नई दिल्ली: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं 4 मई से आयोजित की जानी थी, लेकिन कोरोना महामारी के एक बार फिर पैर पसारने पर परीक्षा को लेकर संशय की स्थिति बन गई है. दिल्ली सरकार, कांग्रेस व अन्य राजनीतिक संगठन सहित अभिभावक और छात्र भी परीक्षा टालने या उसे स्थगित करने की मांग कर रहे हैं लेकिन सीबीएसई ने अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है. वहीं सीबीएसई का इतिहास देखें तो बड़ी से बड़ी आपदा के समय में भी सीबीएसई ने कभी बोर्ड परीक्षाएं रद्द नहीं की हैं.
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जानें क्या है सीबीएसई का इतिहास
बता दें कि निरंतर हो रहे विकास के जरिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड आज इस प्रतिष्ठा तक पहुंचा है. वहीं सीबीएसई का इतिहास देखें तो जहां पहले यह राज्य स्तर तक सीमित था. वहीं संशोधन के बाद इसे राज्यों के साथ-साथ देश और विदेशों की सीमाओं का विस्तार दे दिया गया. जिसके बाद से इसका नाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पड़ा. वहीं सीबीएसई का मुख्य उद्देश्य है शैक्षणिक संस्थानों के विकास पर जोर देना, यह सुनिश्चित करना कि शैक्षिक संस्थानों में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए. इसके अलावा उन छात्रों की शैक्षिक जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होना जिनके अभिभावक केंद्र सरकार के अंतर्गत कार्यरत हैं और जिनका जल्दी-जल्दी तबादला होता है.
देश ही नहीं विदेशों तक किया विस्तार
सीबीएसई बोर्ड की शाखाएं अब राष्ट्र ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी पहुंच गई हैं. आंकड़ों की मानें तो 1962 में 309 स्कूलों के साथ शुरुआत होने वाले इस बोर्ड के अंतर्गत एक मई 2019 तक भारत के 21,271 स्कूल और विदेश के 25 स्कूल आ चुके हैं.
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क्या हैं सीबीएसई के मुख्य उद्देश्य
वहीं सीबीएसई के मुख्य उद्देश्यों की बात करें तो उसका सबसे पहला उद्देश्य छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और तनाव रहित शिक्षा देना है. इसके अलावा छात्रों को दी जा रही अकादमिक गतिविधियों पर नजर रखना और अलग-अलग स्टेकहोल्डर से उसका फीडबैक लेना है.
इसके साथ ही शिक्षा में नित नए बदलाव और अकादमिक एक्सीलेंस को बढ़ावा देना है. साथ ही स्कूलों को इस बात के लिए प्रेरित करना है कि वह छात्रों और शिक्षकों के विकास को पर जोर दें. इसके अलावा समय-समय पर शिक्षकों के लिए कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम और एंपावरमेंट प्रोग्राम आयोजित करना है.
साथ ही 10वीं और 12वीं की सालाना परीक्षाएं आयोजित करना और उत्तीर्ण छात्रों को अच्छे अंक देना है. साथ ही जिन अभिभावकों के कार्य क्षेत्र में उनका बार-बार तबादला होता है ऐसे अभिभावकों के छात्रों की शैक्षिक जरूरतों को पूरा करना है.
वहीं अब देखने वाली बात है कि जिस तरीके से कोरोना के बढ़ते संक्रमण के मद्देनजर छात्र और अभिभावक सीबीएसई से बोर्ड की परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं इस पर सीबीएसई क्या निर्णय लेता है क्योंकि अलग अलग राज्य सरकार और राजनीतिक दलों की ओर से भी बोर्ड की परीक्षा रद्द करने की मांग उठने लगी है.