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रोजाना 18 लोग बन रहे झपटमारों का निशाना, झपटमारी के लिए नहीं है सख्त कानून

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Published : Oct 12, 2019, 8:46 PM IST

दिल्ली के विभिन्न इलाकों में चोर और झपटमारों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है. पुलिस के आंकड़ों की बात करें इसके मुताबिक रोजाना 18 लोग झपटमार का निशाना बन रहे हैं.

झपटमारी के लिए कानून

नई दिल्ली: सिविल लाइन्स इलाके में शनिवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी से झपटमारी हुई. स्कूटी सवार बदमाश उनका पर्स झपटकर ले गए. आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली की सड़कों पर रोजाना 18 लोगों से झपटमारी की वारदात हो रही है. वास्तव में ये आंकड़ा कहीं ज्यादा है, लेकिन कहीं मामला दर्ज नहीं होता तो कहीं इसे चोरी में दर्ज किया जाता है. आलम ये है कि सड़क पर आम लोगों का चलना मुश्किल हो गया है क्योंकि वो कभी भी झपटमारों का निशाना बन सकते हैं.

झपटमारी के लिए नहीं है सख्त कानून

रोजाना 18 लोग झपटमार का निशाना बन रहे
जानकारी के मुताबिक दिल्ली के विभिन्न इलाकों में चोर और झपटमारों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है. दिल्ली पुलिस के आंकड़े भले ही झपटमारी के कम होने का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई इससे पूरी तरह अलग है. सड़क पर पैदल चल रहे लोगों और ऑटो में सफर करने वाले लोगों से झपटमारी की वारदातें लगातार बढ़ रही हैं. पुलिस के आंकड़ों की बात करें तो जहां साल 2018 में 30 सितंबर तक झपटमारी की 5034 एफआईआर दर्ज हुई थी, वहीं इस साल ये संख्या 4762 है. इस आंकड़े के मुताबिक रोजाना 18 लोग झपटमार का निशाना बन रहे हैं.

झपटमारों ने उड़ाई पुलिस की नींद
राजधानी में झपटमारों के आतंक से ना केवल आम लोग बल्कि पुलिस भी परेशान हैं. दिल्ली में ताबड़तोड़ झपटमारी की वारदातों को अंजाम देकर बदमाशों ने पुलिस की नींद उड़ा रखी है. इन वारदातों के आतंक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में आतंकवाद से निपटने वाली स्पेशल सेल आजकल झपटमारों से दो-दो हाथ कर रही है.

बीते एक महिने में आधा दर्जन से ज्यादा जगहों पर झपटमारों के साथ स्पेशल सेल मुठभेड़ कर चुकी है, लेकिन इसका कोई असर झपटमारों पर नहीं दिख रहा है. वो लगातार वारदात कर दिल्ली की जनता और पुलिस को परेशान कर रहे हैं.

युवा झपटमार पुलिस के लिए बड़ी चुनौती
पहले जहां केवल कुख्यात बदमाश ही झपटमारी की वारदातों को अंजाम देते थे तो वहीं अब नए-नए बच्चे झपटमारी में हाथ आजमा रहे हैं. झपटमारी में पकड़े जा रहे 80 फीसदी से ज्यादा आरोपी पहली बार अपराध कर रहे हैं. बड़ी संख्या में नाबालिग भी झपटमारी कर रहे हैं. उनके लिए किसी का भी मोबाइल या पर्स झपटना बेहद आसान होता है.

झपटमारी के लिए नहीं सख्त कानून
दिल्ली में झपटमारी के लिए कोई सख्त कानून नहीं है. पुलिस अगर किसी झपटमार को पकड़ती भी है तो वो 10 से 15 दिनों में जमानत पर छूटकर आ जाते हैं. इसके बाद वो एक बार फिर झपटमारी में लग जाते हैं. उन्हें इस बात का अच्छे से पता होता है कि अगर वो झपटमारी करते हुए पकड़े भी गये, तो कुछ ही दिनों में छूटकर बाहर आ जाएंगे. इसलिए उनमें वारदात के दौरान किसी प्रकार का कोई डर नहीं होता.

वारदातों के सेक्शन में हेरफेर का आरोप
इस साल पुलिस के आंकड़ों में झपटमारी के मामलों में कुछ कमी अवश्य आई है, लेकिन इसका कारण एफआईआर के सेक्शन में हेरफेर है. दरअसल पुलिस पर आरोप लगते हैं कि वो झपटमारी की वारदातों को चोरी में दर्ज कर देती है. यही वजह है कि झपटमारी के मामले घट रहे हैं, लेकिन चोरी के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है.

नई दिल्ली: सिविल लाइन्स इलाके में शनिवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी से झपटमारी हुई. स्कूटी सवार बदमाश उनका पर्स झपटकर ले गए. आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली की सड़कों पर रोजाना 18 लोगों से झपटमारी की वारदात हो रही है. वास्तव में ये आंकड़ा कहीं ज्यादा है, लेकिन कहीं मामला दर्ज नहीं होता तो कहीं इसे चोरी में दर्ज किया जाता है. आलम ये है कि सड़क पर आम लोगों का चलना मुश्किल हो गया है क्योंकि वो कभी भी झपटमारों का निशाना बन सकते हैं.

झपटमारी के लिए नहीं है सख्त कानून

रोजाना 18 लोग झपटमार का निशाना बन रहे
जानकारी के मुताबिक दिल्ली के विभिन्न इलाकों में चोर और झपटमारों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है. दिल्ली पुलिस के आंकड़े भले ही झपटमारी के कम होने का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई इससे पूरी तरह अलग है. सड़क पर पैदल चल रहे लोगों और ऑटो में सफर करने वाले लोगों से झपटमारी की वारदातें लगातार बढ़ रही हैं. पुलिस के आंकड़ों की बात करें तो जहां साल 2018 में 30 सितंबर तक झपटमारी की 5034 एफआईआर दर्ज हुई थी, वहीं इस साल ये संख्या 4762 है. इस आंकड़े के मुताबिक रोजाना 18 लोग झपटमार का निशाना बन रहे हैं.

झपटमारों ने उड़ाई पुलिस की नींद
राजधानी में झपटमारों के आतंक से ना केवल आम लोग बल्कि पुलिस भी परेशान हैं. दिल्ली में ताबड़तोड़ झपटमारी की वारदातों को अंजाम देकर बदमाशों ने पुलिस की नींद उड़ा रखी है. इन वारदातों के आतंक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में आतंकवाद से निपटने वाली स्पेशल सेल आजकल झपटमारों से दो-दो हाथ कर रही है.

बीते एक महिने में आधा दर्जन से ज्यादा जगहों पर झपटमारों के साथ स्पेशल सेल मुठभेड़ कर चुकी है, लेकिन इसका कोई असर झपटमारों पर नहीं दिख रहा है. वो लगातार वारदात कर दिल्ली की जनता और पुलिस को परेशान कर रहे हैं.

युवा झपटमार पुलिस के लिए बड़ी चुनौती
पहले जहां केवल कुख्यात बदमाश ही झपटमारी की वारदातों को अंजाम देते थे तो वहीं अब नए-नए बच्चे झपटमारी में हाथ आजमा रहे हैं. झपटमारी में पकड़े जा रहे 80 फीसदी से ज्यादा आरोपी पहली बार अपराध कर रहे हैं. बड़ी संख्या में नाबालिग भी झपटमारी कर रहे हैं. उनके लिए किसी का भी मोबाइल या पर्स झपटना बेहद आसान होता है.

झपटमारी के लिए नहीं सख्त कानून
दिल्ली में झपटमारी के लिए कोई सख्त कानून नहीं है. पुलिस अगर किसी झपटमार को पकड़ती भी है तो वो 10 से 15 दिनों में जमानत पर छूटकर आ जाते हैं. इसके बाद वो एक बार फिर झपटमारी में लग जाते हैं. उन्हें इस बात का अच्छे से पता होता है कि अगर वो झपटमारी करते हुए पकड़े भी गये, तो कुछ ही दिनों में छूटकर बाहर आ जाएंगे. इसलिए उनमें वारदात के दौरान किसी प्रकार का कोई डर नहीं होता.

वारदातों के सेक्शन में हेरफेर का आरोप
इस साल पुलिस के आंकड़ों में झपटमारी के मामलों में कुछ कमी अवश्य आई है, लेकिन इसका कारण एफआईआर के सेक्शन में हेरफेर है. दरअसल पुलिस पर आरोप लगते हैं कि वो झपटमारी की वारदातों को चोरी में दर्ज कर देती है. यही वजह है कि झपटमारी के मामले घट रहे हैं, लेकिन चोरी के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है.

Intro:नई दिल्ली
सिविल लाइन्स इलाके में शनिवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी से झपटमारी हुई. स्कूटी सवार बदमाश उनका पर्स झपटकर ले गए. आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली की सड़कों पर रोजाना 18 लोगों से झपटमारी की वारदात हो रही है. वास्तव में यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है, लेकिन कहीं मामला दर्ज नहीं होता तो कहीं इसे चोरी में दर्ज किया जाता है. आलम यह है कि सड़क पर आम लोगों का चलना मुश्किल हो गया है क्योंकि वह कभी भी झपटमारों का निशाना बन सकते हैं.


Body:जानकारी के अनुसार दिल्ली के विभिन्न इलाकों में चोर एवं झपटमारों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है. दिल्ली पुलिस के आंकड़े भले ही झपटमारी के कम होने का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई इससे पूरी तरह अलग है. सड़क पर पैदल चल रहे लोगों एवं ऑटो में सफर करने वाले लोगों से झपटमारी की वारदातें लगातार बढ़ रही हैं. पुलिस के आंकड़ों की बात करें तो जहां वर्ष 2018 में 30 सितंबर तक झपटमारी की 5034 एफआईआर दर्ज हुई थी, वहीं इस वर्ष यह संख्या 4762 है. इस आंकड़े के अनुसार रोजाना 18 लोग झपटमार का निशाना बन रहे हैं.


झपटमारों ने उड़ाई पुलिस की नींद
राजधानी में झपटमारों के आतंक से न केवल आम लोग बल्कि पुलिस भी परेशान हैं. दिल्ली में ताबड़तोड़ झपटमारी की वारदातों को अंजाम देकर बदमाशों ने पुलिस की नींद उड़ा रखी है. इन वारदातों के आतंक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में आतंकवाद से निपटने वाली स्पेशल सेल आजकल झपटमारों से दो-दो हाथ कर रही है. बीते एक माह में आधा दर्जन से ज्यादा जगहों पर झपटमारों के साथ स्पेशल सेल मुठभेड़ कर चुकी है, लेकिन इसका कोई असर झपटमारों पर नहीं दिख रहा है. वह लगातार वारदात कर दिल्ली की जनता एवं पुलिस को परेशान कर रहे हैं.



युवा झपटमार पुलिस के लिए बड़ी चुनौती
पहले जहां केवल कुख्यात बदमाश ही झपटमारी की वारदातों को अंजाम देते थे तो वहीं अब नए-नए बच्चे झपटमारी में हाथ आजमा रहे हैं. झपटमारी में पकड़े जा रहे 80 फीसदी से ज्यादा आरोपी पहली बार अपराध कर रहे हैं. बड़ी संख्या में नाबालिग भी झपटमारी कर रहे हैं. उनके लिए किसी का भी मोबाइल या पर्स झपटना बेहद आसान होता है.


झपटमारी के लिए नहीं सख्त कानून
दिल्ली में झपटमारी के लिए कोई सख्त कानून नहीं है. पुलिस अगर किसी झपटमार को पकड़ती भी है तो वह 10 से 15 दिनों में जमानत पर छूटकर आ जाते हैं. इसके बाद वह एक बार फिर झपटमारी में लग जाते हैं. उन्हें इस बात का अच्छे से पता होता है कि अगर वह झपटमारी करते हुए पकड़े भी गये तो कुछ ही दिनों में छूटकर बाहर आ जाएंगे. इसलिए उनमें वारदात के दौरान किसी प्रकार का कोई डर नहीं होता.










Conclusion:वारदातों के सेक्शन में हेरफेर
इस वर्ष पुलिस के आंकड़ों में झपटमारी के मामलों में कुछ कमी अवश्य आई है, लेकिन इसका कारण एफआईआर के सेक्शन में हेरफेर है. दरअसल पुलिस पर आरोप लगते हैं कि वह झपटमारी की वारदातों को चोरी में दर्ज कर देती है. यही वजह है कि झपटमारी के मामले घट रहे हैं, लेकिन चोरी के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है.
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