नई दिल्लीः दिल्ली एम्स में चौथे चरण के कैंसर के मरीजों के इलाज के लिए कारगर थेरानोस्टिक्स तकनीक से दी जाने वाली अल्फा थेरेपी के लिए मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. जानकारी के अनुसार, एम्स को इस थेरेपी के लिए जर्मनी से मिलने वाली दवाई की आपूर्ति बहुत कम हो गई है. एम्स में न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि अल्फा थेरेपी के लिए जर्मनी से ऑक्टेनियम और ल्यूटेटियम-177 का आयात करना पड़ता है. ये दोनों रेडियोएक्टिव पदार्थ थोरियम से निकते हैं. इनसे ही रेडियोन्यूक्लाइड नाम की दवाई तैयार होती है.
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दरअसल, जर्मनी थोरियम के लिए रूस पर निर्भर है. लेकिन, यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से जर्मनी को भी थोरियम की आपूर्ति नहीं हो पा रही है. इससे एम्स में अल्फा थेरेपी के मरीजों की वेटिंग बढ़ रही है. डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि पहले एक महीने में जर्मनी से 30 से 35 मरीजों के लिए दवाई मिल जाती थी. लेकिन, अब एक महीने में सिर्फ दो से तीन मरीजों के लिए ही मिल पा रही है.
उन्होंने यह भी बताया कि अभी एम्स में अल्फा थेरेपी के लिए 100 मरीज वेटिंग में हैं. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि प्रधानमंत्री कार्यालय को इस दवाई का भारत में उत्पादन शुरू कराने के लिए तीन वैज्ञानिकों की एक समिति बनाकर काम शुरू कराने का सुझाव भेजा है. इसके साथ ही दवाई के आयात पर लग रहे 18 प्रतिशत जीएसटी को खत्म करने और दवाई के लिए जर्मनी व रूस से सीधे कोई एमओयू करने के सुझाव देते हुए तीन विकल्प बताए हैं.
चंद्रशेखर बाल ने कहा कि ऑक्टेनियम और ल्यूटेटियम-177 एक लाइफ सेविंग दवाई है, इसलिए सरकार को इस पर लगने वाला जीएसटी खत्म करना चाहिए. इससे मरीजों को दवाई की पांच लाख 20 हजार की एक डोज जीएसटी हटने से करीब एक लाख रुपये सस्ती हो जाएगी. ये भी मरीजों के लिए एक बड़ी राहत होगी.
उन्होंने बताय कि पहली बार जब पांच साल पहले एक मरीज को जर्मनी से यह दवाई मंगाने के लिए कहा था तो उस मरीज ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर कहा था कि ये दवाई जर्मनी से क्यों मंगानी पड़ रही है, अपने देश में इसकी व्यवस्था क्यों नहीं होती है. लेकिन, अगले साल ही 2019 में लोकसभा चुनाव आने से सरकार की ओर से इस पर कुछ काम नहीं हुआ. लेकिन, अब दवाई की किल्लत होने से हमने फिर सरकार से मदद करने के लिए कहा है.
मरीज को 6-8 सप्ताह के अंतर से दी जाती हैं सभी डोज: चंद्रशेखर बाल ने बताया कि अल्फा थेरेपी की एक मरीज को चार डोज देनी होती है. इनमें छह से आठ सप्ताह का अंतर रखा जाता है. चार डोज पूरी होने के बाद चौथे चरण के कैंसर से जूझ रहे मरीज के कैंसर को चार-पांच साल तक नियंत्रित करने में मदद मिल जाती है. वैसे चौथे चरण के कैंसर के मरीज का समय छह महीने से एक साल तक ही माना जाता है. इस थेरेपी से समय बढ़ जाता है.
इस थेरेपी से मुख्यतः प्रोस्टेट, स्तन, न्यूरोएंडोक्राइन, थायराइड और पैंक्रियाज के कैंसर को नियंत्रित करने में मदद मिली है. थेरानोस्टिक्स एक टारगेट थेरेपी है, जिसमें सिर्फ कैंसर सेल्स को बायोमोलेक्यूल से सीधे खत्म किया जाता है.