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बीजेपी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ने अधिकारियों के ट्रांसफर को लेकर AAP पर साधा निशाना - आम आदमी पार्टी

दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार ना होते हुए भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केजरीवाल सरकार ने दुर्व्यवहार किया. वह अधिकारियों को डरते धमकाते, इसलिए प्रशासनिक हित में एक अध्यादेश लाना पड़ा.

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Published : May 22, 2023, 10:22 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने एक बार फिर से दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल, गोपाल राय, संजय सिंह या आम आदमी पार्टी का कोई भी प्रवक्ता हो, वह सब गत तीन दिन से एक ही रट लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार ने दिल्ली की जनता के अधिकारों का हनन किया है. जबकि, केंद्र के अध्यादेश का दिल्ली की जनता के अधिकारों से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है. इस अध्यादेश से केजरीवाल सरकार इसलिए नाराज है कि अब वह दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग को उद्योग नहीं बना पायेगी.

सचदेवा ने कहा है किआम आदमी पार्टी से पूछना चाहता हूं कि वरिष्ठ अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक प्राधिकरण बनाने वाले केंद्र के अध्यादेश से जनता कैसे प्रभावित होती है. जनता के रोजमर्रा के काम जिस स्तर के अधिकारियों द्वारा होते हैं. उनके ट्रांसफर-पोस्टिंग समान्य तौर पर होते आए हैं और होते रहेंगे.

सचदेवा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को आत्म मंथन करना चाहिए कि आखिर उन्हीं के समय अधिकारियों को लेकर इतने विवाद क्यों हो रहे हैं. 1993 तक दिल्ली में महानगर परिषद थी और तब भी उपराज्यपाल ही ट्रांसफर पोस्टिंग को देखते थे. दिसंबर 1993 में दिल्ली में विधानसभा बनी तब मुख्य सचिव एवं नगर निगम आयुक्त की नियुक्ति को छोड़कर अन्य अधिकारियों की नियुक्ति का कार्य उपराज्यपाल एवं स्थानीय दिल्ली सरकार के समन्वय से होने लगा है.

सचदेवा ने कहा कि 1993 से 2013 के बीच समय-समय पर केंद्र एवं दिल्ली में अलग-अलग दलों की सरकार हुईं पर कभी भी कोई बड़ा टकराव अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर नहीं हुआ, क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा एवं शीला दीक्षित उपराज्यपाल के साथ-साथ अधिकारियों से भी शिष्टाचारिक समन्वय बनाकर चलते थे. 2015 में जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री आए तो उनकी सरकार ने पहले दिन से ही अधिकारियों से असभ्य व्यवहार किया और अपने द्वारा नियुक्त को-टर्मिनस कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों के माध्यम से सरकार चलाने का प्रयास किया. इसके चलते दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था चरमराने लगी.

इसे भी पढ़ें: LG met President: दिल्ली के उपराज्यपाल ने की राष्ट्रपति से मुलाकात, नए अध्यादेश पर चर्चा!

उन्होंने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार ना होते हुए भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केजरीवाल सरकार ने जो दुर्व्यवहार किया, वह समय-समय पर समाचारों में हमें देखने को मिला. दिल्ली ने 2015 में अरविंद केजरीवाल को जो प्रशासनिक मनमानी करते देखा था. वहीं उन्होंने 11 मई 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद करने का प्रयास किया, जिसके परिणाम स्वरुप प्रशासनिक अधिकारियों में भय का वातावरण बनने लगा और उसी के चलते केंद्र को दिल्ली के प्रशासनिक हित में एक अध्यादेश लाना पड़ा.

इसे भी पढ़ें: दिल्ली में पानी की समस्या को लेकर कांग्रेस ने केजरीवाल को घेरा, समाधान नहीं होने पर दी आंदोलन की चेतावनी

नई दिल्ली: दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने एक बार फिर से दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल, गोपाल राय, संजय सिंह या आम आदमी पार्टी का कोई भी प्रवक्ता हो, वह सब गत तीन दिन से एक ही रट लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार ने दिल्ली की जनता के अधिकारों का हनन किया है. जबकि, केंद्र के अध्यादेश का दिल्ली की जनता के अधिकारों से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है. इस अध्यादेश से केजरीवाल सरकार इसलिए नाराज है कि अब वह दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग को उद्योग नहीं बना पायेगी.

सचदेवा ने कहा है किआम आदमी पार्टी से पूछना चाहता हूं कि वरिष्ठ अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक प्राधिकरण बनाने वाले केंद्र के अध्यादेश से जनता कैसे प्रभावित होती है. जनता के रोजमर्रा के काम जिस स्तर के अधिकारियों द्वारा होते हैं. उनके ट्रांसफर-पोस्टिंग समान्य तौर पर होते आए हैं और होते रहेंगे.

सचदेवा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को आत्म मंथन करना चाहिए कि आखिर उन्हीं के समय अधिकारियों को लेकर इतने विवाद क्यों हो रहे हैं. 1993 तक दिल्ली में महानगर परिषद थी और तब भी उपराज्यपाल ही ट्रांसफर पोस्टिंग को देखते थे. दिसंबर 1993 में दिल्ली में विधानसभा बनी तब मुख्य सचिव एवं नगर निगम आयुक्त की नियुक्ति को छोड़कर अन्य अधिकारियों की नियुक्ति का कार्य उपराज्यपाल एवं स्थानीय दिल्ली सरकार के समन्वय से होने लगा है.

सचदेवा ने कहा कि 1993 से 2013 के बीच समय-समय पर केंद्र एवं दिल्ली में अलग-अलग दलों की सरकार हुईं पर कभी भी कोई बड़ा टकराव अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर नहीं हुआ, क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा एवं शीला दीक्षित उपराज्यपाल के साथ-साथ अधिकारियों से भी शिष्टाचारिक समन्वय बनाकर चलते थे. 2015 में जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री आए तो उनकी सरकार ने पहले दिन से ही अधिकारियों से असभ्य व्यवहार किया और अपने द्वारा नियुक्त को-टर्मिनस कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों के माध्यम से सरकार चलाने का प्रयास किया. इसके चलते दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था चरमराने लगी.

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उन्होंने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार ना होते हुए भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केजरीवाल सरकार ने जो दुर्व्यवहार किया, वह समय-समय पर समाचारों में हमें देखने को मिला. दिल्ली ने 2015 में अरविंद केजरीवाल को जो प्रशासनिक मनमानी करते देखा था. वहीं उन्होंने 11 मई 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद करने का प्रयास किया, जिसके परिणाम स्वरुप प्रशासनिक अधिकारियों में भय का वातावरण बनने लगा और उसी के चलते केंद्र को दिल्ली के प्रशासनिक हित में एक अध्यादेश लाना पड़ा.

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