नई दिल्ली: दिल्ली का दिल कहे जाने वाली चांदनी चौक स्थित पराठे वाली गली देश-विदेश में अपने जायकेदार व्यंजनों के लिए मशहूर है. विशेष तौर पर देसी घी में बने पराठों के लिए पूरे देश के दूरदराज से लोग जब भी घूमने चांदनी चौक आते हैं तो इस गली में आकर यहां के मशहूर पराठे का जायका लेना नहीं भूलते. इन गलियों का स्वाद राजनीति के गलियारों से लेकर बॉलीवुड की चमचमाती गलियों तक मशहूर है. इन दिनों गली पराठा का जायका थोड़ा फीका होता हुआ नजर आ रहा है.
दरअसल, कोरोना और लॉकडाउन के चलते लोग गली पराठा का रुख इतनी संख्या में नहीं कर रहे हैं, जितनी पहले किया करते थे. हमेशा लोगों की भीड़ से भरी रहने पराठा वाली गली में भीड़ इन दिनों पूरे तरीके से नदारद है. जिसकी वजह से स्थानीय दुकानदारों की परेशानी बढ़ गई है और पूरे दिन में गिने-चुने ग्राहक दुकानों का रुख करते हैं. पहले जो खाने के शौकीन लोग दुकानों में हर दूसरे-तीसरे दिन आया करते थे, वह भी अब नहीं आ रहे हैं.
आजादी के बाद सन 1960 के दशक की शुरुआत में गली पराठा वाली में पराठों की लगभग 20 दुकानें हुआ करती थीं. सभी अपने स्वाद और जायके के लिए मशहूर थीं, लेकिन अब महज गिनी चुनी 3 दुकानें ही रह गई हैं. सबसे पुरानी दुकान पंडित कन्हैया लाल दुर्गा प्रसाद के नाम से रजिस्टर्ड है. इस दुकान की स्थापना सन 1875 में की गई थी. दूसरी दुकान पंडित दयानंद शिवचरण के नाम से यहां पर मशहूर है, जिसकी स्थापना सन 1882 में की गई थी. जबकि तीसरी सबसे मशहूर दुकान बाबूराम पराठे वाले की है, जिसकी स्थापना 1886 में की गई थी. सभी दुकानें आज भी अपने पुराने मूलभूत ढांचे में चल रही हैं.
आजादी के बाद के सालों में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, विजय लक्ष्मी पंडित और इनके बाद देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी यहां पर पराठों का स्वाद चखने आया करती थीं. फिल्म स्टार अक्षय कुमार भी चांदनी चौक की इन्हीं गलियों में रहा करते थे और इन्हीं दुकानों पर आया भी करते थे.
अपने स्वाद और जायके लिए विश्व भर में मशहूर हो चुकी पुरानी दिल्ली की गली पराठा वाली में आज भी पुराने जमाने की तरह पारंपरिक तरीके से शुद्ध शाकाहारी भोजन पकाया जाता है. जिसको बनाने में देसी घी ओर घर के मसालों का प्रयोग किया जाता है. इन दुकानों में भोजन बनाते समय प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता. पराठों की इन दुकानों में लगभग 27 प्रकार से ज्यादा किस्म के पराठे परोसे जाते हैं. इसमें आलू, गोभी, मूली, जीरा, मिर्ची, नमक, अजवाइन, किशमिश, ड्राई फ्रूट, चॉकलेट, खोया, रबड़ी आदि प्रमुख हैं.
गली पराठे वाली में पराठे के साथ लस्सी को परोसे जाने का अपना एक अलग ही महत्व है. यहां पर जो भी व्यक्ति आता है. पराठे का जायका चखने के लिए वह यहां की लस्सी पिए बिना नहीं जाता है. यहां की लस्सी इसलिए भी मशहूर है क्योंकि यहां पर दही को मिट्टी के बर्तनों में जमाया जाता है. जिसके बाद उन्हें मिट्टी के गिलास यानी कि कुल्हड़ में परोसा जाता है. जिससे लस्सी कि मिठास और स्वाद और बढ़ जाता है.
गली पराठे वाली में दुकानदारों ने बताया कि कोरोना की महामारी आने के बाद पिछले 2 साल में हालात पूरे तरीके से बदल गए हैं. जहां पहले गली पराठे वाली में एक पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी. भीड़-भाड़ से भरा हुआ एरिया यह था. वहीं अब कोरोना महामारी के बाद पूरे तरीके से भीड़ खत्म हो गई है. व्यापार थम सा गया है. बड़ी मुश्किल से दिन भर में थोड़े बहुत ग्राहक आते हैं. पहले जहां खाने के शौकीन लोगों की भीड़ लगी रहती थी. वह भीड़ अब गायब सी हो गई है, जिसकी वजह से दुकानदार काफी ज्यादा परेशान हैं, क्योंकि दुकानों का खर्चा निकलना भी मुश्किल हो गया है.
गली पराठा वाली में पराठे की दुकान के मालिक विजेंद्र शर्मा ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने न सिर्फ अपने आप को दोनों कोरोना के टीके की डोज लगवाई है, बल्कि अपने कर्मचारियों को भी एक एक डोज लगवा दी है. कोरोना को देखते हुए सभी प्रकार की सावधानियों का पालन किया जा रहा है. बकायदा मास्क लगाए जा रहे हैं, सैनिटाइजर का प्रयोग किया जा रहा है. साथ ही बिना मास्क के दुकान में किसी व्यक्ति को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है और तो और महज 50% की सेटिंग के साथ ही अभी काम किया जा रहा है.
गौरव तिवारी जो पराठा की दुकान को अपने भाई के साथ मिलकर चला रहे हैं. उन्होंने बताया कि अभी हालात इतने खराब हैं कि दुकान का खर्चा निकलना तक मुश्किल हो गया है. पहले जहां अनगिनत ग्राहक दुकान पर आते थे. अब गिने चुने लोग आ रहे हैं, जिसकी वजह से परेशानियां काफी बढ़ गई हैं. खर्चा पहले जितना ही है, जिसको समय पर सैलरी भी देनी है और बाकी खर्चे भी हैं.
हरिकिशन शर्मा ने बातचीत के दौरान कहा कि हालात कितने ही बदल जाएं, लेकिन उन्होंने अपनी दुकानों का जायका अभी तक नहीं बदला है. पिछले 150 साल से खाने का स्वाद और जायका पहले की तरह ही बरकरार है, खाने की क्वालिटी के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया गया है. हालात कब तक ठीक होंगे यह कहना मुश्किल है, लेकिन लगता नहीं है कि आने वाले साल में हालात सामान्य होने वाले हैं.