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हाथरस केस: दिल्ली की छात्राओं में आक्रोश, बताया- कैसे होगी महिलाएं सुरक्षित - Increased rape incidents in the country

देश में लगातार रेप के मामले बढ़ रहे है. जिसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने देश में मौजूदा माहौल को लेकर छात्राओं की राय जाननी चाही. जिसको लेकर छात्राओं ने बताया कि रोजाना घर से निकलते वक्त अब उनको डर लगता है.

Delhi girls told that How will women be safe
दिल्ली की छात्राओं ने बताया समाज में कैसे होंगी महिलाएं सुरक्षित ?
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Published : Oct 4, 2020, 4:36 PM IST

नई दिल्ली: तमाम सरकारें या संस्थाएं महिलाओं की सुरक्षा के सालों से दावे करते हुए आ रही हैं. लेकिन वो दावे तब फेल हो जाते हैं जब हम आए दिन अपने आसपास महिलाओं के प्रति होते अपराध के बारे में सुनते हैं. हाल ही में हुए हाथरस मामले को लेकर पूरे देश में लोगों में जबरदस्त रोष है. और हर कोई बढ़ती रेप,छेड़छाड़, महिलाओं के प्रति हिंसा जैसी घटनाओं को लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. लेकिन आखिर क्यों यह घटनाएं हमारे बीच बढ़ रही हैं. और इनका परमानेंट सॉल्यूशन क्या है? इसको लेकर हमने दिल्ली की छात्राओं से बात की.

दिल्ली की छात्राओं ने बताया समाज में कैसे होंगी महिलाएं सुरक्षित ?

महिलाओं के प्रति आज भी नहीं बदली है समाज में सोच

दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही छात्रा भावना गोस्वामी ने कहा की हम चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए. लेकिन हम देखते हैं कि आज भी महिलाओं के प्रति समाज में सोच बदली नहीं है. और यह शुरुआत हमारे घर से ही होती है हमेशा जब किसी घर में बेटा देर रात तक घर से बाहर रहता है, तो माता-पिता को उसकी चिंता नहीं होती, लेकिन यदि लड़की घर आने में थोड़ी देर कर दे तो उससे कई सवाल पूछे जाते हैं.

कई बार घर में ही होता है बच्चियों के साथ शोषण

वहीं अन्य छात्रा श्रुति ने कहा कि जब महिलाओं या हम जैसी छात्राओं को घर से बाहर जाना होता है, तो इसके लिए माता-पिता समेत अपने घर में सभी सदस्यों से परमिशन लेनी होती है. उन्हें अपने जरूरी काम के बारे में बताना होता है. और कई बार माता-पिता हमें कहते हैं कि बाहर जाना सुरक्षित नहीं है. लेकिन कई ऐसे मामले हम अपने आसपास देखते हैं, जहां पर महिलाएं और बच्चियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं होती हैं, उनके घर में ही उनके रिश्तेदारों द्वारा शोषण किया जाता है.


कानूनी व्यवस्था आरोपियों को सजा तक पहुंचाने में लचर

इसी के साथ बायोलॉजी की छात्रा श्रुति गुप्ता ने कहा कि अपने देश में बलात्कार आरोपियों को सजा दिए जाने का कानून बेहद लचर है. रेप के बाद आरोपियों को फांसी या सजा दिए जाने के लिए सालों लग जाते हैं. इतना समय नहीं लगना चाहिए और पीड़िता को खुद अधिकार होना चाहिए कि वह अपने आरोपी को क्या सजा देना चाहती है.

घर से अकेले निकलने में लगता है डर

अन्य छात्रा चिंकी ने कहा कि घर से निकलते समय आज वह अपने आप को बिल्कुल भी सुरक्षित महसूस नहीं करती. अगर माता-पिता ना भी बोले तो भी वह अकेले घर से नहीं निकलना चाहती. क्योंकि ना तो महिलाओं के प्रति अपराध कम हो रहे हैं. और ना ही आरोपियों को सही प्रकार से सजा दी जा रही है. इसके चलते उनके हौसले बुलंद हैं. और वह बेखौफ होकर हमारे समाज में घूम रहे हैं.

आरोपियों को फांसी दिए जाने के बाद भी मामले नहीं हो रहे कम

छात्राओं ने कहा कि जब निर्भया रेप केस हुआ तो उसमें सभी ने फांसी के लिए आवाज उठाई, 8 साल बाद आरोपियों को फांसी पर भी चढ़ाया गया. जिसके बाद शायद ही लगा कि अब देश में बलात्कार जैसे मामले कम होंगे. लेकिन हम रोजाना अलग-अलग राज्यों में होते बच्चियों और महिलाओं के साथ होती इन घटनाओं को सुनते और देखते आ रहे हैं. यानी कि ऐसे मामले फांसी से कम नहीं हो सकते. आरोपियों को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद भी यह मामले बढ़ रहे हैं.

माता-पिता अपने घर से ही लड़कों को दें सही शिक्षा

ऐसे में समाज की सोच बदलना बेहद आवश्यक है जिसकी शुरुआत हम अपने घर से ही कर सकते हैं. मां बाप अपनी लड़कियों को समझाने से ज्यादा अपने लड़कों को समझाएं. इसके साथ ही उन्होंने कहा की लड़कियां अपनी सुरक्षा के लिए सक्षम बने और सेल्फ डिफेंस सीखें. इसके साथ ही अपने अंदर एक कॉन्फिडेंट लेकर आए और उस डर को खत्म करें.

नई दिल्ली: तमाम सरकारें या संस्थाएं महिलाओं की सुरक्षा के सालों से दावे करते हुए आ रही हैं. लेकिन वो दावे तब फेल हो जाते हैं जब हम आए दिन अपने आसपास महिलाओं के प्रति होते अपराध के बारे में सुनते हैं. हाल ही में हुए हाथरस मामले को लेकर पूरे देश में लोगों में जबरदस्त रोष है. और हर कोई बढ़ती रेप,छेड़छाड़, महिलाओं के प्रति हिंसा जैसी घटनाओं को लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. लेकिन आखिर क्यों यह घटनाएं हमारे बीच बढ़ रही हैं. और इनका परमानेंट सॉल्यूशन क्या है? इसको लेकर हमने दिल्ली की छात्राओं से बात की.

दिल्ली की छात्राओं ने बताया समाज में कैसे होंगी महिलाएं सुरक्षित ?

महिलाओं के प्रति आज भी नहीं बदली है समाज में सोच

दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही छात्रा भावना गोस्वामी ने कहा की हम चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए. लेकिन हम देखते हैं कि आज भी महिलाओं के प्रति समाज में सोच बदली नहीं है. और यह शुरुआत हमारे घर से ही होती है हमेशा जब किसी घर में बेटा देर रात तक घर से बाहर रहता है, तो माता-पिता को उसकी चिंता नहीं होती, लेकिन यदि लड़की घर आने में थोड़ी देर कर दे तो उससे कई सवाल पूछे जाते हैं.

कई बार घर में ही होता है बच्चियों के साथ शोषण

वहीं अन्य छात्रा श्रुति ने कहा कि जब महिलाओं या हम जैसी छात्राओं को घर से बाहर जाना होता है, तो इसके लिए माता-पिता समेत अपने घर में सभी सदस्यों से परमिशन लेनी होती है. उन्हें अपने जरूरी काम के बारे में बताना होता है. और कई बार माता-पिता हमें कहते हैं कि बाहर जाना सुरक्षित नहीं है. लेकिन कई ऐसे मामले हम अपने आसपास देखते हैं, जहां पर महिलाएं और बच्चियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं होती हैं, उनके घर में ही उनके रिश्तेदारों द्वारा शोषण किया जाता है.


कानूनी व्यवस्था आरोपियों को सजा तक पहुंचाने में लचर

इसी के साथ बायोलॉजी की छात्रा श्रुति गुप्ता ने कहा कि अपने देश में बलात्कार आरोपियों को सजा दिए जाने का कानून बेहद लचर है. रेप के बाद आरोपियों को फांसी या सजा दिए जाने के लिए सालों लग जाते हैं. इतना समय नहीं लगना चाहिए और पीड़िता को खुद अधिकार होना चाहिए कि वह अपने आरोपी को क्या सजा देना चाहती है.

घर से अकेले निकलने में लगता है डर

अन्य छात्रा चिंकी ने कहा कि घर से निकलते समय आज वह अपने आप को बिल्कुल भी सुरक्षित महसूस नहीं करती. अगर माता-पिता ना भी बोले तो भी वह अकेले घर से नहीं निकलना चाहती. क्योंकि ना तो महिलाओं के प्रति अपराध कम हो रहे हैं. और ना ही आरोपियों को सही प्रकार से सजा दी जा रही है. इसके चलते उनके हौसले बुलंद हैं. और वह बेखौफ होकर हमारे समाज में घूम रहे हैं.

आरोपियों को फांसी दिए जाने के बाद भी मामले नहीं हो रहे कम

छात्राओं ने कहा कि जब निर्भया रेप केस हुआ तो उसमें सभी ने फांसी के लिए आवाज उठाई, 8 साल बाद आरोपियों को फांसी पर भी चढ़ाया गया. जिसके बाद शायद ही लगा कि अब देश में बलात्कार जैसे मामले कम होंगे. लेकिन हम रोजाना अलग-अलग राज्यों में होते बच्चियों और महिलाओं के साथ होती इन घटनाओं को सुनते और देखते आ रहे हैं. यानी कि ऐसे मामले फांसी से कम नहीं हो सकते. आरोपियों को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद भी यह मामले बढ़ रहे हैं.

माता-पिता अपने घर से ही लड़कों को दें सही शिक्षा

ऐसे में समाज की सोच बदलना बेहद आवश्यक है जिसकी शुरुआत हम अपने घर से ही कर सकते हैं. मां बाप अपनी लड़कियों को समझाने से ज्यादा अपने लड़कों को समझाएं. इसके साथ ही उन्होंने कहा की लड़कियां अपनी सुरक्षा के लिए सक्षम बने और सेल्फ डिफेंस सीखें. इसके साथ ही अपने अंदर एक कॉन्फिडेंट लेकर आए और उस डर को खत्म करें.

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