नई दिल्ली: देश में कोरोना वायरस को रोकने के लिए अपनाए जा रहे तमाम एहतियात के बाद भी संक्रमण के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. ऐसे में जब कोरोना संक्रमण की कोई दवा नहीं है तो संक्रमित व्यक्ति की पहचान ही एकमात्र विकल्प है. इसी को ध्यान में रखते हुए आईआईटी दिल्ली के सभी प्रोजेक्ट का केंद्र ऐसे यंत्र बनाना है, जो कोविड-19 संक्रमण का पता लगा सकें. अपने इस प्रोजेक्ट के लिए आईआईटी दिल्ली को माइक्रोसॉफ्ट इंडिया से आर्थिक सहायता प्राप्त होगी.
कोरोना माहामारी से लड़ाई में आईआईटी दिल्ली में लगातार शोध चल रहा है. इसी कड़ी में अब उनका मुख्य उद्देश्य ऐसी तकनीक को विकसित करना है, जो लोगों में कोरोना संक्रमण का पता लगा सके. वहीं आईआईटी दिल्ली इस समय दो प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है. जिसके तहत कुसुम स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेस के शोधकर्ताओं ने प्रोब फ्री टेक्नोलॉजी बनाई है, जो कम दाम में बेहतर टेस्टिंग रिजल्ट देने की क्षमता रखता है. साथ ही इसे आईसीएमआर से मान्यता भी मिल चुकी है.
एलिसा में इस्तेमाल होंगे एंटीजेन
वहीं दूसरे प्रोजेक्ट के तहत आईआईटी दिल्ली नेशनल केमिकल लैबोरेटरी पुणे के साथ मिलकर एलिसा बेस्ड डायग्नोस्टिक सेरोलॉजिकल ऐसे किट बनाने पर काम कर रहा है, जो सफल होने पर एलिसा में इस्तेमाल होने वाले एंटीजेन बनाएगा जो कोविड माहामारी को नियंत्रित करने में मील का पत्थर साबित होगी.
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया ने दिया आर्थिक सहयोग
वहीं आईआईटी के इस दोनों प्रोजेक्ट को आर्थिक सहायता देने के लिए माइक्रोसॉफ्ट इंडिया कंपनी आगे आयी है. वहीं माइक्रोसॉफ्ट इंडिया की राष्ट्रीय तकनीकी अधिकारी रोहिनी श्रीवास्तव ने कहा कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोरोना को हराने के लिए शोधकर्ताओं को जिस भी संसाधन की आवश्यकता हो वो उन्हें हर हाल में मुहैया कराई जा सके.
आईआईटी डायरेक्टर ने की सराहना
वहीं आईआईटी दिल्ली के डायरेक्टर प्रो. वी रामगोपाल राव ने माइक्रोसॉफ्ट इंडिया की इस मदद को सराहा है. उन्होंने कहा कि माइक्रोसॉफ्ट इंडिया हमेशा से ही आईआईटी दिल्ली के साथ शोध कार्यों को और बेहतर बनाने में हमेशा साथ देता है. वहीं प्रो राव ने कहा कि कोविड-19 को रोकने में यह डिटेक्शन किट बहुत कारगर साबित होगा.