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LGBT समुदाय के लोगों को वैवाहिक संबंधों की मान्यता नहीं दी जा सकती- केंद्र सरकार

समलैंगिक शादियों की अनुमति देने के मामले पर केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है, कि देश के कानून और सामाजिक मान्यताओं के लिहाज से समलैंगिको के बीच वैवाहिक सम्बन्धों को मान्यता नहीं जा सकती है.

delhi high court
दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Feb 25, 2021, 8:16 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने समलैंगिक वैवाहिक सम्बन्धों को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा है कि धारा 377 को भले ही कोर्ट के आदेश के बावजूद अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया हो, लेकिन समलैंगिक लोग विवाह को अपने मूल अधिकार होने का दावा नहीं कर सकते हैं. सरकार का कहना है कि दो समलैंगिकों के एक साथ रहना और सेक्सुअल रिलेशन बनाना अलग-अलग बातें हैं. इसकी तुलना भारतीय सामाजिक परिवेश में परिवार नाम की इकाई से नहीं की जा सकती है. वैवाहिक संबंधों की कानूनी मान्यता तय करना विधायिका का काम है. न्यायपालिका को इसमे दखल नहीं देना चाहिए. केंद्र सरकार ने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है.


दिल्ली सरकार को भी पक्षकार बनाने की इजाजत
आज सुबह सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट से कहा था कि इस मामले में दायर सभी याचिकाओं पर आज जवाब दाखिल कर दिया जाएगा. जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में दिल्ली सरकार को भी पक्षकार बनाने की इजाजत दी है. इस मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होगी.

केंद्र पहले भी कर चुका है विरोध
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार के हलफनामे पर दो हफ्ते के अंदर प्रत्युतर दाखिल करें. 19 नवंबर 2020 को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. 14 सितंबर 2020 की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करने वाली याचिका का विरोध किया था. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और संस्कृति समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की मान्यता नहीं देता है.

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'LGBT समुदाय को कपल के रूप में नहीं देखा जा सकता'

याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा ने दायर किया है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा कहा है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विपरीत लिंग के जोड़ों में कोई अंतर नहीं बताया गया है. याचिका में संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि कानून एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को एक जोड़े के रुप में नहीं देखता है। एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी इच्छा वाले व्यक्ति से शादी करने की इच्छा को दबा कर रह जाते हैं. उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक शादी का विकल्प नहीं देना उनके साथ भेदभाव करता है.

'विपरीत जोड़े के बराबर अधिकार मिलें'
याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बराबर अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिन्दू पुरुष की शादी हिन्दू महिला से ही हो सकती है. इसमें कहा गया है कि किसी दो हिन्दू के बीच शादी हो सकती है. समलैंगिक शादियों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी कोई रोक नहीं है.

पढ़ें- किराड़ी में दिहाड़ी मजदूरों को लेबर कार्ड बनवाने के लिए किया जा रहा जागरूक


'समलैंगिकों के अधिकारों का उल्लंघन'
याचिका में कहा गया है कि ये एक निर्विवाद तथ्य है कि शादी करने का अधिकार जीवन के अधिकार की संविधान की धारा 21 के तहत आता है. शादी करने के अधिकार को मानवाधिकार चार्टर में भी जिक्र किया गया है. ये एक सार्वभौम अधिकार है और ये अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए भले ही उसकी समलैंगिक हो या नहीं. लैंगिक आधार पर शादी की अनुमति नहीं देना समलैंगिक लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने समलैंगिक वैवाहिक सम्बन्धों को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा है कि धारा 377 को भले ही कोर्ट के आदेश के बावजूद अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया हो, लेकिन समलैंगिक लोग विवाह को अपने मूल अधिकार होने का दावा नहीं कर सकते हैं. सरकार का कहना है कि दो समलैंगिकों के एक साथ रहना और सेक्सुअल रिलेशन बनाना अलग-अलग बातें हैं. इसकी तुलना भारतीय सामाजिक परिवेश में परिवार नाम की इकाई से नहीं की जा सकती है. वैवाहिक संबंधों की कानूनी मान्यता तय करना विधायिका का काम है. न्यायपालिका को इसमे दखल नहीं देना चाहिए. केंद्र सरकार ने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है.


दिल्ली सरकार को भी पक्षकार बनाने की इजाजत
आज सुबह सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट से कहा था कि इस मामले में दायर सभी याचिकाओं पर आज जवाब दाखिल कर दिया जाएगा. जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में दिल्ली सरकार को भी पक्षकार बनाने की इजाजत दी है. इस मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होगी.

केंद्र पहले भी कर चुका है विरोध
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार के हलफनामे पर दो हफ्ते के अंदर प्रत्युतर दाखिल करें. 19 नवंबर 2020 को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. 14 सितंबर 2020 की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करने वाली याचिका का विरोध किया था. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और संस्कृति समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की मान्यता नहीं देता है.

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'LGBT समुदाय को कपल के रूप में नहीं देखा जा सकता'

याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा ने दायर किया है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा कहा है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विपरीत लिंग के जोड़ों में कोई अंतर नहीं बताया गया है. याचिका में संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि कानून एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को एक जोड़े के रुप में नहीं देखता है। एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी इच्छा वाले व्यक्ति से शादी करने की इच्छा को दबा कर रह जाते हैं. उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक शादी का विकल्प नहीं देना उनके साथ भेदभाव करता है.

'विपरीत जोड़े के बराबर अधिकार मिलें'
याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बराबर अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिन्दू पुरुष की शादी हिन्दू महिला से ही हो सकती है. इसमें कहा गया है कि किसी दो हिन्दू के बीच शादी हो सकती है. समलैंगिक शादियों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी कोई रोक नहीं है.

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'समलैंगिकों के अधिकारों का उल्लंघन'
याचिका में कहा गया है कि ये एक निर्विवाद तथ्य है कि शादी करने का अधिकार जीवन के अधिकार की संविधान की धारा 21 के तहत आता है. शादी करने के अधिकार को मानवाधिकार चार्टर में भी जिक्र किया गया है. ये एक सार्वभौम अधिकार है और ये अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए भले ही उसकी समलैंगिक हो या नहीं. लैंगिक आधार पर शादी की अनुमति नहीं देना समलैंगिक लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है.

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