नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने जिंदगी और मौत से जूझ रहे पिता को बचाने के लिए नाबालिग बेटी को अंगदान करने की इजाजत नहीं दी. कोर्ट ने पाया कि नाबालिग लड़की अंशिता के अंगदान करने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
जस्टिस संजीव सचदेवा ने मैक्स अस्पताल साकेत के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए ये आदेश दिया. मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अगर नाबालिग लड़की अपना लिवर अपने पिता को देती है तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ सकता है.
लिवर ट्रांसप्लांट का प्रबंधन करने का निर्देश
कोर्ट ने नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन को अंशिता के पिता के स्वास्थ्य का आकलन प्राथमिकता के आधार पर करने का निर्देश दिया. साथ ही ऑर्गेनाइजेशन को जल्द से जल्द लिवर ट्रांसप्लांट का प्रबंधन करने का निर्देश दिया गया है.
कोर्ट ने ऑर्गेनाइजेशन से कहा कि अगर किसी मृत व्यक्ति का लिवर मिलता है तो उसे प्राथमिकता के आधार पर ट्रांसप्लांट किया जाए. कोर्ट ने अंशिता को उसके पिता के इलाज से जुड़े सभी दस्तावेज ऑर्गेनाइजेशन को भेजने का निर्देश दिया.
मेडिकल बोर्ड गठित करने का था निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने साकेत के मैक्स अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित कर ये जांच करने का निर्देश दिया था कि अंशिता के अंगदान से उसे कोई संभावित खतरा तो नहीं है. उसके बाद मैक्स अस्पताल ने अपनी रिपोर्ट दी कि अगर अंशिता का लिवर दान किया जाता है तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ने की संभावना है.
नाबालिगों के अंगदान पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं
2 अप्रैल को हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिगों के अंगदान करने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है. जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा था कि असाधारण परिस्थितियों में और अनुमति के मुताबिक ऐसे दान की अनुमति है.
पीएसआरआई अस्पताल में चल रहा है इलाज
याचिका अंशिता बंसल ने दायर की थी. अंशिता के पिता पीएसआरआई अस्पताल में भर्ती हैं. उनका लिवर फेल हो चुका है. अंशिता के पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर नृपेण सैकिया ने कहा कि उसके पिता का तुरंत लिवर ट्रांसप्लांट करने की जरुरत है.
उसके बाद अंशिता की मां ने 23 मार्च को स्वास्थ्य सचिव से मिलकर अंशिता के लीवर का हिस्सा डोनेट करने के लिए अनुमति देने की मांग की, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिशूज एक्ट, 1994 के तहत वही अंगदान कर सकता है जो नाबालिग नहीं हो. असाधारण परिस्थितियों में नाबालिग को अंगदान करने की अनुमति है.
याचिका में कहा गया था-
अंशिता की उम्र 17 साल 10 महीने की है. वो बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है और मानसिक रूप से सक्षम है. वो स्वेच्छा से बिना किसी जोर-जबरदस्ती के अपना लिवर दान करने के लिए तैयार है.
लॉकडाउन की वजह से नहीं मिल रहे दानी
याचिका में कहा गया है कि कोरोना की महामारी की वजह से देश भर में लॉकडाउन है. इस वजह से कोई दूसरा दानी मिलना असंभव है और अंशिता के पिता को तत्काल सर्जरी की जरूरत है.