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पीजीडीएवी कॉलेज में हिंदी विभाग द्वारा संगोष्ठी आयोजन - दिल्ली विश्वविद्यालय

डीयू से संबद्ध पीजीडीएवी कॉलेज मॉर्निंग के हिंदी विभाग में 'हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर के' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. यह आयोजन हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वाधान में किया गया.

संगोष्ठी आयोजन
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Published : Oct 30, 2021, 9:58 AM IST

नई दिल्लीः देश में आजादी के 75वें वर्षगांठ को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. इस कड़ी में दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध पीजीडीएवी कॉलेज मॉर्निंग के हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वाधान में 'हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर के' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

पीजीडीएवी कॉलेज मॉर्निंग के प्रोफेसर अवनिजेश अवस्थी ने कहा कि हिंदी साहित्य में स्वतंत्र चेतना का प्रथम चरण भक्ति काल था और भारतीयता और राष्ट्रीयता की चेतना इसी काल में अप्रत्यक्ष रूप से उठी थी. इस दौरान मुख्य वक्ता प्रोफेसर अनिल राय ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना के स्वर हिंदी साहित्य के न केवल किसी विशेष काल में हैं बल्कि हर साहित्य में मौजूद है. उन्होंने अनेकों साहित्यिक रचनाओं और लेखकों जिनमें भारतेंदू हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि के संदर्भ में बात रखी. इसके अलावा हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने हिंदुस्तानई अकादमी के बारे में बताया. उन्होंने राष्ट्रीय चेतना के स्वरों को मैथिलीशरण गुप्त की भारत भारती और तुलसीदास के मानस के उदाहरण से व्यक्त किया.वहीं कार्यक्रम में हिंदुस्तानी अकादमी की ओर से प्रकाशित पत्रिका का भी विमोचन किया गया.


ये भी पढ़ें-वीर सावरकर और सुषमा स्वराज के नाम पर होंगे DU के नए कॉलेज !

नई दिल्लीः देश में आजादी के 75वें वर्षगांठ को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. इस कड़ी में दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध पीजीडीएवी कॉलेज मॉर्निंग के हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वाधान में 'हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर के' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

पीजीडीएवी कॉलेज मॉर्निंग के प्रोफेसर अवनिजेश अवस्थी ने कहा कि हिंदी साहित्य में स्वतंत्र चेतना का प्रथम चरण भक्ति काल था और भारतीयता और राष्ट्रीयता की चेतना इसी काल में अप्रत्यक्ष रूप से उठी थी. इस दौरान मुख्य वक्ता प्रोफेसर अनिल राय ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना के स्वर हिंदी साहित्य के न केवल किसी विशेष काल में हैं बल्कि हर साहित्य में मौजूद है. उन्होंने अनेकों साहित्यिक रचनाओं और लेखकों जिनमें भारतेंदू हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि के संदर्भ में बात रखी. इसके अलावा हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने हिंदुस्तानई अकादमी के बारे में बताया. उन्होंने राष्ट्रीय चेतना के स्वरों को मैथिलीशरण गुप्त की भारत भारती और तुलसीदास के मानस के उदाहरण से व्यक्त किया.वहीं कार्यक्रम में हिंदुस्तानी अकादमी की ओर से प्रकाशित पत्रिका का भी विमोचन किया गया.


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