नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट नेटफ्लिक्स पर दिखाई जा रही फिल्म गुंजन सक्सेना-द कारगिल गर्ल को पहले खुद देखेगी और उसके बाद उसके बारे में कोई राय बनाएगी. कोर्ट ने फिल्म के निर्माता और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे इस मामले को बैठकर सुलझाएं. जस्टिस राजीव शकधर की बेंच ने एएसजी संजय जैन और धर्मा प्रोडक्शन के वकील हरीश साल्वे को इस मामले पर बैठक बात करने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी.
'स्क्रिप्ट को लेकर है आपत्ति, फिल्म को लेकर नहीं'
सुनवाई के दौरान संजय जैन ने कहा कि गुंजन सक्सेना ने अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है. धर्मा प्रोडक्शन की ओर से हरीश साल्वे ने कहा कि केंद्र सरकार ने जो आपत्ति जताई है वो केवल स्क्रिप्ट को लेकर है और फिल्म को लेकर कुछ नहीं है. केंद्र सरकार के लिए स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जा सकती है. संजय जैन ने कहा कि फिल्म में एयरफोर्स को स्त्री जाति से द्वेष करने वाला दिखाया गया है. गुंजन सक्सेना से अनुमति ली गई है, लेकिन एयरफोर्स से अनुमति नहीं ली गई.
फिल्म का संदेश लिंग भेद के खिलाफ
हरीश साल्वे ने कहा कि फिल्म का संदेश लिंग भेद के खिलाफ है. यह एयरफोर्स की खराब छवि पेश नहीं करता है. स्क्रिप्ट का कंटेंट और फिल्म के दृश्यों को एक कर नहीं देखा जा सकता है. तब संजय जैन ने कहा कि गुंजन सक्सेना को फिल्म के दृश्यों को लेकर आपत्ति जताने का मौका नहीं दिया गया. उन्हें कला की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे सीन दिखाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि गुंजन सक्सेना एयरफोर्स की अधिकारी थी जिन्होंने कारगिल वार में हिस्सा लिया था. फिल्म में जो डिस्क्लेमर दिखाया गया है वो एयरफोर्स की खराब छवि दिखाता है.
कोर्ट ने कहा कि ये फिल्म गुंजन सक्सेना की जिंदगी की हकीकत नहीं है, अन्यथा वे ऐसा नहीं दिखाते कि गुंजन सक्सेना एयफोर्स की पहली महिला अफसर थी. कला में जरूरी नहीं कि सारी हकीकत की चीजों को बयान किया जाए. तब संजय जैन ने कहा कि आम लोग सिनेमा में दिखाई गई चीजों और हकीकत में अंतर नहीं कर पाते हैं. हमें एयरफोर्स की खराब छवि पेश करने पर आपत्ति है. गुंजन सक्सेना का हलफनामा साफ-साफ बताता है कि उसने कभी भी पुरुष अधिकारियों के साथ पंजा लड़ाने का काम नहीं किया जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है. उन्होंने कहा कि कोर्ट को ये फिल्म देखना चाहिए.
'एयरफोर्स के नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती'
नेटफ्ल्किस की ओर से वकील नीरज किशन कौल और राजीव नय्यर ने कहा कि सिनेमा का डिस्क्लेमर केंद्र सरकार की चिंताओं को दूर कर देता है. तब संजय जैन ने कहा कि जो दृश्यों में दिखाए गए हैं वे डिस्क्लेमर से धुल नहीं सकते हैं. डिस्क्लेमर एक धोखा है, इससे एयरफोर्स को हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती है.
तब साल्वे ने कहा कि अंधेरे में तीर चलाया जा रहा है, कोर्ट को फिल्म देखना चाहिए. तब कोर्ट ने कहा कि कलाकारों का नजरिया अलग-अलग हो सकता है, आप उससे सहमत हो सकते हैं नहीं भी हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका में भी लिंग भेद की बात होती है. उससे जज सहमत हो सकते हैं और नहीं हो सकते हैं. लेकिन वो एक नजरिया है, कोर्ट उस नजरिये पर रोक नहीं लगा सकता है.
केंद्र को एक हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश
पिछले 18 सिंतबर को धर्मा प्रोडक्शन ने अपना जवाब दाखिल किया था. पिछले 2 सितंबर को कोर्ट ने इस फिल्म पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. जस्टिस राजीव शकधर की बेंच ने वायुसेना को पक्षकार बनाने की जगह गुंजन सक्सेना को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था.
केंद्र और वायुसेना ने दायर की है याचिका
पिछले 2 सितंबर को कोर्ट ने कहा था कि इस फिल्म के रिलीज हुए पहले ही काफी समय बीत चुके हैं. याचिका केंद्र सरकार और वायु सेना ने दायर किया है। केंद्र सरकार की ओर से एएसजी संजय जैन ने कहा था कि ये फिल्म वायु सेना की साख को गिराने वाली है. फिल्म में सेना में लिंग आधारित भेदभाव का गलत चित्रण हुआ है. तब कोर्ट ने कहा था कि आपको काफी पहले आना चाहिए था. हम ये आदेश नहीं दे सकते हैं. कोर्ट ने धर्मा प्रोडक्शन, नेटफ्लिक्स और पूर्व फ्लाईट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना को नोटिस जारी किया है.
पहले भी याचिका खारिज कर चुका है हाईकोर्ट
बता दें कि इसके पहले भी दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म गुंजन सक्सेना-द कारगिल गर्ल के कुछ डायलॉग हटाने या उसमें बदलाव की मांग करनेवाली याचिका खारिज कर दिया था. पिछले 28 अगस्त को चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि वो अपनी मांग सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास रखें.
'वायुसेना को स्त्री जाति से घृणा करनेवाला बताया गया'
याचिका में कहा गया था कि इस फिल्म में वायुसेना की पूर्व फ्लाईट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना के काम के बारे में गलत बातें कही गई हैं. इस फिल्म में वायुसेना के पुरुष अधिकारियों को स्त्री जाति से घृणा करनेवाले के रूप में दर्शाया गया है. याचिका में कहा गया था कि फिल्म में वायुसेना के बारे में कहा गया है कि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है. याचिका में कहा गया था कि इस फिल्म में भारतीय वायुसेना के बारे में कई मनगढ़ंत बातें कही गई हैं. फिल्मकार ने सिनेमा लाइसेंस की आड़ में वायुसेना के बारे में गलत तथ्यों को पेश किया है.