नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट आज दिल्ली नगर निगमों के कर्मचारियों और हेल्थ वर्कर्स को सैलरी देने की मांग पर सुनवाई करेगा. पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीनों नगर निगमों को फटकार लगाते हुए कहा था कि यह समस्या कोरोना महामारी की वजह से नहीं, बल्कि दिल्ली सरकार के केंद्र और निगमों के बीच सैंडविच बनने की वजह से बनी है. हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि उसने नगर निगमों को कर्ज के फंड से जो कटौती की है वह रकम दो हफ्ते के भीतर निगमों को दे दे.
अप्रैल 2020 से खर्च का ब्योरा मांगा
जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने तीनों नगर निगमों को निर्देश दिया था कि वे अप्रैल 2020 से विभिन्न क्षेत्रों में अपने खर्चे का ब्योरा कोर्ट में दाखिल करें. अन्यथा अपने चेयरपर्सन को अगली सुनवाई के लिए कोर्ट के सामने मौजूद रहने के लिए कहें. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिल्ली सरकार और नगर निगमों को फटकार लगाते हुए कहा था कि ये वो लोग हैं, जिनकी वजह से आपके घर और सड़कें साफ रहती हैं.
उनकी वजह से ही अस्पताल चल रहे हैं. इनके प्रति आपलोगों का रवैया शर्मनाक है. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा था कि डॉक्टरों और फ्रंटलाईन वर्कर्स को भी अक्टूबर 2020 से सैलरी नहीं मिली है.
सैलरी पाना कर्मचारी का मूलभूत अधिकार है
पिछले 15 जनवरी को हाईकोर्ट ने कहा था कि जब ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को दर्द महसूस होगा तो सारे काम होने लगेंगे. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि सैलरी पाना एक कर्मचारी का मूलभूत अधिकार है, जिससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने नगर निगमों को अपने पार्षदों की सैलरी और क्लास वन और टू के अधिकारियों के वेतन के भुगतान में होने वाला खर्च के बारे में बताने का निर्देश दिया था.
पार्षद और अधिकारी भगवान की तरह रह रहे हैं
कोर्ट ने कहा था कि कोरोना काल में हेल्थ वर्कर्स, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मचारी फ्रंटलाईन कर्मचारी हैं. इनकी सैलरी देने की प्राथमिकता तय होनी चाहिए. हाईकोर्ट ने कहा था कि नगर निगमों में विवेकाधीन खर्चे और अधिकारियों को भत्ते और गैर-जरुरी खर्चों पर रोक लगा सकती है ताकि उनका उपयोग फ्रंटलाइन कर्मचारियों को वेतन देने में हो सके. कोर्ट ने कहा था कि पार्षद और अधिकारी भगवान की तरह रह रहे हैं.
कर्ज में कटौती नहीं की जा सकती है
कोर्ट ने कहा था कि धन की कमी का बहाना बनाकर सैलरी और पेंशन नहीं रोकी जा सकती है, क्योंकि सैलरी पाना एक कर्मचारी का मूलभूत अधिकार है.कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने नगर निगमों को दिए जाने वाले कर्ज में कटौती करने की बात की थी. कोर्ट ने कहा था कि कोरोना के संकट के दौरान रिजर्व बैंक ने भी लोन पर मोरेटोरियम की घोषणा की है, ऐसे में आप कर्ज में कटौती कैसे कर सकते हैं. इस पर दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील सत्यकाम ने इस पर सरकार से निर्देश लेने के लिए समय देने की मांग की.
सैलरी समय पर देने की मांग
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को यह भी बताने को निर्देश दिया था कि वो ये बताएं कि ट्रांसफर ड्यूटी और पार्किंग चार्ज के मद की राशि निगमों को जारी क्यों नहीं की गई. कोर्ट ने पूछा कि आप ये राशि नगर निगमों को कब देंगे.
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बता दें कि 5 नवंबर 2020 को उत्तरी दिल्ली नगर निगम के शिक्षकों, डॉक्टरों, रिटायर्ड इंजीनियर्स और सफाईकर्मियों की सैलरी देने के मामले पर सुनवाई करते हुए नाराजगी जताई थी.कोर्ट ने कहा था कि नगर निगम के कर्मचारियों को अपने परिवार की मूलभूत जरुरतों को पूरा करने के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है. पैसों की कमी सब जगह है, लेकिन इस वजह से इन लोगों को उनकी मूलभूत जरुरतों से वंचित नहीं रखा जा सकता है.