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Notice to Centre & Delhi Govt: दिल्ली हाईकोर्ट से किशोर न्याय नियम के कुछ खंड को रद्द करने की मांग - constitutional validity of Juvenile Justice Act

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक याचिका पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को नोटिस भेजा है. दरअसल आयोग ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 के कुछ खंड के प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 14, 20 और 21 का उल्लंघन बताया था.

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Published : Jan 13, 2023, 5:03 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की उस याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 की सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट और सामाजिक जांच रिपोर्ट से संबंधित धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

जस्टिस मुक्ता गुप्ता और पूनम ए बाम्बा की डिविजन बेंच ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार की कानून और न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. बेंच ने दोनों को इस संबंध में चार हफ्ते में एफिडेविट जमा कराने के निर्देश दिए हैं. इस मामले को 28 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. डीसीपीसीआर ने कहा है कि यह खंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 20 और 21 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि यह खंड बच्चे से कबूलनामा निकालने का प्रावधान करता है. इसमें यह प्रावधान है कि एक बच्चे को खुद के खिलाफ गवाह बनने और अपराध करने के लिए मजबूर करता है.

अधिवक्ता आरएचए सिकंदर के माध्यम से दायर याचिका में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 के फॉर्म 1 (सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट) के खंड 21 और 24 और फॉर्म 6 (कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट) के खंड 42 और 43 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

याचिका में कहा गया है कि फॉर्म 1 (सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट) के खंड 21 और 24 के अनुसार, बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को कथित अपराध के कारण और अपराध में बच्चे की कथित भूमिका को नोट करना आवश्यक बताया गया है. फॉर्म 6 (कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट) के खंड 42 और 43 के अनुसार, परिवीक्षा अधिकारी/बाल कल्याण अधिकारी/सामाजिक कार्यकर्ता को अपराध में बच्चे की कथित भूमिका और कथित कारण को नोट करना आवश्यक बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 के फॉर्म 1 और 6 के ये खंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का उल्लंघन है.

ये भी पढ़ेंः Delhi Govt vs LG: सरकार का दावा- टीचरों को फिनलैंड जाने नहीं दे रहे LG, उपराज्यपाल ऑफिस ने बताया- भ्रामक

बाल अधिकार संस्था ने केंद्र सरकार, कानून और न्याय मंत्रालय और दिल्ली सरकार को याचिका में पक्षकार बनाया है. संस्थान ने नियम के इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने की मांग की है ताकि यह खंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि यह खंड एक बच्चे को खुद के खिलाफ गवाह बनने और खुद को दोषी ठहराने को लेकर मजबूर करता है.

(इनपुटः ANI)

ये भी पढ़ेंः LG orders to remove nominees: अनिल अंबानी की कंपनी से AAP नेताओं को हटाने का निर्देश

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की उस याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 की सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट और सामाजिक जांच रिपोर्ट से संबंधित धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

जस्टिस मुक्ता गुप्ता और पूनम ए बाम्बा की डिविजन बेंच ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार की कानून और न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. बेंच ने दोनों को इस संबंध में चार हफ्ते में एफिडेविट जमा कराने के निर्देश दिए हैं. इस मामले को 28 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. डीसीपीसीआर ने कहा है कि यह खंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 20 और 21 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि यह खंड बच्चे से कबूलनामा निकालने का प्रावधान करता है. इसमें यह प्रावधान है कि एक बच्चे को खुद के खिलाफ गवाह बनने और अपराध करने के लिए मजबूर करता है.

अधिवक्ता आरएचए सिकंदर के माध्यम से दायर याचिका में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 के फॉर्म 1 (सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट) के खंड 21 और 24 और फॉर्म 6 (कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट) के खंड 42 और 43 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

याचिका में कहा गया है कि फॉर्म 1 (सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट) के खंड 21 और 24 के अनुसार, बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को कथित अपराध के कारण और अपराध में बच्चे की कथित भूमिका को नोट करना आवश्यक बताया गया है. फॉर्म 6 (कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट) के खंड 42 और 43 के अनुसार, परिवीक्षा अधिकारी/बाल कल्याण अधिकारी/सामाजिक कार्यकर्ता को अपराध में बच्चे की कथित भूमिका और कथित कारण को नोट करना आवश्यक बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 के फॉर्म 1 और 6 के ये खंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का उल्लंघन है.

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बाल अधिकार संस्था ने केंद्र सरकार, कानून और न्याय मंत्रालय और दिल्ली सरकार को याचिका में पक्षकार बनाया है. संस्थान ने नियम के इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने की मांग की है ताकि यह खंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि यह खंड एक बच्चे को खुद के खिलाफ गवाह बनने और खुद को दोषी ठहराने को लेकर मजबूर करता है.

(इनपुटः ANI)

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