नई दिल्ली: रमजान का महीना खत्म होने के 65 से 70 दिनों बाद ईद-उल-अजहा यानि बकरीद मनाई जाती है. वहीं इस साल बकरीद गुरुवार 29 जून को मनाई जाएगी. यह दिन कुर्बानी का होता है. इस्लाम धर्म में इस दिन दी जाने वाली कुर्बानी को बलिदान का प्रतीक माना जाता है. इसे लेकर दिल्ली के जामा मस्जिद स्थित मीना बाजार के सामने बकरों का सबसे बड़ा बाजार सज चुका है. यहां दिल्ली समेत आस-पास के शहरों से व्यापारी और खरीददार दोनों पहुंच रहे हैं. बाजार में बकरों की कई नस्ल मौजूद हैं और हर नस्ल के बकरे की अपनी खासीयत है. इसी के हिसाब से मोल-भाव किया जाता है.
लंबे समय से बकरों का व्यापार करने वाले मोहम्मद एहसान कुरैशी ने ईटीवी भारत को बताया कि कुर्बानी के बकरों को पालने में काफी ध्यान दिया जाता है. उत्तर प्रदेश के कस्बे कांदला में वह बकरों का लालन-पालन करते हैं, जिसके बाद इन्हें यहां मंडी में लाकर बेचते हैं. इस बार उनके पास सबसे महंगा बकरा 2,50,000 रुपए का है.
कोविड के दौरान नहीं लगी थी मंडीः मीना बाजार में हर साल 10-15 दिन पहले से बकरों की मंडी लग जाती है. कोविड-19 महामारी के दौरान दो साल तक बकरों की मंडी नहीं लगी थी. जामा मस्जिद के सामने बकरा व्यापारियों के करीब 30 डेरे लगे हैं. यहां बकरों को गर्मी से बचाने के लिए पंखे भी लगे हैं. बकरों के लिए चारे और पानी का प्रबंध भी यहीं किया गया है. रात में बकरे और उनके मालिक और देखरेख करने वाले यहां ठहरते हैं. इस मंडी में अलवर, जोधपुर, जयपुर, बरेली, मुरादाबाद, मेरठ, रामपुर, पानीपत, सोनीपत और गुरुग्राम से बकरे आते हैं. साथ ही यहां सोजत, दुंबे, बागपत की नस्ल गंगापरी और हैदराबाद के बकरे भी हैं. जिन बकरों पर चांद-तारे या उर्दू में अल्लाह लिखा है, उसके दाम ज्यादा हैं. लोग दूर-दूर से ऐसे बकरों को देखने भी आ रहे हैं.
बकरों के विक्रेता नशरुद्दीन ने बताया कि उनके पास एक गुलाबी बकरा है, जिसके लंबे कान हैं. इसका मुंह दिखने तोते की तरह होता है. साथ ही इस बकरे के सींग भी नहीं है, जो इसकी बड़ी खासियत है. बहुत से लोग आकर बकरे की फोटो ले रहे हैं और फेसबुक-वाट्सऐप पर भेज रहे हैं. इस साल मंडी में बकरों की कई तरह की वैरायटी हैं, जिसमें भेड़े, दुंबे, मेड़े, तोता परी और देसी बच्चे हैं. इनमें से कई बकरों को अजमेर और अलवर से लाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि दूसरे राज्यों से इन बकरों को लाने में भी काफी खर्च आता है. बड़ी गाड़ी में एक बार में 50 बकरों को आराम से ला सकते हैं. इसके लिए एक बकरे का किराया 500 रुपए से 600 रुपए तक होता है.
कुर्बानी के लिए बकरा खरीदने आए दिल्ली निवासी मोहम्मद अमन माजिद ने बताया कि वह बचपन में अपने पिता के साथ यहां से बकरा खरीदने आते थे और आज वह अपने बच्चों के साथ यहां आए हैं. उन्होंने बताया कि उनके परिवार को अजमेर के बकरे काफी पसंद हैं, इसलिए वह हर साल इन्हीं को खरीदते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व है. लेकिन जो इतने महंगे बकरे नहीं खरीद सकते, उनको वह लोग बलि का बकरा देते हैं. बकरीद के दिन जिस बकरे की कुर्बानी दी जाती है उसे तीन भागों में बांटा जाता है. इसमें पहला हिस्सा अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है. वहीं दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है. इसके बाद तीसरा हिस्सा परिवार के लोगों को दिया जाता है. इसके अलावा नियम यह है कि ईद की नमाज के बाद ही बकरे को तीन हिस्सों में बांटा जाता है.
इस्लाम की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हजरत इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर थे. वह खुदा में पूरा विश्वास रखते थे. ऐसा कहा जाता है कि एक बार पैगंबर ने हजरत इब्राहिम से कहा कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें. पैगंबर की बात सुनकर उन्होंने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया. जैसे ही इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने वाले थे, तभी अल्लाह ने अपने दूत भेजकर उनके बेटे को एक बकरे में बदल दिया. तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाता है.
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