नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने भारत नेट प्रोजेक्ट के तहत देश भर के गांवों में वाई-फाई एक्सेस प्वाइंट बनाने के लिए टेंडर की प्रक्रियाओं का पालन किए बिना ही टेंडर जारी करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई को टाल दिया है. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई टालने का आदेश दिया.
निजी कंपनी को टेंडर दिया गया
18 दिसंबर 2020 को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार और केंद्रीय सतर्कता आयोग को नोटिस जारी किया था. याचिका टेलीकॉम वाचडॉग नामक एनजीओ ने दायर किया है. एनजीओ की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने कॉमन सर्विस सेंटर नामक कंपनी का गठन किया. इस कंपनी के जरिये पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप मॉडल पर ई-गवर्नेंस सेवाएं देने की योजना है. कॉमन सर्विस सेंटर एक निजी कंपनी है, लेकिन इसे सरकारी कंपनी के रुप में पेश किया जा रहा है. इस कंपनी को नामांकन के आधार पर टेंडर जारी किए गए है जो टेंडर प्रक्रियाओं का उल्लंघन है.
निजी कंपनी ने अपनी सहयोगी कंपनी को दिया टेंडर
याचिका में कहा गया है कि सरकार से टेंडर मिलने के बाद कॉमन सर्विस सेंटर नामक कंपनी ने ये पूरा काम अपनी सहयोगी कंपनी कॉमन सर्विस सेंटर वाईफाई चौपाल सर्विस इंडिया प्राईवेट लिमिटेड को सौंप दिया. उसके बाद इस सहयोगी कंपनी ने दूसरी निजी कंपनियों को टेंडर जारी कर दिया. याचिका में कहा गया है कि दरअसल ये घोटाला है जो मार्च 2017 में शुरु हुआ था.
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दूसरा कांट्रैक्ट फरवरी 2018 में जारी किया गया
साल 2017 में सौ करोड़ रुपये का कांट्रैक्ट जारी किया गया था जो पांच हजार वाई-फाई एक्सेस प्वाइंट स्थापित करने के लिए था. उसके बाद दूसरा कांट्रैक्ट फरवरी 2018 में जारी किया गया, जो पांच सौ करोड़ का था. दूसरे कांट्रैक्ट में 28, 248 वाई-फाई एक्सेस प्वायंट स्थापित करना था. इसी तहत तीसरा टेंडर जुलाई 2019 में जारी किया गया था जो 1903.05 करोड़ का था. याचिका में कहा गया था कि इस टेंडर के लिए सरकारी कंपनी भारत ब्राडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) ने भी टेंडर जारी किया था, लेकिन उसे वापस ले लिया गया.