नई दिल्ली: अयोध्या में तैयार हो रहे राम मंदिर को लेकर न केवल राम भक्तों, बल्कि इससे भी ज्यादा प्रसन्नता उन कारसेवकों को है, जिन्होंने वहां का मंजर अपनी आंखों से देखा था. 1992 में काफी संख्या में कारसेवक दिल्ली से अयोध्या पहुंचे थे. उन्होंने अपनी जान की चिंता किए बगैर विवादित ढांचे का विध्वंश किया था. 'ETV भारत' ने आज एक ऐसे कारसेवक धर्मेंद्र बेदी से बातचीत की जिन्होंने अयोध्या जाने से पहले परिवारवालों से कहा था कि अगर जान चली जाए तो बलिदान पर ख़ुशी मानना.
धर्मेंद्र ने बताया कि सभी कारसेवकों और देशभर के हिंदुओं के लिए यह हर्ष का विषय है कि अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हम अपने आप को शूरवीर मानते हैं कि विवादित ढांचे में लगे उस पत्थर को हटाने में अपना हाथ लगाया, जो मुगल शासक बाबर के महामंत्री बीर बांकी द्वारा लगाया गया था. वहां उस पत्थर पर लिखा था कि इसको हिंदुओं के खून के गारे से निर्मित किया गया है. जब 1992 में विवादित ढांचे को ध्वस्त करने के लिए सभी कारसेवक दिल्ली से अयोध्या के लिए रवाना हुई थे, तब सभी के अंदर यह जोश था कि विवादित ढांचे को गिराकर ही वापस आना है. प्रभु राम की कृपा ऐसी थी कि ठीक वैसा ही हुआ.
धर्मेंद ने बताया कि जब कारसेवक अयोध्या के पास स्थित फैजाबाद जिले के पास पहुंचे तो वहां शिवसेना के विधायक पवन पांडे ने सभी का भव्य स्वागत किया. उन्होंने अयोध्या जाने के लिए कई गाड़ियों का भी इंतजाम किया. वहीं, RSS के नेता रामचंद परम हंस के घर पर एक मीटिंग का आयोजन किया गया, जहां आगे की योजना बनाई. उस समय मंच पर कई बड़े नेता मोजूद थे, जिसमें लाल कृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल शामिल थे, जिन्होंने घोषणा की थी कि आज की कारसेवक एक लोटा जल और रेत से करनी है.
विवादित ढांचे के गिरने से पहले सभी कारसेवकों ने सरयू नदी के आसपास के इलाके का जायजा लिया. और, यह जाना कि ढांचे के अंदर किस प्रकार प्रवेश किया जा सकता है? उस समय बागेल नाम के एक कारसेवक ने मार्गदर्शन किया. उन्होंने बताया कि ढांचे को तोड़ने के लिए डायनामाइट तक मौजूद था. उनकी योजना थी कि रात को ही ढांचे को उड़ा दिया जाए. लेकिन स्थिति यह थी कि एक मामूली बल्ब भी अंदर ले कर जाने की अनुमति नहीं थी. इसके बाद जब सुबह 11:00 के करीब कारसेवा शुरू हुई. तब सबसे पहले उस पत्थर को उखाड़ा गया, जिसको बीर बांकी ने लगाया था.
धर्मेंद्र को बाद में मालूम हुआ कि यह वही पत्थर हैं जिसको बीर बांकी ने लगाया था. इस क्रिया के दौरान उनके पैर की हड्डी भी टूट गई. लेकिन चोट की परवाह किए बगैर वह राम का नाम लेते हुए आगे बढ़ें और विध्वंस में अपना योगदान दिया. शाम को 5:00 बजे तक विजय हासिल हुई. उस समय UP के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे. उनका भी विवादित ढांचे को गिराने में विशेष योगदान है. उन्होंने तब तक स्पेशल फ़ोर्स को ढांचे के नज़दीक नहीं आने दिया जब पूरा ध्वस्त नहीं कर दिया गया.
ढाँचे को गिराने के बाद जुनूनी कारसेवकों ने वहां एक भी निशान नहीं छोड़ा. यहां तक की मलबे को भी ख़त्म कर दिया. लाखों के संख्या में मौजूद सरसेवकों ने एक एक पत्थर को उठा कर अपनी गाड़ियों में भरना शुरू किया और वहां से विवादित ढांचे का नामो निशान मिटा दिया.
बता दें कि बाबर के समय से लेकर 1992 तक 76 युद्ध हुए, इसमें 5 लाख कारसेवकों ने बलिदान दिया. धर्मेंद्र को ख़ुशी है कि अब देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी.