नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम (MCD) में मनोनीत पार्षदों के लिए मंगलवार का दिन खास है. दिल्ली सरकार ने एमसीडी में सदस्यों को मनोनीत करने के उपराज्यपाल के अधिकार को चुनौती दी है. सरकार ने आरोप लगाया है कि मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना उपराज्यपाल ने एमसीडी में 10 पार्षदों को मनोनीत कर दिया, यह दिल्ली नगर निगम एक्ट का उल्लंघन है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई होगी.
12 मई को इस मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल को सरकार के मंत्री परिषद की सलाह पर नगर निगम में 10 एल्डरमैन (मनोनीत पार्षद) को नामित करना चाहिए. कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद एमसीडी में मनोनीत 10 पार्षद अपनी सदस्यता को लेकर सुनवाई पर नजरें टिकाए हुए हैं.
4 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट से LG को मिला है झटकाः बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी के दैनिक प्रशासन को चलाने वाले उपराज्यपाल के अधिकारों को सीमित करने के संबंध में आदेश दिया था. संविधान पीठ ने कहा था कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेंगे. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मद्देनजर उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश वकील ने एल्डरमैन के संबंध में पहले से दायर जवाब को वापस करने की अनुमति मांगी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था. वकील को नया हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को तय की गई है.
आम आदमी पार्टी का पक्षः आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता और दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज का कहना है कि दिल्ली वालों ने एमसीडी के अंदर आम आदमी पार्टी को बहुमत दिया है, लेकिन भाजपा ने गलत तरीके से 10 पार्षदों को एल्डरमैन के तौर पर मनोनीत किया है. पार्टी अपने लीडर ऑफ द हाउस और मेयर प्रत्याशी के जरिए सुप्रीम कोर्ट गई है. कोर्ट में हमने मांगे रखीं है कि एल्डरमैन को संविधान के आर्टिकल और डीएमसी एक्ट के सेक्शन 3 के तहत वोटिंग का अधिकार नहीं है. ऐसे में उनको वोट डालने से रोका जाए.
कहते हैं एमसीडी के पूर्व कमिश्नरः एकीकृत एमसीडी के पूर्व कमिश्नर केएस मेहरा का कहना है कि डीएमसी एक्ट के अनुसार मनोनीत पार्षदों को मेयर, डिप्टी मेयर या स्टैंडिंग कमिटी के चुनाव में वोटिंग का अधिकार नहीं है. वह केवल जोनल इलेक्शन में मतदान कर सकते हैं. अगर उन्हें यह अधिकार देना भी है तो एक्ट में संशोधन करना पड़ेगा. केवल आदेश जारी करके ऐसा नहीं किया जा सकता.
मेहरा ने बताया कि 2007 से पहले एल्डरमैन का प्रावधान था, जिन्हें आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए चुना जाता था. 2007 से पार्षदों को मनोनीत करने का प्रावधान आया. इसके लिए दिल्ली सरकार शहरी विकास विभाग के जरिए नाम भेजती थी, जिस पर उपराज्यपाल ही अंतिम मंजूरी देते थे. अभी तक यही परंपरा चली आ रही थी. लेकिन इस बार उपराज्यपाल ने खुद ही 10 लोगों को मनोनीत कर दिया है. इसलिए विवाद हो रहा है.
बता दें, दिल्ली सरकार ने एमसीडी में मनोनीत सदस्यों को उपराज्यपाल द्वारा तय किए जाने के अधिकार को चुनौती दी थी. आम आदमी पार्टी की सरकार ने आरोप लगाया है कि मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना उपराज्यपाल ने एमसीडी में 10 पार्षदों को मनोनीत कर दिया, यह दिल्ली नगर निगम एक्ट का उल्लंघन है.
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एमसीडी में मनोनीत 10 पार्षदों (एल्डरमैन) के नामः गत चार जनवरी को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने 10 लोगों को निगम सदन में पार्षद मनोनीत (एल्डरमैन) नियुक्त किया था. इसमें रोहताश कुमार, कमलजीत सिंह, राजपाल राणा, संजय त्यागी, मोहन गोयल, राजकुमार भाटिया, महेश सिंह तोमर, मुकेश मान, लक्ष्मण आर्य और विनोद कुमार शामिल हैं.