नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने ओपन बुक एग्जामिनेशन के तरीकों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के दौरान दिल्ली युनिवर्सिटी ने कहा कि छात्रों को प्रश्नों के उत्तर भेजने के लिए यूनिवर्सिटी के पोर्टल पर जाने की जरूरत नहीं है. जो छात्र ओपन बुक एग्जामिनेशन में शामिल नहीं हो पाएंगे वे बाद में आफलाइन परीक्षा में शामिल हो सकते हैं.
सुनवाई के दौरान दिल्ली युनिवर्सिटी ने कहा कि डिवीजन बेंच ने ओपन बुक एग्जामिनेशन की अनुमति दे दी है. इसलिए इसे वापस लेने का कोई सवाल नहीं है. याचिकाकर्ता चाहते हैं कि पहले के असेसमेंट के आधार पर रिजल्ट जारी हो. इस मसले पर यूजीसी को फैसला करना है. तब यूजीसी ने कहा कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित है.
ई-मेल से भी प्रश्नोत्तर भेजा जा सकता है
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा कि ओपन बुक एग्जामिनेशन छात्रों को एक जगह जमा होने से रोकना है। इस पर विस्तृत चर्चा की गई है. ओपन बुक एग्जामिनेशन के लिए किसी के पास उच्च तकनीक का होना जरुरी नहीं है. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा कि ये तरीका सबसे बेहतरीन तरीका है. ई-मेल से प्रश्नोत्तर भेज देना ही काफी है. इस परीक्षा के तुरंत बाद ही आफलाइन परीक्षा भी ली जाएगी. इससे छात्र अपना करियर आगे बढ़ा सकते हैं.
छात्रों की शिकायत निवारण के लिए कमेटी गठित
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा कि छात्रों की शिकायत का निवारण करने के लिए चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है. हर विभाग में हेल्पलाईन स्थापित किया गया है. तब कोर्ट ने पूछा कि क्या कमेटी का ई-मेल है. तब डीन ऑफ एग्जामिनेशन प्रोफेसर विनय गुप्ता ने कहा कि कमेटी के लोगों का सीधे बातचीत करना उचित नहीं है. तब कोर्ट ने पूछा कि छात्र अपनी बात कैसे पहुंचाएंगे. इस पर प्रोफेसर गुप्ता ने कहा कि शिकायती ई-मेल कर सकते हैं. कोर्ट ने पूछा कि अपलोडिंग और डाउनलोडिंग के समय पर क्या फैसला किया गया तब प्रोफेसर गुप्ता ने कहा कि सभी मसलों का हल कर लिया गया है.
सात एमबी तक की फाईल भेज सकते हैं
कोर्ट ने पूछा कि क्या कई पीडीएफ ई-मेल कर सकते हैं. तब प्रोफेसर गुप्ता ने कहा कि हां पीडीएफ ई-मेल कर सकते हैं. प्रोफेसर गुप्ता ने कहा कि पोर्टल पर टाइमर है. उन्होंने कहा कि फाईल की साईज पांच एमबी से बढ़ाकर सात एमबी की जा सकती है. उन्होंने कहा कि तीन शिफ्ट में परीक्षा होगी.
बिना विचार विमर्श के लाया गया ओपन बुक एग्जामिनेशन
पिछले 4 अगस्त को आज याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पूरी हो गईं थीं. याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि ओपन बुक एग्जामिनेशन को बिना कोई विचार-विमर्श किए लाया गया है. यूजीसी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि यूजीसी के दिशानिर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी सुनवाई चल रही है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक सुनवाई टालने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि परीक्षाएं समयबद्ध होनी चाहिए. इससे गुणवत्ता बनी रहेगी. तब कोर्ट ने कहा था कि अगर आनलाइन नहीं हो पाया और कोई छात्र इसमें शामिल नहीं हो सका तब आफलाइन परीक्षा सितंबर में होगी. तब मेहता ने कहा था कि इस पर सितंबर के बाद भी सुनवाई हो सकती है. तब कोर्ट ने कहा था कि तब यह हमेशा के लिए चलता रहेगा. आईसीएमआर कह रही है कि कोरोना का चरम नवंबर में आएगा.
लिखित परीक्षा की पवित्रता पूरी दुनिया मानती है
मेहता ने कहा था कि फाईनल ईयर के लिए अधिकांश लोगों का असेसमेंट इंटरनल आधार पर आयोजित नहीं की जा सकती है. फाईनल ईयर में परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए. यह आनलाइन, आफलाइन या दोनों को मिलाकर किया जा सकता है. उन्होंने कहा था कि अकादमिक दुनिया में लिखित परीक्षा की पवित्रता पूरी दुनिया मानती है. जिनके पास इंटरनेट नहीं वे मॉक टेस्ट नहीं दे सकेंगे. एक याचिकाकर्ता अनुपम की ओर से वकील आकाश सिन्हा ने कहा था कि ओपन बुक एग्जामिनेशन भारतीय संविधान की धारा 14, 16 और 21 का उल्लंघन करता है. जिन छात्रों के पास इंटरनेट नहीं है वे मॉक टेस्ट भी नहीं दे सकेंगे. वे सीधे 10 अगस्त को परीक्षा देने के लिए बैठेंगे. कई छात्र ऐसे हैं जो क्वारंटाइन इलाकों और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में रहते हैं. उन्होंने ओपन बुक एग्जामिनेश को भेदभाव करने वाला बताया था. उन्होंने कहा था कि कई युनिवर्सिटीज के रिजल्ट घोषित हो चुके हैं और ऐसे में दिल्ली युनिवर्सिटी के छात्र अवसर से चुक जाएंगे.
कॉमन सर्विस सेंटर मॉक टेस्ट के लिए नहीं
पिछले 27 जुलाई को दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा था कि उसके कॉमन सर्विस सेंटर मॉक टेस्ट के लिए नहीं है और वहां केवल मुख्य परीक्षा ही आयोजित की जा सकती है. हाईकोर्ट ने कॉमन सर्विस सेंटर इस्तेमाल करने वाले छात्रों की लिस्ट नहीं देने पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की आलोचना की थी.
तकनीकी समस्याओं के लिए 4 प्रोफेसर
कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूछा था कि क्या आपने तकनीकी समस्याओं पर गौर करने के लिए कोई कमेटी का गठन किया है. तब दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा था कि इसका गठन किया जाना बाकी है और इसमें कम से कम चार प्रोफ़ेसर रहेंगे. तब कोर्ट ने पूछा था कि इस समिति को छात्रों की तकनीकी समस्याओं का निराकरण करने में कितना समय लगेगा. तब दिल्ली युनिवर्सिटी ने कहा कि पांच दिन लगेंगे.
तीन लाख साठ हजार कॉमन सर्विस सेंटर
कॉमन सर्विस सेंटर की ओर से कहा गया था कि तीन लाख साठ हजार कॉमन सर्विस सेंटर हैं. वहां पर कंप्यूटर, स्कैनर, इंटरनेट इत्यादि मौजूद हैं. कुछ सर्विस सेंटर पर जो कंप्यूटर है कुछ पर पन्द्रह. कोर्ट ने पूछा कि क्या आपके पास छात्रों की सूची है. क्योंकि कई छात्र असम, केरल तमिलनाडु इत्यादि राज्यों के हैं. तब कोर्ट ने कहा था कि हमारे रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली से बाहर के 59,000 छात्र हैं. क्या आपके पास छात्रों की सूची है जो आप कॉमन सर्विस सेंटर को सौंप सकें. इस पर कॉमन सर्विस सेंटर ने कहा की कोई सूची उपलब्ध नहीं कराई गई है. इस पर जस्टिस गुप्ता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इस तरह से कैसे कोर्ट चलेगा.
क्या बहुविकल्पी प्रश्नों का विकल्प संभव है
पिछले 22 जुलाई को कोर्ट ने यूजीसी से पूछा था कि क्या फाईनल ईयर के छात्रों के लिए आयोजित होने वाली आनलाइन परीक्षा में बहुविकल्पी प्रश्नों का विकल्प संभव है. सुनवाई के दौरान यूजीसी ने कहा था कि पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर किसी को डिग्री नहीं दी जा सकती है.