नई दिल्ली/गाजियाबाद : 52 वर्षीय तरुण नेहरा (professional runner tarun nehra) एक निजी कंपनी में काम करते हैं. उन्होंने दौड़ने का सफर 9 अगस्त 2013 से शुरू किया था. उन दिनों वह हाई ब्लड प्रेशर और डिप्रेशन में थे. उनका इलाज चल रहा था. अक्टूबर 2013 में तरुण ने 21 किलोमीटर की हाफ मैराथन में भाग लिया.
बीते नौ सालों में वह 200 से अधिक हाफ मैराथन दौड़ में भाग ले चुके हैं. 10 से अधिक फुल मैराथन और 50 किलोमीटर की दूरी वाली 8 मैराथन में भाग ले चुके हैं. तरुण साल भर में करीब ढाई हजार किलोमीटर दौड़ते हैं. वह बताते हैं कि जनवरी 2021 में 21 घंटे में उन्होंने 141 किलोमीटर की दौड़ को पूरा किया है.
उन्होंने बताया कि वह अपने पिता के काफी करीब थे. अचानक हार्ट अटैक के चलते 2012 में पिता का निधन हो गया. इसका गहरा सदमा (Shock of Father's Death) लगा. इसके बाद डिप्रेशन में चले गए. हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure Problem) की भी समस्या होने लगी.
आलम यह था कि किसी भी काम में मन नहीं लगता था. भूख नहीं लगती थी, किसी से मिलने जुलने और बात करने का मन नहीं करता था. कई बार मन में आत्महत्या के विचार भी उत्पन्न हुए. जिंदगी एक अजीब कशमकश में गुजर रही थी. घर परिवार की जिम्मेदारियां थी. इलाज चल रहा था. दवाई से कभी फायदा होता तो कई बार दवाई काम नहीं करती थी. कई बार तो रातों को नींद नहीं आती थी. बेचैनी के साथ रात बीतती थी. ऐसा भी हुआ कि 24 घंटे लगातार सो रहे हैं.
दौड़ ने दिलाई डिप्रेशन से राहत
नेहरा बताते हैं कि डिप्रेशन से लड़ने के लिए लगातार डॉक्टर एक्सरसाइ करने की सलाह दे रहे थे. ऐसे में फिर एक दिन रनिंग शुरू की. इंदिरापुरम स्थित स्वर्ण जयंती पार्क में पहली बार दो घंटे लगातार दौड़ लगाई. दौड़ लगाने के बाद का एहसास काफी अलग था. इसके बाद पूरी तरह से मन बना लिया कि डिप्रेशन को हराना है. रनिंग शुरू करने के बाद परिस्थितियां बेहतर होनी शुरू हुई.
धीरे-धीरे दवाइयां लेनी कम हुई और एक दिन ऐसा आया कि दवाइयां लेनी पूरी तरह से बंद कर दी. दौड़ से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा भरने लगी, जिससे डिप्रेशन खत्म होने लगा था. डिप्रेशन के दौर में आत्मविश्वास खत्म हो चुका था, जो दौड़ लगाने के बाद धीरे-धीरे वापस आने लगा. आत्मविश्वास कायम होने के बाद जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काफी कामियाबी मिली.
परिवार का मिला सहयोग
उन्होंने बताया कि जब उन्होंने दौड़ने की शुरुआत की तो परिवार से काफी सपोर्ट मिला. लेकिन जब धीरे-धीरे दौड़ की दूरी बढ़ने लगी तो परिवार वालों ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए.
परिवार वाले कहते थे कि इतना क्यों दौड़ते हो घुटने खराब हो जाएंगे. परिवार को समझाया. इसके बाद न सिर्फ परिवार बल्कि मित्रों से भी काफी सहयोग मिला शुरू हो गया. अब वह सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी करते हैं.
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इन प्रतियोगिताओं में हो चुके हैं शामिल
- बैकयार्ड अल्ट्रा 2021 (141 किलोटमीटर)
- बैकयार्ड अल्ट्रा 2020 (67 किलोमीटर)
- नैनीताल अल्ट्रा वारियर 2022- (50 किलोमीटर)
- मुक्तेश्वर अल्ट्रा वरियर रन- (50 किलोमीटर)
डॉक्टर का परामर्श जरूरी
मनोरोग चिकित्सक डॉ. एके विश्कर्मा के मुताबिक, इस दौड़ भाग भरी जिंदगी में हर व्यक्ति कभी ना कभी तनाव (Stress) से गुजरता है. तनाव जब हद से ज्यादा बढ़ने लगता है और नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो तनाव डिप्रेशन का रूप ले लेता है. अगर व्यक्ति लम्बे समय तक इन परिस्थितियों में रहता है तो यह उसके मानसिक ही नहीं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है.
डिप्रेशन को दूर करने में एक्सरसाइज कारगर साबित हो सकती है. नियमित व्यायाम करने या दौड़ लगाने से स्ट्रेस कम होता है. मेंटल हेल्थ बेहतर होती है. डिप्रेशन से ग्रसित होने पर डॉक्टर से परामर्श लेना बेहद जरूरी है.
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