नई दिल्ली: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 और 25 फरवरी को हुई हिंसा की चिंगारी 22 फरवरी से ही सुलग रही थी. पुलिस लगातार इसे शांत कराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वो नाकाम रही. 23 फरवरी को पथराव हुआ और 24-25 को ये हिंसा जानलेवा होती चली गई. हिंसा को लेकर पुलिस की ओर से तैयार की जा रही रिपोर्ट में ये जानकारी सामने आई है.
23 फरवरी की सुबह प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़कर लगभग 3000 हो चुकी थी. पिंजरा तोड़ संगठन के सदस्य इन्हें सपोर्ट कर रहे थे. उसी दौरान हिंदूवादी संगठन के प्रदर्शनकारी भी वहां पर पहुंच गए. उन्होंने कहा कि वो पूरे मौजपुर इलाके को जाम कर देंगे. पुलिस ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वो आमने सामने आ चुके थे. उनका कहना था कि शाहीन बाग में अगर प्रदर्शन किया जाएगा, तो यहां पर भी प्रदर्शन चलेगा. यहां से जाफराबाद में प्रोटेस्ट कर रहे लोगों को हटाया जाए. शाम के समय यहां पर पथराव हुआ. लेकिन पुलिस ने मामला शांत करा लिया. शाम के समय चांद बाग इलाके में कुछ घटनाओं को लेकर कॉल मिली पुलिस मौके पर पहुंची और हालात काबू कर लिए.
24 फरवरी को बिगड़े हालात
24 फरवरी के लिए पुलिस की तरफ से कड़े इंतजाम किए गए थे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने पर भी पूर्वी रेंज के पुलिस कर्मियों को वहां ड्यूटी पर नहीं भेजा गया था. इलाके में उचित संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था. 24 जनवरी की सुबह 9 बजे डीसीपी शाहदरा अमित शर्मा इलाके में तीन कंपनी के साथ पहुंचे. 10 बजे उनके और एसीपी के ऊपर हमला किया गया. वहीं हवलदार रतनलाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई. वहां पर मौजूद कंपनी पर पथराव होने लगा. जिसकी वजह से उन्हें पीछे हटना पड़ा. यहां पर दंगा हो चुका था.
हिंसा वाली जगह पर नहीं पहुंच पा रही थी फोर्स
पुलिस के लिए अब बड़ा चैलेंज चांद बाग इलाके में पुलिस फोर्स को भेजना था. ईस्टर्न रेंज के संयुक्त आयुक्त को मौके पर भेजा गया, लेकिन अफवाहों के बीच 20 से ज्यादा जगह पर लोगों ने रोड ब्लॉक कर रखी थी. डीसीपी पूर्वी जिला जसमीत सिंह मौजपुर में फंस गए. क्राइम ब्रांच के डीसीपी जॉय टिर्की और संयुक्त आयुक्त मनीष अग्रवाल को बुलाया गया. वो किसी तरह चांद बाग इलाके में पहुंचे. शाम 4 बजे वजीराबाद और 66 फुटा रोड पर पुलिस पहुंच चुकी थी. इस समय तक 93 लोगों को गोलियां लग चुकी थी.
दोनों तरफ से चलाई गई गोलियां
पुलिस के मुताबिक दोनों समुदायों की तरफ से जमकर गोलियां चलाई जा रही थी. दोनों ही पक्ष पुलिस पर लगातार हमले कर रहे थे. पुलिस कई जगहों पर दोनों समुदाय के बीच में फंसी हुई थी. इसकी वजह से उन्हें दोनों तरफ गोली चलानी पड़ रही थी. लेकिन इसके बावजूद 24 से 25 फरवरी तक हिंसा बढ़ती चली गई. जिस पर 26 फरवरी को पूरी तरह से काबू पा लिया गया, लेकिन तब तक 46 लोग अपनी जान गंवा चुके थे.