नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर पूर्वी दिल्ली के एक निजी आवास में पुलिसकर्मियों के कथित जबरन प्रवेश और सीसीटीवी कैमरे डीवीआर हटाने की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है. दिल्ली पुलिस के वकील ने स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा है. कोर्ट ने इस मामले को 9 मार्च 2023 के लिए सूचीबद्ध कर दिया है.
याचिकाकर्ता मोहम्मद युनुस खान की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता वजीह शफीक अदालत से कहा है कि सात अगस्त को मेंडू के पुराने गांव गढ़ी के बीट प्रभारी ने उस्मानपुर पुलिस स्टेशन के पुलिस कर्मचारियों के साथ जबरन खान के घर में प्रवेश किया और बिना कोई जब्ती मेमो दिए सीसीटीवी कैमरे से जुड़े डीवीआर को छीन लिया. इस संबंध में पुलिस को एक लिखित शिकायत की गई थी. खान ने आरोप लगाया कि मामले में उचित जांच नहीं की जा रही है. याचिकाकर्ता उसी पुलिस स्टेशन के अधिकारियों द्वारा मामले की निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं करता है.
याचिका में तर्क दिया गया है कि शिकायत उस्मानपुर पुलिस स्टेशन के अधिकारियों द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 201, 380 और 451 के तहत संज्ञेय अपराधों का खुलासा करती है. पुलिस से जवाब मांगते हुए, अदालत ने मामले को 9 मार्च, 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. याचिका में खान ने कहा है कि डीवीआर के जबरन प्रवेश को उनकी बेटी और उनके मोबाइल फोन में रिकॉर्ड किया गया था, जिसे पुलिस ने छीन लिया था और "मोबाइल उपकरणों में सेव किये गए डेटा को हटाने के बाद वापस कर दिया गया था.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि उस्मान पुरी थाने से जुड़े पुराने गांव गढ़ी मेंडू के बीट प्रभारी ने याचिकाकर्ता के पड़ोस की मस्जिद के बोर्ड को हटाने और 75 वर्षीय मस्ज़िद मोअज्जिन को धमकाने और पिटाई करने की अवैध पुलिस कार्रवाई के सबूतों को नष्ट करने के लिए ऐसा किया है. घटना याचिकाकर्ता के घर में लगे सीसीटीवी कैमरे द्वारा रिकॉर्ड की गई है."
याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता को सीसीटीएनएस से एक एसएमएस मिला कि इस मामले में एक सब इंस्पेक्टर को एक जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है. याचिका में कहा गया है कि पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों के दौरान भीड़ द्वारा मस्जिद और आसपास के 22 घरों को जला दिया गया था, जिसमें कहा गया है कि फरवरी 2020 की हिंसा के बाद खान द्वारा अपने घर की बाहरी दीवारों पर सीसीटीवी कैमरा लगाया गया था.
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