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World cancer day: इलाज की सुविधा का विकेंद्रीकरण हो जाए तो कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं

4 फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे है. भारत में कैंसर की बीमारी को लेकर जिस कदर आतंक कायम है, उस अनुपात में जागरूकता की बेहद कमी है जबकि कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है.

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Published : Feb 4, 2023, 5:05 PM IST

Updated : Feb 4, 2023, 10:29 PM IST

World cancer day
World cancer day
डॉ. राम एस उपाध्याय, साइंटिस्ट

नई दिल्ली: आज वर्ल्ड कैंसर डे है. ऐसे में राजधानी दिल्ली जहां हर मर्ज की बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर हरेक वर्ष देश भर से मरीज पहुंचते हैं. यहां कैंसर पीड़ित मरीजों के उपचार को लेकर स्थिति चिंताजनक है. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स की ही बात करें तो आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 1.30 लाख कैंसर मरीज यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से कई गंभीर स्टेज में होते हैं. लेकिन उन्हें रेडियोथेरेपी जैसे शुरुआती उपचार के लिए भी कम से कम तीन महीने का इंतजार करना पड़ता है.

हाल ही में नियुक्त हुए एम्स के निदेशक डॉ एम श्रीनिवास ने वेटिंग लिस्ट को कम करने के आदेश दिए हैं, लेकिन अभी भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है. आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में जन्म से लेकर 74 साल की उम्र के हर छह में से एक पुरुष और महिलाओं में हर सात में से एक को कैंसर होने का खतरा है. दिल्ली में महिलाओं के कैंसर के इजाफे की दर 19.3 फीसद है.

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंटिस्ट मॉलिक्यूलर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ राम एस उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि कैंसर दुनिया के अंदर दूसरी ऐसी बीमारी है जिससे अधिक मौतें हो रही हैं. लेकिन यह भी सच है कि 40 फीसद कैंसर के होने वाली मृत्यु को आसानी से रोका जा सकता है. मॉडिफाईवेबिल रिस्क इसके फैक्टर हैं जैसे कि तंबाकू सेवन, अल्कोहल सेवन और शारीरिक श्रम आदि नहीं करने की वजह से कैंसर होते हैं, इन कारणों से हुए कैंसर को आसानी से रोका जा सकता है. हम कह सकते हैं कि एक तिहाई जो कैंसर की वजह से मौतें होती है उसे शुरुआती उपचार कर बिल्कुल ठीक किया जा सकता है. डॉ उपाध्याय ने कहा कि यूएसए के अंदर कैंसर ट्रीटमेंट के ऊपर हर साल 1.16 ट्रिलियन डॉलर सरकार खर्च करती है. भारत में भी सरकार कैंसर की रोकथाम बचाव और इलाज के लिए जिला स्तर पर केंद्र स्थापित करें, जहां पर मरीजों की जांच, रेडियोथैरेपी, कीमोथेरेपी और सर्जरी की सुविधाएं मौजूद हो.

दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी कैंसर हॉस्पिटल समेत अन्य कैंसर अस्पतालों में इलाज महंगा होने के कारण अधिकांश कैंसर मरीज उस खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं, उनके लिए सरकारी अस्पताल ही एकमात्र सहारा है जहां अभी भी इलाज आसान नहीं है. एम्स में रेडियोथैरेपी के लिए तीन-तीन महीने बाद की तारीख मिलती है. इतने समय में कैंसर के शुरुआती मरीज भी दूसरे व तीसरे चरण तक पहुंच जाता है, जिसके बाद सर्जरी ही विकल्प बचता है और सर्जरी की तारीख एम्स में 9 महीने से लेकर एक साल बाद की मिलती है. ऐसे में कैंसर मरीज अंतिम स्तर पर पहुंच जाता है और सर्जरी के बाद भी बचने की संभावना काफी कम हो जाती है. यही वजह है कि देश में कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ रही है और ठीक होने वाले मरीजों की दर में कमी आ रही है. अगर कैंसर के ईलाज की सुविधा का विकेंद्रीकरण हो जाए तो मरीजों को बेसिक कीमोथेरेपी, रेडियोथैरेपी के लिए अपने शहर से दूर बड़े अस्पतालों में नहीं जाना होगा और यह लाइलाज बीमारी नहीं रह पाएगी.

एम्स कैंसर सेंटर के ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ एस वी एस देव बताते हैं कि देश में सबसे ज्यादा बच्चों में कैंसर की दर दिल्ली में है. दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 3.9 फीसद बच्चों में कैंसर मिला है. जबकि देश में यह आंकड़ा 0.7 से 3.1 फीसद के बीच है. बच्चों में यह कैंसर लिंफोमा, ल्यूकेमिया, न्यूरोब्लास्टोमा की तरह की है. डॉ देव कहते हैं इसका सही कारण पता पाना मुश्किल है लेकिन यह भी सच है कि बच्चों में होने वाले कैंसर के मामलों में 80 से 90 फीसद तक ठीक हो जाते हैं.

ये भी पढ़े: Jamia Violence Case: शरजील इमाम और आसिफ इकबाल तन्हा को कोर्ट से बड़ी राहत, किया गया बरी

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध रेडियोथेरेपी की सुविधाओं की बात करें तो एम्स में कुल 6 मशीनें हैं, वहीं सफदरजंग में तीन, दिल्ली कैंसर संस्थान में 3, जनकपुरी अस्पताल में एक और आईएलबीएस अस्पताल में एक मशीनें हैं. जबकि दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल एलएनजेपी अस्पताल में अभी तक एक रेडियोथेरेपी मशीन लगी है, लेकिन अभी इसका ट्रायल ही चल रहा है.

ये भी पढ़े: अरविंद केजरीवाल का मोदी सरकार पर जोरदार हमला, पूछा- केंद्र सरकार सबसे लड़ती क्यों है?

बता दें कि कैंसर एक प्रकार की बीमारी है जो नॉर्मल सेल का ग्रुप होता है उसके अंदर चेंज होने शुरू हो जाते हैं. इन सेल के वर्गीकृत किया गया है कार्सिनोमा, सार्कोमा, लिंफोमा, ल्यूकेमिया और ब्रेन एंड स्पाइनकॉर्ड कैंसर. कैंसर के लक्षण की बात करें तो अगर कहीं शरीर में गांठ बन रही हो और उसका साइज बढ़ रहा हो तो सावधान होना चाहिए. हमेशा खांसने में, सांस लेने में दिक्कत होना भी कैंसर का लक्षण हो सकता है. जब हम सुबह नित्य क्रिया करने जाते हैं उनमें कोई अचानक बदलाव हो रहा हो तो हमें सावधान हो जाना चाहिए. शरीर के किसी हिस्से से अचानक ब्लीडिंग होने लगे तो तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए. ब्रेन में अनएक्सपेक्टेड चेंज हो रहा हो तो सावधान होना चाहिए. भूख एकदम से बंद हो जाए और वजन कम होने लगे तो हमें अपने डॉक्टर के जरूर दिखा देना चाहिए. कैंसर एंटीजन टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट जिसमें अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, पेट स्कैन शामिल है इनसे कैंसर का पता लग जाता है और ट्रीटमेंट की बात करें तो आजकल अगर जल्दी पता लग जाए तो शुरुआती चरण में सर्जरी के इसे काफी फायदा हो सकता है.

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डॉ. राम एस उपाध्याय, साइंटिस्ट

नई दिल्ली: आज वर्ल्ड कैंसर डे है. ऐसे में राजधानी दिल्ली जहां हर मर्ज की बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर हरेक वर्ष देश भर से मरीज पहुंचते हैं. यहां कैंसर पीड़ित मरीजों के उपचार को लेकर स्थिति चिंताजनक है. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स की ही बात करें तो आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 1.30 लाख कैंसर मरीज यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से कई गंभीर स्टेज में होते हैं. लेकिन उन्हें रेडियोथेरेपी जैसे शुरुआती उपचार के लिए भी कम से कम तीन महीने का इंतजार करना पड़ता है.

हाल ही में नियुक्त हुए एम्स के निदेशक डॉ एम श्रीनिवास ने वेटिंग लिस्ट को कम करने के आदेश दिए हैं, लेकिन अभी भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है. आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में जन्म से लेकर 74 साल की उम्र के हर छह में से एक पुरुष और महिलाओं में हर सात में से एक को कैंसर होने का खतरा है. दिल्ली में महिलाओं के कैंसर के इजाफे की दर 19.3 फीसद है.

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंटिस्ट मॉलिक्यूलर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ राम एस उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि कैंसर दुनिया के अंदर दूसरी ऐसी बीमारी है जिससे अधिक मौतें हो रही हैं. लेकिन यह भी सच है कि 40 फीसद कैंसर के होने वाली मृत्यु को आसानी से रोका जा सकता है. मॉडिफाईवेबिल रिस्क इसके फैक्टर हैं जैसे कि तंबाकू सेवन, अल्कोहल सेवन और शारीरिक श्रम आदि नहीं करने की वजह से कैंसर होते हैं, इन कारणों से हुए कैंसर को आसानी से रोका जा सकता है. हम कह सकते हैं कि एक तिहाई जो कैंसर की वजह से मौतें होती है उसे शुरुआती उपचार कर बिल्कुल ठीक किया जा सकता है. डॉ उपाध्याय ने कहा कि यूएसए के अंदर कैंसर ट्रीटमेंट के ऊपर हर साल 1.16 ट्रिलियन डॉलर सरकार खर्च करती है. भारत में भी सरकार कैंसर की रोकथाम बचाव और इलाज के लिए जिला स्तर पर केंद्र स्थापित करें, जहां पर मरीजों की जांच, रेडियोथैरेपी, कीमोथेरेपी और सर्जरी की सुविधाएं मौजूद हो.

दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी कैंसर हॉस्पिटल समेत अन्य कैंसर अस्पतालों में इलाज महंगा होने के कारण अधिकांश कैंसर मरीज उस खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं, उनके लिए सरकारी अस्पताल ही एकमात्र सहारा है जहां अभी भी इलाज आसान नहीं है. एम्स में रेडियोथैरेपी के लिए तीन-तीन महीने बाद की तारीख मिलती है. इतने समय में कैंसर के शुरुआती मरीज भी दूसरे व तीसरे चरण तक पहुंच जाता है, जिसके बाद सर्जरी ही विकल्प बचता है और सर्जरी की तारीख एम्स में 9 महीने से लेकर एक साल बाद की मिलती है. ऐसे में कैंसर मरीज अंतिम स्तर पर पहुंच जाता है और सर्जरी के बाद भी बचने की संभावना काफी कम हो जाती है. यही वजह है कि देश में कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ रही है और ठीक होने वाले मरीजों की दर में कमी आ रही है. अगर कैंसर के ईलाज की सुविधा का विकेंद्रीकरण हो जाए तो मरीजों को बेसिक कीमोथेरेपी, रेडियोथैरेपी के लिए अपने शहर से दूर बड़े अस्पतालों में नहीं जाना होगा और यह लाइलाज बीमारी नहीं रह पाएगी.

एम्स कैंसर सेंटर के ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ एस वी एस देव बताते हैं कि देश में सबसे ज्यादा बच्चों में कैंसर की दर दिल्ली में है. दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 3.9 फीसद बच्चों में कैंसर मिला है. जबकि देश में यह आंकड़ा 0.7 से 3.1 फीसद के बीच है. बच्चों में यह कैंसर लिंफोमा, ल्यूकेमिया, न्यूरोब्लास्टोमा की तरह की है. डॉ देव कहते हैं इसका सही कारण पता पाना मुश्किल है लेकिन यह भी सच है कि बच्चों में होने वाले कैंसर के मामलों में 80 से 90 फीसद तक ठीक हो जाते हैं.

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दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध रेडियोथेरेपी की सुविधाओं की बात करें तो एम्स में कुल 6 मशीनें हैं, वहीं सफदरजंग में तीन, दिल्ली कैंसर संस्थान में 3, जनकपुरी अस्पताल में एक और आईएलबीएस अस्पताल में एक मशीनें हैं. जबकि दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल एलएनजेपी अस्पताल में अभी तक एक रेडियोथेरेपी मशीन लगी है, लेकिन अभी इसका ट्रायल ही चल रहा है.

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बता दें कि कैंसर एक प्रकार की बीमारी है जो नॉर्मल सेल का ग्रुप होता है उसके अंदर चेंज होने शुरू हो जाते हैं. इन सेल के वर्गीकृत किया गया है कार्सिनोमा, सार्कोमा, लिंफोमा, ल्यूकेमिया और ब्रेन एंड स्पाइनकॉर्ड कैंसर. कैंसर के लक्षण की बात करें तो अगर कहीं शरीर में गांठ बन रही हो और उसका साइज बढ़ रहा हो तो सावधान होना चाहिए. हमेशा खांसने में, सांस लेने में दिक्कत होना भी कैंसर का लक्षण हो सकता है. जब हम सुबह नित्य क्रिया करने जाते हैं उनमें कोई अचानक बदलाव हो रहा हो तो हमें सावधान हो जाना चाहिए. शरीर के किसी हिस्से से अचानक ब्लीडिंग होने लगे तो तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए. ब्रेन में अनएक्सपेक्टेड चेंज हो रहा हो तो सावधान होना चाहिए. भूख एकदम से बंद हो जाए और वजन कम होने लगे तो हमें अपने डॉक्टर के जरूर दिखा देना चाहिए. कैंसर एंटीजन टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट जिसमें अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, पेट स्कैन शामिल है इनसे कैंसर का पता लग जाता है और ट्रीटमेंट की बात करें तो आजकल अगर जल्दी पता लग जाए तो शुरुआती चरण में सर्जरी के इसे काफी फायदा हो सकता है.

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Last Updated : Feb 4, 2023, 10:29 PM IST
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