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डीयू के कुलपति की नियुक्ति के खिलाफ जनहित याचिका दिल्ली हाई कोर्ट ने की खारिज

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में प्रोफेसर योगेश सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है. याचिका खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि अखबार की खबरें भगवद गीता नहीं हैं.

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कुलपति की नियुक्ति के खिलाफ जनहित याचिका
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Published : May 31, 2023, 9:56 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में प्रोफेसर योगेश सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया है. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह याचिका समाचार पत्रों की रिपोर्टों के आधार पर दायर की गई थी. याचिका खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि अखबार की खबरें भगवद गीता नहीं हैं.

कोर्ट ने आगे कहा कि याचिका में कई लापरवाह आरोप लगाए गए हैं और क्योंकि भारत के राष्ट्रपति इस मामले में शामिल थे, याचिकाकर्ता को इसके परिणाम भुगतने होंगे. हम आपको यह याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं देंगे. आपने अपनी याचिका में समाचार पत्रों की कतरनों के आधार पर जिस तरह का लापरवाह आरोप लगाया है आपको इसका सामना करना होगा. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने यह टिप्पणी की.

याचिका फोरम ऑफ इंडियन लेजिस्ट नामक एक संगठन ने दायर की थी. जिसमें कहा गया था कि सिंह को वीसी पद पर नियमों का उल्लंघन करते हुए नियुक्त किया गया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने एक समाचार रिपोर्ट का हवाला दिया. जिसमें कहा गया था कि केवल सिंह का नाम डीयू के विजिटर (भारत के राष्ट्रपति) को विचार के लिए भेजा गया था. सुबह मामले की पहली सुनवाई हुई. बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से राष्ट्रपति को भेजे गए नामों के पैनल के बारे में पूछा. मेहता ने कहा कि सरकार लंच तक इस पर हलफनामा दाखिल करेगी. दोपहर के भोजन के बाद के सत्र में जब मामला सुनवाई के लिए आया तो मेहता ने अदालत को बताया कि एक हलफनामा दायर किया गया है और इससे पता चलता है कि राष्ट्रपति को पांच नाम भेजे गए थे.

ये भी पढ़ें : पांच जून को क्या करने वाले हैं सांसद बृजभूषण, जानें पहलवानों से मोर्चा लेने की क्या है रणनीति

मेहता ने यह भी तर्क दिया कि सिंह की नियुक्ति के लगभग दो साल बाद याचिकाकर्ता अदालत में आया है. जैसा कि याचिकाकर्ता के वकील ने फिर से समाचार रिपोर्ट का उल्लेख किया, खंडपीठ ने टिप्पणी की कि समाचार रिपोर्ट भगवद् गीता नहीं हैं और सरकार द्वारा दायर हलफनामे में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि पांच नाम राष्ट्रपति को भेजे गए थे. इसके बाद अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने की गुहार लगाई. हालांकि, बेंच ने कहा कि वह याचिका वापस लेने और लगाए गए खर्च को वापस देने की इजाजत नहीं देगी.

ये भी पढ़ें : कोर्ट ने गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा, अवैध हथियारों की सप्लाई से जुड़ा है मामला

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में प्रोफेसर योगेश सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया है. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह याचिका समाचार पत्रों की रिपोर्टों के आधार पर दायर की गई थी. याचिका खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि अखबार की खबरें भगवद गीता नहीं हैं.

कोर्ट ने आगे कहा कि याचिका में कई लापरवाह आरोप लगाए गए हैं और क्योंकि भारत के राष्ट्रपति इस मामले में शामिल थे, याचिकाकर्ता को इसके परिणाम भुगतने होंगे. हम आपको यह याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं देंगे. आपने अपनी याचिका में समाचार पत्रों की कतरनों के आधार पर जिस तरह का लापरवाह आरोप लगाया है आपको इसका सामना करना होगा. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने यह टिप्पणी की.

याचिका फोरम ऑफ इंडियन लेजिस्ट नामक एक संगठन ने दायर की थी. जिसमें कहा गया था कि सिंह को वीसी पद पर नियमों का उल्लंघन करते हुए नियुक्त किया गया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने एक समाचार रिपोर्ट का हवाला दिया. जिसमें कहा गया था कि केवल सिंह का नाम डीयू के विजिटर (भारत के राष्ट्रपति) को विचार के लिए भेजा गया था. सुबह मामले की पहली सुनवाई हुई. बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से राष्ट्रपति को भेजे गए नामों के पैनल के बारे में पूछा. मेहता ने कहा कि सरकार लंच तक इस पर हलफनामा दाखिल करेगी. दोपहर के भोजन के बाद के सत्र में जब मामला सुनवाई के लिए आया तो मेहता ने अदालत को बताया कि एक हलफनामा दायर किया गया है और इससे पता चलता है कि राष्ट्रपति को पांच नाम भेजे गए थे.

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मेहता ने यह भी तर्क दिया कि सिंह की नियुक्ति के लगभग दो साल बाद याचिकाकर्ता अदालत में आया है. जैसा कि याचिकाकर्ता के वकील ने फिर से समाचार रिपोर्ट का उल्लेख किया, खंडपीठ ने टिप्पणी की कि समाचार रिपोर्ट भगवद् गीता नहीं हैं और सरकार द्वारा दायर हलफनामे में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि पांच नाम राष्ट्रपति को भेजे गए थे. इसके बाद अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने की गुहार लगाई. हालांकि, बेंच ने कहा कि वह याचिका वापस लेने और लगाए गए खर्च को वापस देने की इजाजत नहीं देगी.

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