नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि एम्स की सीटें बिकाऊ नहीं हैं. एमबीबीएस की सीटें उन बच्चों को मिलती है, जो घंटों दाखिले के लिए तैयारी करते हैं. कोर्ट ने यह बात कहते हुए याचिकाकर्ता विम्मी चावला की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कड़कड़डूमा कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
जस्टिस जसमीत सिंह ने याचिकाकर्ता की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि उसने एम्स में एमबीबीएस की सीटें पक्की करने के लिए प्रतिवादी को पैसे दिए थे. दरअसल, याचिकाकर्ता विम्मी चावला ने याचिका दायर कर मांग की थी कि उसने अपनी बेटी का एम्स में एमबीबीएस में दाखिला सुनिश्चित कराने के लिए दीपक सेठी नाम के शख्स को पैसे दिए थे. याचिका में आरोप लगाया गया था कि दीपक सेठी को पैसे देने के बावजूद बेटी का दाखिला नहीं हो पाया. उसके बाद याचिकाकर्ता ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और उच्च अधिकारियों से संपर्क किया था.
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कड़कड़डूमा कोर्ट में मामला दर्ज: कड़कड़डूमा कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कोर्ट किसी गैरकानूनी कार्य का बचाव नहीं कर सकती है. भारतीय संविदा कानून की धारा 23 के तहत याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच हुआ कोई भी समझौता मान्य नहीं हो सकता है. यह सबूत कोर्ट के लिए मान्य नहीं हो सकते. याचिकाकर्ता ने कड़कड़डूमा कोर्ट के इस फैसले के बाद मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका के तथ्य एक घृणित तस्वीर सामने लाती है. ट्रायल कोर्ट के फैसले में दखल देने का कोई सवाल पैदा नहीं होता है.
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