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पहले कोरोना और अब प्रदूषण, कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में बड़ी कंपनियों की टूटी कमर - द्वारका में द्वारका एक्सप्रेसवे

कोरोना और लॉकडाउन के कारण बहुत से क्षेत्रों में पहले की तरह वैसा कामकाज नहीं हो पा रहा है. कुछ ऐसा ही हाल कंस्ट्रक्शन क्षेत्र का है. ईटीवी भारत ने इसी लेकर दिल्ली के द्वारका में द्वारका एक्सप्रेसवे का काम देख रही जे कुमार कंपनी के मजदूरों और बड़े अधिकारियों से बात की.

J kumar company involved in dwarka expressway construction work in financial crises due to covid-19
कोरोना और प्रदूषण के कारण कंस्ट्रक्शन क्षेत्र पर पड़ा प्रभाव
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Published : Oct 22, 2020, 4:55 PM IST

नई दिल्ली: कोरोना और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था के साथ-साथ बहुत से क्षेत्र प्रभावित हुए हैं. वहीं अब देश में लागू अनलॉक-5 में चीजें पटरी पर आ रही हैं. अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जो अभी भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं. ऐसा ही हाल कंस्ट्रक्शन क्षेत्र का है. कंस्ट्रक्शन कंपनियों से जुड़े लोगों का कहना है कि वो पिछले एक साल से अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं.

कोरोना और प्रदूषण के कारण कंस्ट्रक्शन क्षेत्र पर पड़ा प्रभाव.

उम्मीद है चीजें होंगी बेहतर

ईटीवी भारत की टीम ने द्वारका इलाके में द्वारका एक्सप्रेसवे का काम देख रही जे कुमार कंपनी के मजदूरों संग बड़े अधिकारियों से बात की. इन लोगों ने बताया कि कैसे पहले कोरोना और अब प्रदूषण के चलते लागू किए गए नियम उनके लिए परेशानी बन रहे हैं. हालांकि वो उम्मीद कर रहे हैं कि चीजें बेहतर होंगी.

मजदूरों ने बताई व्यथा

यहां काम कर रहे मजदूर अपनी व्यथा बताते हैं. वो बताते हैं कि कैसे बीते 6 महीने में उनका अनुभव बदल गया है. पहले कोरोना के चलते घर जाना पड़ा और अब भी प्रदूषण के चलते काम पर संकट मंडरा रहा है. ऐसे में कंपनी भी घर बैठे तो पैसे नहीं देगी. मजदूर कहते हैं कि काम करने के तरीके में भी बदलाव आया है. अब न तो साथ बैठकर बात ही कर सकते हैं और न ही खाना-पीना कर सकते हैं.

लॉकडाउन के समय कंपनी ने की मदद

अधिकतर मजदूर दूर राज्यों से हैं. लॉकडाउन के दौरान ये लोग आने घर चले गए थे, लेकिन इस दौरान भी कंपनी ने उनकी मदद की. इसमें घर पहुंचाने से लेकर अब वापस बुलाने तक कि जिम्मेदारी कंपनी की रही.

कैसे टूटी कमर?

डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर अमरिंदर सिंह बताते हैं कि कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में काम करने वाली उनकी कंपनी और उनके जैसी कई अन्य कंपनीयां पिछले 6-7 महीनों से नहीं, बल्कि पिछले करीब एक साल से प्रभावित हैं. बीते साल नवंबर-दिसंबर महीने में प्रदूषण के चलते काम पूरी तरह बंद कर दिया गया था. फरवरी-मार्च में दोबारा इजाजत मिली तो कोरोना हो गया. अब काम शुरू ही हुआ था कि फिर से प्रदूषण आ गया. ऐसे में कंपनियों को बहुत नुकसान हो रहा है.

लॉकडाउन का अनुभव अच्छा नहीं

वह बताते हैं कि कोरोना का अनुभव किसी के लिए अच्छा नहीं है और ऐसा ही कंस्ट्रक्शन कंपनियों के साथ हुआ. कोरोना के कहर के चलते जब लॉकडाउन किया गया, तो उनके बहुत से मजदूर यहीं फंस गए, जिनके खाने-पीने का इंतजाम भी कंपनी ने किया. इसके साथ ही उनके रहने पीने के साथ तमाम जरूरतों का इंतजाम भी किया गया. इस तरह कंपनी का पूरा काम धाम बंद हुआ. पेमेंट रुक गई.

वहीं दूसरी तरफ मजदूरों के रहने और खाने का बोझ भी कंपनी ने उठाया. ऐसे में फाइनेंशियल स्थिति और अधिक खराब हो गई. कोरोना के समय तो सरकार ने तमाम तरीके की छूट और समय आगे बढ़ाकर मदद कर दी, लेकिन अब आगे क्या होगा ये कोई नहीं जानता, हालांकि वह उम्मीद जताते हैं कि सब कुछ जल्दी ही ट्रैक पर आ जाएगा.

नई दिल्ली: कोरोना और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था के साथ-साथ बहुत से क्षेत्र प्रभावित हुए हैं. वहीं अब देश में लागू अनलॉक-5 में चीजें पटरी पर आ रही हैं. अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जो अभी भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं. ऐसा ही हाल कंस्ट्रक्शन क्षेत्र का है. कंस्ट्रक्शन कंपनियों से जुड़े लोगों का कहना है कि वो पिछले एक साल से अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं.

कोरोना और प्रदूषण के कारण कंस्ट्रक्शन क्षेत्र पर पड़ा प्रभाव.

उम्मीद है चीजें होंगी बेहतर

ईटीवी भारत की टीम ने द्वारका इलाके में द्वारका एक्सप्रेसवे का काम देख रही जे कुमार कंपनी के मजदूरों संग बड़े अधिकारियों से बात की. इन लोगों ने बताया कि कैसे पहले कोरोना और अब प्रदूषण के चलते लागू किए गए नियम उनके लिए परेशानी बन रहे हैं. हालांकि वो उम्मीद कर रहे हैं कि चीजें बेहतर होंगी.

मजदूरों ने बताई व्यथा

यहां काम कर रहे मजदूर अपनी व्यथा बताते हैं. वो बताते हैं कि कैसे बीते 6 महीने में उनका अनुभव बदल गया है. पहले कोरोना के चलते घर जाना पड़ा और अब भी प्रदूषण के चलते काम पर संकट मंडरा रहा है. ऐसे में कंपनी भी घर बैठे तो पैसे नहीं देगी. मजदूर कहते हैं कि काम करने के तरीके में भी बदलाव आया है. अब न तो साथ बैठकर बात ही कर सकते हैं और न ही खाना-पीना कर सकते हैं.

लॉकडाउन के समय कंपनी ने की मदद

अधिकतर मजदूर दूर राज्यों से हैं. लॉकडाउन के दौरान ये लोग आने घर चले गए थे, लेकिन इस दौरान भी कंपनी ने उनकी मदद की. इसमें घर पहुंचाने से लेकर अब वापस बुलाने तक कि जिम्मेदारी कंपनी की रही.

कैसे टूटी कमर?

डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर अमरिंदर सिंह बताते हैं कि कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में काम करने वाली उनकी कंपनी और उनके जैसी कई अन्य कंपनीयां पिछले 6-7 महीनों से नहीं, बल्कि पिछले करीब एक साल से प्रभावित हैं. बीते साल नवंबर-दिसंबर महीने में प्रदूषण के चलते काम पूरी तरह बंद कर दिया गया था. फरवरी-मार्च में दोबारा इजाजत मिली तो कोरोना हो गया. अब काम शुरू ही हुआ था कि फिर से प्रदूषण आ गया. ऐसे में कंपनियों को बहुत नुकसान हो रहा है.

लॉकडाउन का अनुभव अच्छा नहीं

वह बताते हैं कि कोरोना का अनुभव किसी के लिए अच्छा नहीं है और ऐसा ही कंस्ट्रक्शन कंपनियों के साथ हुआ. कोरोना के कहर के चलते जब लॉकडाउन किया गया, तो उनके बहुत से मजदूर यहीं फंस गए, जिनके खाने-पीने का इंतजाम भी कंपनी ने किया. इसके साथ ही उनके रहने पीने के साथ तमाम जरूरतों का इंतजाम भी किया गया. इस तरह कंपनी का पूरा काम धाम बंद हुआ. पेमेंट रुक गई.

वहीं दूसरी तरफ मजदूरों के रहने और खाने का बोझ भी कंपनी ने उठाया. ऐसे में फाइनेंशियल स्थिति और अधिक खराब हो गई. कोरोना के समय तो सरकार ने तमाम तरीके की छूट और समय आगे बढ़ाकर मदद कर दी, लेकिन अब आगे क्या होगा ये कोई नहीं जानता, हालांकि वह उम्मीद जताते हैं कि सब कुछ जल्दी ही ट्रैक पर आ जाएगा.

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