नई दिल्लीः राजस्थान में पाकिस्तान बॉर्डर के पास एक गांव की पली बढ़ी कोमल चौधरी ने दिल्ली के व्यस्त सड़कों पर बस की स्टेयरिंग संभालकर पहले लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं. वहीं, अब कोमल का आर्मी में बतौर जीडी कांस्टेबल चयन हो गया है. संघर्ष से सफलता तक का उनका सफर बहुत की प्रेरणादायक है. बस चलाने के साथ उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से पढ़ाई भी की. कोमल ने यह सफलता हासिल कर एक मिसाल पेश की है. 26 दिसंबर को उनकी ज्वाइंनिंग है. अब वह दिल्ली परिवाहन विभाग की नौकरी छोड़कर फौज में सेवा देंगी.
बस चलाने के लिए दौड़ते हुए जाती: कोमल ने बताया कि वर्ष 2020 में उन्होने सर्विस सेलेक्शन बोर्ड (एसएसपी) के माध्यम से सीमा सशस्त्र बल में कांस्टेबल की पोस्ट के लिए आवेदन किया था. एक साल पहले वह डीटीसी में बस चालक बनीं. छह माह पहले एसएसबी की ओर से रिटेन एग्जाम, फिजिकल, डाक्यूमेंट्स वैरीफिकेशन आदि हुआ. फिजिकल निकालने के लिए वह आरकेपुरम सेक्टर सात से सरोजनी डिपो तक बस चलाने के लिए पैदल आना शुरू कर दिया. चार किमी की दूरी कभी वह दौड़कर तो कभी तेजी से चलकर तय करती थी.
सुबह पांच से दोपहर एक बजे तक ड्यूटी होती थी. इसके बाद रूम पर जाकर खाना खाकर आराम करतीं. शाम पांच से रात के नौ बजे तक वह लाइब्रेरी में जाकर पढ़ाई करती थी, जिससे की वह रिटेन टेस्ट पास कर सकीं. कोमल ने बताया कि वह पिता के साथ आरके पुरम में सेक्टर-7 में रहती हैं. बीती 4 दिसंबर को राजस्थान में ही गांव से उनकी शादी हुई. उनके पति दीपक कुमार प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. परिवार में दादा दादी, चाचा चाची बड़े पापा बड़ी मम्मी, दो भाई मां और पिता हैं.
गांव से बस की स्टेयरिंग संभालने तक का सफरः 24 वर्षीय कोमल पश्चिमी राजस्थान में पाकिस्तान बार्डर के पास गांव सेतराऊ मांगसर, तहसील रामसर जिला बाड़मेर की रहने वाली हैं. उनके पिता राम लाल चौधरी फौज में हैं. कोमल ने बताया कि उनके गांव की लड़कियां कोई टीचर बन जाती है तो कोई बैंक की नौकरी करती है. इससे ज्यादा घर से बाहर निकलकर कुछ अलग करने की इजाजत नहीं है. ऐसे में उन लड़कियों को कुछ करने का मौका नहीं मिलता. वहीं, 18 साल की उम्र पूरी होते-होते शादी कर दी जाती है. कोमल ने कहा ''मैं भी उसी गांव में पली बढ़ी लेकिन मेरे पिता और ताऊ ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया. मैंने 12वीं के बाद बाड़मेर से भूगोल विषय से एमए किया. टीचर की ट्रेनिंग की, लेकिन मेरा कुछ अलग करने का मन करता था."
कोमल ने बताया कि उनके पिता की ड्यूटी दिल्ली में है. उनके ऑफिस में अचानक एक स्टाफ की तबीयत खराब हुई तो एक महिला ने स्टाफ को कार में बैठाया और अस्पताल लेकर गईं. इसे देख उनके पिता काफी प्रभावित हुए. इसके बाद उन्होंने मुझे 2017 में ड्राइविंग सिखाई, 18 साल का पूरा होने पर लाइसेंस भी बनवाया. कोमल कहती है "मुझे लगा कि यदि मैं अन्य महिलाओं से हटकर ड्राइविंग करती हूं तो अन्य महिलाओं व युवतियों को भी प्रेरित कर सकती हूं. मैने राजस्थान में महिला चालक की भर्ती के लिए आवेदन किया लेकिन मेरी उम्र कम थी."
वर्ष 2022 में दिल्ली परिवहन निगम में महिला चालक की भर्ती निकली तो आवेदन किया. लेकिन, फार्म किसी कारण निरस्त हो गया. पिता जी परिवहन निगम के मुख्यालय गए और दोबारा फार्म भरा. मेडिकल टेस्ट में पास होने के बाद ट्रेनिंग हुई. जब वह ड्राइवर बनने के बाद पहली बार बाड़मेर गईं तो घरवालों व गांव के लोगों ने भव्य स्वागत किया. सामाचार में फोटो देख परिवार बहुत खुश हुआ.
कोमल ने बताया दिल्ली में बस चलाने के दौरान बहुत अच्छा अनुभव रहा. उन्होंने पब्लिक डीलिंग सीखी. लोग ड्राइवर सीट पर एक लड़की को बैठा देख प्रभावित होते. लड़कियां व महिलाएं भी प्रभावित होती. काफी यात्री सिर्फ मेरी ही बस में सफर करते थे. जब छुट्टी पर चली जाती तो कंडक्टर से यात्री मेरे बारे में पूछते थे. मुझे देख किन्नर भी आशीर्वाद देते थे. कोमल का कहना है कि वह जल्द ही ड्यूटी डीटीसी में चालक के पद से इस्तीफा देंगी.