नई दिल्ली: भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग लंबे समय से होती रही है. इसे लेकर समय-समय पर आंदोलन भी होते रहे हैं. इसी क्रम में दिल्ली के जंतर-मंतर पर भोजपुरी जन जागरण अभियान के बैनर तले रविवार को सैकड़ों लोग जुटे.
नारे लिखी तख्तियां लेकर किया प्रदर्शन
भोजपुरी के संवैधानिक दर्जे की मांग के समर्थन में नारे लिखी तख्तियां हाथों में लिए सैकड़ों लोगों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर आवाज उठाई. इनमें युवाओं, महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे. कई लोग बिहार से चलकर इस प्रदर्शन में शामिल होने दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचे थे.
भोजपुरी जनजागरण अभियान के अध्यक्ष संतोष पटेल ने ईटीवी भारत से बातचीत में इस मांग को लेकर कहा कि वे लोग लंबे समय से भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए आंदोलन और प्रदर्शन करते रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों को मांग पूरी होने की आस
इस प्रदर्शन में शामिल एक दूसरे सज्जन ने बताया कि वे लोग 2010 से ही जंतर मंतर पर इस मांग को लेकर एकत्रित होते रहे हैं. क्या संसद द्वारा इनकी बात सुनी गई, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि संसद से अभी जो आवाजें उठ रही है, वह यह दर्शाती हैं कि हमारी मांग वहां तक पहुंची है.
यहां कई महिलाएं भी इस मांग के समर्थन में जुटी थीं. उन्हीं में से एक वीणा वादिनी ने इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जल्दी भोजपुरी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो जाएगी.
एक अन्य सज्जन ने इस मुद्दे पर कुछ इस तरह अपनी पीड़ा जाहिर की. उन्होंने कहा कि संथाली, संस्कृत और अन्य भाषाएं जो भोजपुरिया लोगों से कम आबादी वाले लोगों की भाषा है. उन्हें भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जा चुका है. लेकिन भोजपुरी के साथ ऐसी नाइंसाफी क्यों.
संसद में भी उठी आवाज
गौरतलब है कि गोरखपुर के सांसद रवि किशन और सारण से सांसद राजीव प्रताप रूडी ने संसद में इसे लेकर अफसोस जाहिर किया था कि वे अपनी मातृभाषा भोजपुरी में शपथ नहीं ले पा रहे हैं. उसके बाद हाल ही में दोनों सांसद संयुक्त रूप से भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने संबंधित एक प्राइवेट मेंबरशिप बिल भी संसद में लाए.
एक तरफ भोजपुरी भाषी क्षेत्र से सांसद चुने गए लोग संसद में भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने को लेकर आवाज उठा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सड़क पर भी लोग इसे लेकर मांग कर रहे हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि इनकी मांग कब तक संसद तक पहुंच पाती है और भोजपुरी आखिरकार कब तक आठवीं अनुसूची में शामिल हो पाती है.