चाहते हैं वायसराय जैसा शासन'
सत्येंद्र जैन ने केंद्र के इस कदम की तुलना अंग्रेजों के जमाने के वायसराय शासन से भी की. उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल पूरे होने वाले हैं और केंद्र सरकार अब उसी तरह का शासन दिल्ली पर थोपना चाहती है, जैसे अंग्रेजों के समय में था. जब चुनी हुई सरकार वायसराय को रिपोर्ट करती थी. उन्होंने कहा कि हम ऐसा नहीं होने देंगे. आम आदमी पार्टी अब सदन में भी सरकार के इस कदम के विरोध के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कवायद में जुटी है.

ये भी पढ़ें- जानिए क्या है GNCTD Bill? इसके फायदे और नुकसान पर क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप



'विपक्ष को एकजुट करने की कवायद'
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बताया कि अन्य विपक्षी दलों को भी इस मुद्दे पर साथ लाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि सदन में विपक्ष एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठाए. हालांकि संजय सिंह ने इसका जिक्र भी किया कि भाजपा की केंद्र सरकार किस तरह विपक्ष की बातों को अनसुना करती है. उन्होंने कहा कि हम इसे खिलाफ आवाज उठाएंगे. देखने वाली बात होगी कि विरोध की आवाज को केंद्र सरकार मानती है या फिर अनसुना कर देती है.

'राजनीतिक विश्लेषक की राय'
पॉलिटिकल पंडित भी मानते हैं कि केंद्र सरकार का यह कदम दिल्ली की केजरीवाल सरकार को काबू में करने के लिए है. राजनीतिक विश्लेषक संदीप चौधरी कहते हैं कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार अब तक फ्री होकर काम करती रही है. लेकिन केंद्र सरकार चाहती है कि उसे अपने काबू में किया जाए और इसीलिए केंद्र सरकार यह बिल लेकर आई है. उन्होंने कहा कि इस बिल के कानून बन जाने के बाद केजरीवाल सरकार अपने मन मुताबिक कोई कदम नहीं उठा सकेगी और उसके लिए उपराज्यपाल की सहमति जरूरी होगी.

नई दिल्ली: बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी ने GNCTD एमेंडमेंट बिल के खिलाफ अपनी ताकत दिखाई. हजारों की संख्या में उमड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए सीएम केजरीवाल ने कहा कि हम दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकारों को जाने नहीं देंगे और इस बिल के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी. आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं ने भी इस आक्रोश प्रदर्शन के मंच से केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ हमला बोला.

GNCTD बिल के विरोध की क्या है रणनीति?

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'...तो उपराज्यपाल के हाथ में होगा शासन'
आपको बता दें कि बीते सोमवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन अधिनियम-1991 में संशोधन का विधेयक पेश किया था. इसके बाद से ही आम आदमी पार्टी इस बिल के विरोध में है. विरोध का कारण यह है कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद दिल्ली में उपराज्यपाल को सरकार माना जाएगा. दिल्ली विधानसभा द्वारा पास किए गए किसी भी बिल को उपराज्यपाल रोक सकेंगे और दिल्ली सरकार और दिल्ली विधानसभा को किसी भी फैसले के लिए उपराज्यपाल की सहमति लेनी होगी.

ये भी पढ़ें- संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से समझें GNCTD बिल के कानूनी पहलू


'हो रही जनता का साथ लेने की कोशिश'
केजरीवाल सरकार को लगता है कि ऐसा हो जाने से न सिर्फ उसकी शक्तियां कम होंगी, बल्कि दिल्ली को लेकर उनकी आगामी योजनाओं पर भी पाबंदी लग जाएगी. इसलिए अब आम आदमी पार्टी सड़क से संसद तक इस बिल का विरोध करने की रणनीति बना रही है. दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि इसे लेकर जनता को जागरूक किया जाएगा. उन्होंने कहा कि दिल्ली की 90 फीसदी जनता चाहती है कि दिल्ली में दिल्ली की चुनी हुई सरकार का शासन हो.


'थोपना चाहते हैं वायसराय जैसा शासन'
सत्येंद्र जैन ने केंद्र के इस कदम की तुलना अंग्रेजों के जमाने के वायसराय शासन से भी की. उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल पूरे होने वाले हैं और केंद्र सरकार अब उसी तरह का शासन दिल्ली पर थोपना चाहती है, जैसे अंग्रेजों के समय में था. जब चुनी हुई सरकार वायसराय को रिपोर्ट करती थी. उन्होंने कहा कि हम ऐसा नहीं होने देंगे. आम आदमी पार्टी अब सदन में भी सरकार के इस कदम के विरोध के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कवायद में जुटी है.

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'विपक्ष को एकजुट करने की कवायद'
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बताया कि अन्य विपक्षी दलों को भी इस मुद्दे पर साथ लाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि सदन में विपक्ष एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठाए. हालांकि संजय सिंह ने इसका जिक्र भी किया कि भाजपा की केंद्र सरकार किस तरह विपक्ष की बातों को अनसुना करती है. उन्होंने कहा कि हम इसे खिलाफ आवाज उठाएंगे. देखने वाली बात होगी कि विरोध की आवाज को केंद्र सरकार मानती है या फिर अनसुना कर देती है.

'राजनीतिक विश्लेषक की राय'
पॉलिटिकल पंडित भी मानते हैं कि केंद्र सरकार का यह कदम दिल्ली की केजरीवाल सरकार को काबू में करने के लिए है. राजनीतिक विश्लेषक संदीप चौधरी कहते हैं कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार अब तक फ्री होकर काम करती रही है. लेकिन केंद्र सरकार चाहती है कि उसे अपने काबू में किया जाए और इसीलिए केंद्र सरकार यह बिल लेकर आई है. उन्होंने कहा कि इस बिल के कानून बन जाने के बाद केजरीवाल सरकार अपने मन मुताबिक कोई कदम नहीं उठा सकेगी और उसके लिए उपराज्यपाल की सहमति जरूरी होगी.

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