नई दिल्लीः एमसीडी में मचे हंगामे के साथ ही आम आदमी पार्टी का उपराज्यपाल (एलजी) पर हमला जारी है. शनिवार को फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शक्तियों के टकराव को लेकर उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को पत्र लिखा है. उन्होंने लिखा है कि अगर 'प्रशासक' को राज्यपाल के रूप में परिभाषित किया गया तो पूरे भारत में निर्वाचित सरकारें अप्रासंगिक हो जाएंगी. शुक्रवार को भी अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल के नाम पत्र लिखकर एमसीडी में मनोनीत पार्षदों को लेकर सवाल उठाए और नाम बदलने की मांग की थी. (CM Kejriwal again wrote a letter to LG VK Saxena)
उपराज्यपाल द्वारा लिए गए फैसलों पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि वह दिल्ली के प्रशासक हैं. उनका बयान तानाशाही को दर्शाता है. एलजी का बयान संविधान की अल्प जानकारी, जनादेश की पूरी अवहेलना को दर्शाता है. सभी राज्य और केंद्र सरकारें राज्यपाल/राष्ट्रपति के नाम पर अपनी शक्तियों का प्रयोग करती हैं. प्रधानमंत्री भी अपनी शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम से करते हैं. यदि राष्ट्रपति स्वतंत्र निर्णय लेने लगे तो प्रधानमंत्री मोदी का कोई मतलब नहीं रह जाता है.
संविधान के अनुच्छेद 239AA(3) के तहत दिल्ली में शक्तियों के बंटवारे के तहत एलजी के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के परे कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. पिछले 30 साल में डीएमसी एक्ट के तहत विभिन्न उपराज्यपालों ने प्रोटेम पीठासीन अधिकारी और एल्डरमैन को चुनी हुई सरकार की सलाह पर नामित किया है.
बता दें कि एमसीडी में मनोनीत पार्षदों को लेकर जब आम आदमी पार्टी ने ऐतराज जताया तो दिल्ली के उपराज्यपाल कार्यालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि उन्हें एमसीडी अधिनियम सहित दिल्ली के विभिन्न अधिनियमों और विधियों के तहत सभी शक्तियों का सीधे प्रयोग करने का अधिकार है. क्योंकि वह प्रशासक हैं. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसका जवाब देते हुए कहा कि यह दर्शाता है दिल्ली में शासन की संवैधानिक योजना या संसदीय लोकतंत्र में शासन के सिद्धांतों का अल्पज्ञान है. दिल्ली की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के जनादेश की पूरी तरह से अवहेलना है और तानाशाही है. मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह एक स्थापित प्रथा है कि भारत में सभी कानूनों और कानूनों के तहत केंद्र-राज्य सरकारों की शक्तियों का प्रयोग निर्वाचित सरकारों द्वारा भारत के राष्ट्रपति या राज्यपालों के नाम पर किया जाता है.
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार दिल्ली में विभिन्न कानूनों और कानूनों की शक्तियों का प्रयोग मुख्यमंत्री द्वारा प्रशासक/उपराज्यपाल के नाम पर किया जाता है. केवल संविधान के अनुच्छेद 239AA(3) के अर्थात् पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के तहत स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध तीन "आरक्षित विषयों" को छोड़कर अन्य सभी विषयों के लिए दिल्ली के कामकाज में एलजी की केवल नाममात्र की भूमिका है. राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) बनाम भारत संघ (2018) 8 एससीसी 501 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान समझ स्पष्ट रूप से कही गई थी. जिसमें कहा गया कि "345 सहायता और सलाह लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को बढ़ाता है, जो सामूहिक जिम्मेदारी का आधार बनते हैं. यह जनादेश कि सरकार के नाममात्र प्रमुख को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना चाहिए. यह सुनिश्चित करता है कि लोकतांत्रिक शासन का वास्तविक निर्णय लेने का अधिकार निर्वाचित सरकार के हाथ में होना चाहिए".
इसी तरह नबाम रेबिया बनाम उप सभापति, अरुणाचल प्रदेश विधान सभा (2016) 8 एससीसी 1 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नाममात्र प्रमुख विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग तभी कर सकता है. जब एक संवैधानिक/कानूनी प्रावधान स्पष्ट रूप से प्रदान करता है कि वह अपने विवेक से कार्य करेगा. अन्य सभी मामलों में उसे निर्वाचित मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के आधार पर कार्य करने की आवश्यकता होती है, भले ही संविधान नाममात्र प्रमुख के नाम पर शक्ति निहित करता हो.
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा 30 साल पहले दिल्ली के संसदीय स्वरूप की स्थापना के बाद से दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 ("डीएमसी अधिनियम") की धारा 77 (ए) के तहत प्रो-टेम पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने और डीएमसी अधिनियम की धारा 3(3)(बी)(i) के तहत एल्डरमैन को नामित करने के लिए विभिन्न उपराज्यपालों द्वारा केवल उस दिन की चुनी हुई सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य किया गया. पिछले कार्यकाल में उपराज्यपाल अनिल बैजल सहित सभी ने इसी तरह कार्य किया.